मधुमेह के मिथक तोड़ने वाले मरीज, नाटक से जागरूकता बढ़ाना: प्रदर्शन का उद्देश्य

कोलकाता में T1D वारियर्स: टाइप 1 डायबिटीज के मिथकों को तोड़ने का प्रयास
कई माता-पिता के लिए यह एक डरावना क्षण होता है जब वे अपने बच्चे की बीमारी के बारे में सुनते हैं। अस्पताल में डॉक्टर से जब एक माता-पिता यह पूछते हैं, “डॉक्टर, मेरे बेटे को क्या हुआ है? उसे इतनी उल्टी क्यों हो रही है?” और डॉक्टर का उत्तर होता है, “आपके बेटे को टाइप 1 डायबिटीज (T1D) है,” तो उनका दिल एक पल के लिए रुक जाता है। टाइप 1 डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है जहाँ अग्न्याशय की बीटा कोशिकाएँ अचानक इंसुलिन का उत्पादन करना बंद कर देती हैं, जिससे रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन आमतौर पर यह बचपन में अधिक देखी जाती है।
T1D के बारे में जन जागरूकता
“डॉक्टर, क्या मेरा बच्चा ठीक होगा?” ऐसी चिंताओं के बीच, डॉक्टर आश्वस्त करते हैं कि T1D को एक संतुलित जीवनशैली अपनाकर आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है। लेकिन समाज में इससे जुड़ी धारणाएँ और मिथक बहुत गहरे जड़ें जमा चुके हैं। उदाहरण के लिए, स्कूल में, जब प्रबाल एक सहपाठी से मिलता है जिसे ‘शुगर बॉय’ कहा जाता है, तो उसे आत्म-सम्मान का अभाव महसूस होता है।
हालाँकि, प्रबाल की कहानी वह नहीं है जो कई अन्य बच्चों के लिए होती है। उसने अपनी मेहनत और संघर्ष के बल पर डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया। लेकिन उसके सहपाठी विशाल ने दूसरी ओर नशीली दवाओं की लत में खुद को धकेल लिया। ऐसा सामाजिक दबाव और गलतफहमियाँ बीमारी के पीड़ितों के लिए चुनौती बनी रहती हैं।
मिथकों को तोड़ते हुए
T1D वारियर्स नामक समूह समाज में फैले हानिकारक मिथकों को तोड़ने का कार्य कर रहा है। इस समूह में शामिल मरीज अपने अनुभव को साझा करते हैं और नाटक के माध्यम से जागरूकता फैलाते हैं। इस समूह में कुल 11 मरीज हैं, जिनमें पांच बच्चे हैं। वे सभी T1D के विभिन्न पहलुओं को अपने अभिनय के जरिए दर्शाते हैं।
नाटक की एक महत्वपूर्ण घटना तब होती है जब तुलिका, जो एक भविष्यवर्ती दुल्हन है, तो उसे बताया जाता है कि अब वह शादी नहीं कर सकेगी क्योंकि उसके पास T1D है। लेकिन प्रबाल वहाँ आता है और बताता है कि वह भी T1D का मरीज है, शादी कर चुका है और एक स्वस्थ बेटा भी है।
इससे यह संदेश मिलता है कि यदि कोई व्यक्ति T1D से ग्रसित है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह जीवन में कुछ हासिल नहीं कर सकता। वह अपनी ज़िंदगी जी सकता है, अपने सपने पूरे कर सकता है और एक सामान्य जीवन जी सकता है।
नाटक की शुरुआत
इंद्रजीत मजूमदार ने इस नाटक मंडली की शुरुआत की, जिनका ध्यान T1D के रोगियों के अधिकार और उनकी स्थिति को समाज में उजागर करने पर है। उनका मानना है कि मरीज अपने अनुभवों को साझा कर बहुत कुछ बदल सकते हैं। इन्होंने बताया कि T1D के बारे में अक्सर ये सोच होती है कि मरीज शादी नहीं कर सकते, माता-पिता नहीं बन सकते या लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकते।
इस नाटक का पहला शो दिसंबर में कोलकाता में हुआ था, और तब से इसे कई स्थानों पर प्रदर्शित किया गया है। यह न केवल दर्शकों को मनोरंजन देता है, बल्कि उन्हें T1D के बारे में जागरूकता भी प्रदान करता है।
व्यक्तिगत कहानियाँ
पामेला सुर सदुखान, एक व्यस्त थिएटर कलाकार और T1D की मरीज, ने बताया कि टी 1 डी के बारे में जानने पर उन्होंने खुद को कैसे संभाला। जब वह सिर्फ 14 साल की थी, तब उन्हें इस बीमारी के बारे में पता चला। नाटक में उनकी भागीदारी और अनुभवों ने उन्हें अपनी बीमारी के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने में मदद की।
एक अन्य सदस्य, सुकन्या सरकार, जो T1D की मरीज हैं, ने साझा किया कि कैसे उनकी माँ बीमारी की जानकारी के बिना बहुत चिंतित थीं। लेकिन आज, वह अपने नाटक के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रही हैं।
निष्कर्ष
T1D वारियर्स का यह समूह न केवल मिथकों को तोड़ने का कार्य कर रहा है, बल्कि इसके माध्यम से वे टाइप 1 डायबिटीज के पीड़ितों को एक नई ज़िंदगी जीने का अवसर भी प्रदान कर रहे हैं। जागरूकता फैलाने के उनके प्रयासों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि T1D से पीड़ित लोग जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल हो सकते हैं, और उन्हें समाज की समझ और सहानुभूति मिल सके।
हर नाटक, हर कहानी और हर अनुभव दर्शाता है कि विश्वास और जागरूकता ही एक सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।