मध्य प्रदेश कांग्रेस में संकट: डिग्विजय सिंह और कमल नाथ के बीच विवाद और आपसी आरोप 2020 में।

मध्य प्रदेश कांग्रेस में आंतरिक विवाद
मध्य प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में एक नया विवाद उत्पन्न हुआ है। कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेता, डिग्विजय सिंह और कमल नाथ, एक-दूसरे के खिलाफ़ खुलकर अपनी बात रख रहे हैं। हाल ही में, डिग्विजय सिंह ने दावा किया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमल नाथ की सरकार को त्यागने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि उनकी ‘इच्छा सूची’ पर ध्यान नहीं दिया गया।
2020 की शुरुआत में, डिग्विजय, कमल नाथ और सिंधिया एक बड़े उद्योगपति के घर पर एक डिनर के अवसर पर मिले थे। इस बैठक में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई, जो सिंधिया का गढ़ है। डिग्विजय और सिंधिया ने इस बैठक में कमल नाथ को एक ‘संयुक्त ज्ञान’ सौंपा, जो अंततः अनसुलझा रह गया। डिग्विजय ने आरोप लगाया कि उन्होंने उद्योगपति को स्पष्ट रूप से बताया था कि यदि सरकार की ये आंतरिक लड़ाइयाँ समाप्त नहीं हुईं, तो परिणामस्वरूप सरकार गिर सकती है।
कमल नाथ की प्रतिक्रिया
कमल नाथ ने इस विवाद पर चुप्पी साधने का कोई इरादा नहीं रखा। उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर डिग्विजय पर खुलकर निशाना साधा। नाथ ने कहा कि पुराने मामलों को उखाड़ने का कोई मतलब नहीं, लेकिन यह सच है कि सिंधिया को इस बात का एहसास हुआ कि सरकार डिग्विजय सिंह द्वारा नियंत्रित की जा रही है। उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं और निराशा ने उन्हें 22 कांग्रेस विधायकों (जिनमें 6 मंत्री शामिल थे) के साथ भाजपा में शामिल होने के लिए मजबूर किया।
ज्योतिरादित्य सिंधिया की चुप्पी
जब इस पर ज्योतिरादित्य सिंधिया से पूछा गया, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से चुप रहने का फैसला किया। उन्होंने कहा, “मैं अतीत पर टिप्पणी नहीं करूंगा।” उनकी चुप्पी ने राजनीतिक हलकों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या सिंधिया पुराने घावों को कुरेदना नहीं चाहते, या उनके मन में कुछ और है?
डिग्विजय और सिंधिया का पुराना संबंध
हाल ही में, डिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की एक साथ बैठक ने काफी ध्यान आकर्षित किया। यह घटना एक स्कूल के उद्घाटन समारोह के दौरान हुई। सिंधिया मंच पर थे और डिग्विजय दर्शकों में बैठे थे। सिंधिया ने खुद को दर्शकों की ओर से उठाया, डिग्विजय का हाथ पकड़ा और उन्हें मंच पर ले आए। डिग्विजय ने इस पल को हल्के में लेते हुए कहा, “मुझे दर्शकों में बैठना पसंद है।”
यह ध्यान देने योग्य है कि डिग्विजय ने माधवराव सिंधिया, ज्योतिरादित्य के पिता, को कांग्रेस में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब 2001 में माधवराव का विमान दुर्घटना में निधन हुआ, तब डिग्विजय ने ज्योतिरादित्य को हर संभव समर्थन दिया।
जीतू पटवारी का नुकसान नियंत्रण
इसके बीच, राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इस पूरी स्थिति को संभालने का प्रयास किया। उन्होंने यह कहा कि डिग्विजय और कमल नाथ के बीच गहरा स्नेह है और उनकी अपनी केमिस्ट्री है। पटवारी ने यह भी कहा कि ये दोनों नेता जानते हैं कि कैसे मुद्दों पर चर्चा की जाए, इसलिए हमें इस ‘इच्छा सूची’ को लेकर चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
आगे का रास्ता
मध्य प्रदेश कांग्रेस के भीतर के इस विवाद ने स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी में आंतरिक मतभेद कितने गहरे हैं। जब तक ये मुद्दे सुलझाए नहीं जाएंगे, तब तक पार्टी की एकता पर प्रश्नचिह्न बना रहेगा। डिग्विजय सिंह और कमल नाथ के बीच का ये संघर्ष न केवल उनके व्यक्तिगत संबंधों पर प्रभाव डाल रहा है बल्कि इससे कांग्रेस के चुनावी भविष्य पर भी असर पड़ेगा।
आने वाले समय में, यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे ये नेता अपनी आंतरिक चुनौतियों का सामना करते हैं और क्या वे किसी प्रकार का सामंजस्य स्थापित कर पाते हैं। क्या कांग्रेस पार्टी अपनी एकता को बनाए रख पाएगी या ये विवाद उनकी राजनीतिक ताकत को कमजोर कर देगा?
निष्कर्ष
मध्य प्रदेश कांग्रेस में चल रहा यह विवाद न केवल पार्टी के भीतर के सत्ता संघर्ष को उजागर करता है, बल्कि यह समझने का एक अवसर भी है कि भारतीय राजनीति में आंतरिक मतभेद कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार की स्थिति से निपटना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन यह आवश्यक है ताकि पार्टी अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सके और जनता के सामने एक मजबूती से पेश हो सके।
आखिरकार, नेताओं के आपसी संबंध और उनकी रणनीतियाँ केवल व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं तक ही सीमित नहीं होतीं; वे संगठन के समग्र प्रदर्शन और सफलता के लिए भी महत्वपूर्ण होती हैं। मध्य प्रदेश कांग्रेस का ये द्वंद्व एक उदाहरण है कि कैसे आंतरिक संघर्ष राजनीतिक वाद-विवाद का कारण बन सकता है और नेतृत्व के संघर्ष का परिणाम संगठन की दिशा को प्रभावित कर सकता है।