राजा भर्तृहरि यहां करते थे होलिका दहन, नहीं जलती होली पर लगी ध्वजा

उज्जैन/इंदौर। सिंहपुरी में विश्व की सबसे प्राचीन होली पर्यावरण संरक्षण आैर संवर्धन का भी संदेश देती है। वनों को बचाने के लिए यहां लकड़ी से नहीं, बल्कि गाय के गोबर से बने कंडों से होलिका का दहन किया जाता है। इसकी सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पर स्वयं राजा भर्तृहरि होलिका दहन करने पहुंचते थे। पढ़ें, कौन थे राजा भर्तृहरि…
– उज्जयिनी को अब उज्जैन के नाम से जाना जाता है। यहां के राजा थे विक्रमादित्य।
– विक्रमादित्य के पिता महाराज गंधर्वसेन थे और उनकी दो पत्नियां थीं।
– महाराज गंधर्वसेन की एक पत्नी से विक्रमादित्य और दूसरी पत्नी के पुत्र भर्तृहरि थे।
– गंधर्वसेन के बाद उज्जैन का राजपाठ भर्तृहरि को मिला। क्योंकि भर्तृहरि विक्रमादित्य से बड़े थे।
– राजा भर्तृहरि की दो पत्नियां थीं, लेकिन फिर भी उन्होंने तीसरा विवाह किया पिंगला से।
– राजा ने पत्नी पिंगला के कारण अपना राजपाठ भाई विक्रमादित्य को सौंपकर संन्यास ले लिया था।
– राजा के संन्यास लेने के पीछे भिन्न कहानियां हैं। एक कथा के अनुसार भर्तृहरि की पत्नी पिंगला जब किसी और पुरुष से प्यार करने लगती है। तब भर्तृहरि संन्यासी बनकर राज्य छोड़कर दूर चले जाते हैं।
– जबकि दूसरी कहानी बिल्कुल इसके विपरीत है जिसमें रानी पिंगला पति से बेहद प्रेम करती है।
नहीं जलती ध्वजा…
– पं. यशवंत व्यास आैर धर्माधिकारी पं. गौरव उपाध्याय ने बताया सिंहपुरी की होली विश्व में सबसे प्राचीन आैर बड़ी है।
-पंं. व्यास के अनुसार सिंहपुरी की होली में राजा भर्तृहरि भी शामिल होते थे। यह होली राजा के देखरेख में तैयार होती थी।
– होलिका के ऊपर लाल रंग की एक ध्वजा भी भक्त प्रहृलाद के स्वरूप में लगाई जाती थी जो आज भी चलन में है।
– यह ध्वजा जलती नहीं है, जिस दिशा में यह ध्वजा गिरती है, उसके आधार पर ज्योतिष मौसम, राजनीति आैर देश के भविष्य की गणना करते हैं।