स्वामिनोमिक्स: भारत का कदम, ट्रम्प की मुड़ती नीति! जानें क्यों हमें चीन से प्रेरणा लेना चाहिए, न कि लाओस या पाकिस्तान से – यूएस टैरिफ्स के संदर्भ में।

भारत पर अमेरिकी टैरिफ: चीन से सीखने की जरूरत
परिचय
भारत के लिए वर्तमान वैश्विक आर्थिक परिदृश्य बेहद महत्वपूर्ण है, खासकर अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्तों में। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए गए उच्च टैरिफ का भारत पर गहरा असर पड़ा है। लेकिन, भारत को अपने व्यापार नीति पर ध्यान देना होगा और समझदारी से निर्णय लेने होंगे।
मोंटेक एसके अहलूवालिया की चेतावनी
भारत के पूर्व योजना आयोग के प्रमुख, मोंटेक एसके अहलूवालिया ने सरकार को यह सलाह दी है कि भारत को ट्रम्प के उच्च करों के लिए प्रतिशोधात्मक कदम उठाकर प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए। उनका मानना है कि इस तरह की प्रतिक्रिया केवल व्यापार युद्ध को और बढ़ाएगी। उन्होंने कहा कि संरक्षणवादी नीतियों की ओर मुड़ने से बचना चाहिए और समझौता और समन्वय का रास्ता अपनाना चाहिए।
पूरी बाजार अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता
जबकि कुछ लोग खुले बाजार और कम करों के पक्ष में हैं, इस लेख में प्रतिशोधात्मक कदमों का समर्थन किया गया है। यह आवश्यक नहीं है कि सभी टैरिफ उच्च हों; भारत को संतुलित नीति अपनानी चाहिए। व्यापार को खुला रखना महत्वपूर्ण है, लेकिन एक प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था के लिए उचित उपाय भी जरूरी हैं।
चीन का उदाहरण
अप्रैल में, चीन ने अमेरिकी सामानों पर 125% का टैरिफ लगाए जाने का उत्तर देते हुए 145% कर लगाया। फिर भी, चीन ने किसी अन्य देश पर यह कर नहीं लगाया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका उद्देश्य एकतरफा संरक्षणवाद नहीं है। व्यापार पर वार्ता और समझौतों के माध्यम से व्यापारिक संबंधों को सुधारना महत्वपूर्ण है। भारत को भी चीन के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन
ट्रम्प ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों का उल्लंघन किया है और मनमाने ढंग से कर लगाए हैं। भारत को चाहिए कि वह WTO के नियमों का पालन पर जोर दे। इसके साथ ही, यदि अमेरिका मनमाने ढंग से टैरिफ लगाता है, तो भारत को भी अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने का अधिकार है।
ट्रम्प का ‘टैरिफ किंग’ उपाधि
ट्रम्प ने भारत को पहले भी ‘टैरिफ किंग’ कहा था, जब उन्होंने भारत से आने वाले स्टील और एल्यूमीनियम पर टैरिफ लगाए थे। भारत ने 2019 में इस पर प्रतिक्रिया दी और कुछ अमेरिकी उत्पादों पर कर लगाया। बिडेन प्रशासन के दौरान, दोनों पक्षों ने करों को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाए, जिससे यह संकेत मिलता है कि भारत इस बार भी अपने हितों की रक्षा करने से पीछे नहीं हटेगा।
भारत की क्षमता
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ट्रम्प का सामना करने के लिए चीन के मुकाबले कमजोर है। लेकिन 2019 में भारत की प्रतिक्रिया ने यह साबित किया कि भारत कमजोर नहीं है। लाओस की तरह नहीं रहना चाहिए, जिसने सभी अमेरिकी वस्तुओं पर कर शून्य कर दिया, फिर भी उन पर कर लगाया गया।
अन्य विकल्प
भारत के पास केवल टैरिफ लगाने का विकल्प नहीं है। अमेरिका को चेतावनी देने के लिए भारत कह सकता है कि यदि अमेरिका उच्च कर लगाता है, तो इससे अमेरिका से युद्ध विमानों की खरीद प्रभावित होगी। यह केवल बातचीत का एक तरीका हो सकता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ेगा।
ट्रम्प की रणनीति
कई विशेषज्ञ यह मानते हैं कि ट्रम्प हमेशा समझौते से पीछे हट जाते हैं। भारत को इस स्थिति को समझना चाहिए और तैयार रहना चाहिए। यह जरूरी नहीं है कि हर बार एक समझौता संभव हो। अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ का उद्देश्य भारत पर सीधा हमला नहीं हो सकता; यह और भी जटिल वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य का हिस्सा हो सकता है।
रूस और भारत का संबंध
हाल में ट्रम्प ने भारत पर 25% का टैरिफ लागू किया है, जिसे कुछ लोग रूस पर एक अप्रत्यक्ष हमला मानते हैं। यह दिखाता है कि अमेरिका अपनी नीतियों को बदलने के लिए दूसरों पर दबाव बना सकता है। भारत को यह ध्यान में रखना चाहिए कि यह केवल व्यापारिक मुद्दा नहीं है, बल्कि एक व्यापक राजनीतिक परिदृश्य का हिस्सा है।
तनावपूर्ण स्थिति में धैर्य
भारत को जल्दबाजी करने की आवश्यकता नहीं है। अमेरिकी टैरिफ के आरोपों के बीच बातचीत चल रही है। समयसीमा को बढ़ाने के लिए भारत को अपने सामरिक विकल्पों का उपयोग करना चाहिए। लेकिन यह भी याद रखना जरूरी है कि भारत को अपना आत्म-स्थायी दृष्टिकोण बनाए रखना है।
निष्कर्ष
भारत को अपनी स्थिति को मजबूत करने और समझौते के लिए धैर्य रखने की आवश्यकता है। अमेरिका के उच्च टैरिफ के मामले में प्रतिक्रियात्मक कदम उठाने से पहले सोच-समझकर रणनीति बनानी चाहिए। इसके लिए भारत को अपनी नीतियों को समन्वित करना होगा, ताकि भविष्य में अमेरिकी व्यापारिक दबाव के खिलाफ एक कठोर और सुसंगत प्रतिक्रिया तैयार कर सके।
इस समय की स्थिति सिर्फ एक आर्थिक चुनौती नहीं है, बल्कि एक अवसर भी है भारत के लिए कि वह वैश्विक व्यापार में अपनी भूमिका को मजबूत करे। बशर्ते उसे सावधानीपूर्वक कदम उठाने होंगे और अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना होगा।




