छह माह में खुद खत्म हो जाएगा प्लास्टिक! कचरे के सबसे बड़े स्रोत पर लगाम

नई दिल्ली। दिल्ली-मुंबई हो या दुनिया का कोई दूसरा शहर, प्लास्टिक से पैदा होने वाला कचरा सबके लिए सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरा है। देश में 26,000 टन प्लास्टिक कचरा प्रतिदिन पैदा होता है। अकेले दिल्ली में प्रतिदिन 1117 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, लेकिन लगभग 23% कचरे का कोई प्रबंधन नहीं होता। प्लास्टिक-पॉलीथिन से पैदा होने वाला कचरा हजारों वर्षों तक नष्ट नहीं होता और किसी शहर के कुल कचरे में सबसे बड़ी और खतरनाक भूमिका निभाता है।
इसके कारण नालियों-नालों में जाम की समस्या पैदा होती है जिसके कारण बारिश का पानी भी नहीं निकल पाता और हल्की सी बारिश में भी दिल्ली-बंगलुरू जैसे शहर अपने ही पानी में डूबने लगते हैं। लेकिन दुनिया की यह सबसे बड़ी समस्या जल्द ही गुजरे जमाने की बात हो सकती है। बायो प्लास्टिक निमार्ता कंपनियों ने दावा किया है कि उन्होंने ऐसा प्लास्टिक बनाने में सफलता हासिल कर ली है जो छ: महीने में ही अपने आप नष्ट हो जाएंगे। यूपी के बलरामपुर की एक चीनी मिल ने इस विधि से प्लास्टिक उत्पादन का प्रयोग करना शुरू कर दिया है।
केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव अभय करंदीकर ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि बायो प्लास्टिक प्रदूषण से जूझती दुनिया के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरे हैं। गन्ना, चीनी, मक्के, घास जैसी चीजों से बनने वाले ये प्लास्टिक एक सीमित अवधि के बाद स्वयं समाप्त हो जाएंगे। इससे प्लास्टिक कचरे की समस्या से मुक्ति मिलेगी। इसका सबसे अधिक लाभ खाद्य पदार्थों की सप्लाई करने, वस्तुओं की पैकिंग और फार्मा सेक्टर में पैकिंग में उपयोग हो सकता है।
उखी इंडिया के प्रबंध निदेशक विशाल विवेक ने बताया कि सामान्य दिनचर्या में उपयोग होने वाली प्लास्टिक कभी नष्ट नहीं होती, बल्कि देश और पर्यावरण के लिए समस्या बन जाती है। जबकि बायो प्लास्टिक किसानों द्वारा उत्पादित भूसी और उच्छ घास जैसी चीजों से बनाई जाती है। इस तरह से उत्पादित प्लास्टिक का उपयोग सामान्य प्लास्टिक के जैसा ही होता है, लेकिन ये एक समय के बाद स्वत: नष्ट हो जाती है। इससे पर्यावरण को बचाने में मदद मिलती है। ये चीजें भारतीय किसानों के पास पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहती हैं। यह उनके लिए अतिरिक्त आय का माध्यम बन सकता है।
किसानों की आय बढाना हमेशा से केंद्र सरकार की प्राथमिकता रहा है। विशेषकर गन्ना किसानों को बेहतर मूल्य उपलब्ध कराना सरकार के लिए एक चुनौती रहा है। लेकिन यदि गन्ने से चीनी बनाने के साथ-साथ इसे प्लास्टिक उत्पादन से भी जोड़ा जाए तो इससे किसानों की समस्या कम हो सकती है। यह चीनी मिलों के लिए भी अतिरिक्त आय का जरिया बन सकती है। यानी इस तकनीकी से किसान, व्यवसाय, पर्यावरण और बायो इकोनॉमी को एक साथ लाभ होगा।
इस समय प्लास्टिक-पॉलीथिन का सबसे अधिक उपयोग खाद्य पदार्थों के पैकेजिंग सेक्टर में किया जाता है। तैयार भोजन या अन्य खाद्य पदार्थों को आॅनलाइन मंगवाने का चलन बढ़ने से इस सेक्टर में प्लास्टिक के उपयोग में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि एक समय बाद स्वत: नष्ट होने की प्रकृति के कारण ऐसे प्लास्टिक खाद्य वस्तुओं की पैकेजिंग में वरदान साबित हो सकते हैं क्योंकि पुराना पड़ते ही ये स्वयं नष्ट हो जाएंगे। इससे उपभोक्ताओं को एक सीमा से पुरानी वस्तुएं नहीं बची जा सकेंगी।