एनएफआरए की कंपनियों-फर्मों की होगी जांच, शीर्ष अदालत दंड संबंधी शक्तियां भी जांचेगी: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट चार्टर्ड अकाउंटेंट और अकाउंटिंग फर्मों को कारण बताओ नोटिस जारी करने, जांच करने और कदाचार के लिए दंडित करने की शक्ति के बारे में राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (एनएफआरए) की याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हो गया। एनएफआरए ने 7 फरवरी को दिए गए एक फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट के कुछ निदेर्शों पर आपत्ति जताते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट ने कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 132(4) की वैधता को बरकरार रखा, जो एनएफआरए को किसी भी आॅडिट के संबंध में व्यक्तिगत भागीदारों और सीए के साथ-साथ आॅडिटिंग फर्मों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का अधिकार देता है। हालांकि, इस फैसले में कई आॅडिटिंग फर्मों, जैसे डेलॉइट हास्किन्स एंड सेल्स एलएलपी और फेडरेशन आॅफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स एसोसिएशन को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस को इस आधार पर रद्द कर दिया कि एनएफआरए की ओर से अपनाई गई प्रक्रिया में स्पष्ट रूप से तटस्थता और निष्पक्ष मूल्यांकन के गुणों का अभाव था।
हाईकोर्ट ने कहा कि एनएफआरए के वही अधिकारी, जो आॅडिटिंग फर्मों और सीए को कारण बताओ नोटिस जारी करते हैं, मुद्दों की जांच के बाद दंड पर फैसला नहीं दे सकते। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने एनएफआरए की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर ध्यान देने के बाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ एनएफआरए की याचिका पर आॅडिटिंग फर्मों और अन्य को नोटिस जारी किया।
हालांकि, शीर्ष अदालत प्रथम दृष्टया इस दलील से सहमत नहीं थी कि एनएफआरए के तीन अधिकारियों को आॅडिटरों को कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद जांच निर्णय प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दी जाए और इस बीच उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाई जाए।
सोलन मेयर को किया बहाल, अयोग्यता को बताया राजनीतिक गुंडागर्दी
सुप्रीम कोर्ट ने सोलन की मेयर उषा शर्मा की अयोग्यता को राजनीतिक गुंडागर्दी बताते हुए उन्हें शेष कार्यकाल के लिए उनके पद पर बहाल कर दिया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 20 अगस्त, 2024 के अपने आदेश को निरपेक्ष करार दिया, जिसके तहत उसने उनकी अयोग्यता पर रोक लगा दी थी। पीठ ने उन्हें हटाने को पुरुष पक्षपात का मामला करार दिया था। पीठ ने मामले को एक साल बाद स्थगित करते हुए कहा, 20 अगस्त, 2024 के अंतरिम आदेश में किसी भी तरह का हस्तक्षेप करने पर परिणाम भुगतने होंगे। प्रतिवादियों के वकील देवदत्त कामत ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की, तो पीठ ने कहा कि वह वर्तमान में आदेश में कोई भी प्रतिबंध नहीं लगाना चाहती, क्योंकि यह राजनीतिक गुंडागर्दी का मामला है।
बंगाल के केस में केंद्र से वकील नहीं पहुंचने पर सुप्रीम फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार के दायर मुकदमे में केंद्र की ओर से विधि अधिकारी या वकील के उपस्थित नहीं होने पर चिंता जताते हुए कहा कि अदालत के प्रति थोड़ा शिष्टाचार दिखाएं। जस्टिस बीआर गवई और आॅगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि मामले की सुनवाई के समय न्यायालय में कोई विधि अधिकारी उपस्थित नहीं था। एक वकील ने पीठ को बताया कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जिन्हें इस मामले में न्यायालय में उपस्थित होना था, सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष एक अन्य मामले पर बहस कर रहे हैं। इस पर जस्टिस गवई ने कहा, किसी को तो यहां होना चाहिए।
17 कोर्ट हैं, तुषार मेहता हर जगह नहीं हो सकते
जस्टिस गवई ने कहा कि यहां 17 कोर्ट हैं, तुषार मेहता हर कोर्ट में नहीं हो सकते। बाद में एक अन्य मामले पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, पश्चिम बंगाल के मामले में आपकी तरफ से कोई नहीं आया। यह बहुत दुखद तस्वीर पेश करता है कि केंद्र महत्वपूर्ण मामलों में दिलचस्पी नहीं रखता है। आपके पैनल में बहुत सारे कानूनी अधिकारी हैं, बहुत सारे वरिष्ठ वकील हैं और एक भी वकील मौजूद नहीं था। सॉलिसिटर जनरल के अनुरोध पर, पीठ ने मामले को दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया।
दुष्कर्म मामले में बिहार सरकार व आईपीएस अधिकारी को सुप्रीम नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने आईपीएस अधिकारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने वाले पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ बिहार पुलिस की महिला अधिकारी की याचिका पर विचार करने को सहमत हो गया। महिला ने आरोप लगाया है कि उसने शादी का झूठा वादा करके उसके साथ दुष्कर्म किया था। कोर्ट ने मामले की सुनवाई अगले महीने 24 मार्च को तय की है। जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने मामले में बिहार सरकार और आईपीएस अधिकारी पुष्कर आनंद को नोटिस जारी किया है। महिला वर्तमान में पटना सीआईडी में पुलिस अधीक्षक (एसपी) के पद पर तैनात है।
इंदौर के पास भोपाल गैस त्रासदी के कचरे के निपटान पर केंद्र, मप्र सरकार को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के खतरनाक कचरे का इंदौर के पास निपटान करने के मामले में केंद्र, मध्य प्रदेश और उसके प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जवाब मांगा है। अब बंद हो चुकी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के लगभग 377 टन खतरनाक कचरे को भोपाल से 250 किलोमीटर और इंदौर से लगभग 30 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया गया। शीर्ष अदालत ने स्वास्थ्य के अधिकार और इंदौर शहर समेत आसपास के क्षेत्रों के निवासियों के लिए जोखिम के मौलिक मुद्दे को उठाने वाली याचिका पर ध्यान दिया। जस्टिस बीआर गवई व जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 3 दिसंबर, 2024 और इस साल 6 जनवरी के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति जताई।