टाइटैनिक के डूबने में भी हैं प्रोफेशनल्स के लिए सबक:खतरनाक है ओवरकॉन्फिडेंस, सेफ्टी और तैयारी है जरूरी

इतिहास में कुछ बड़ी घटनाएं आने वाले युगों के लिए एक सबक बन जाती हैं। समय बदल जाता है, लेकिन वो घटनाएं हमेशा जिंदा रहती हैं।

एक शानदार यात्रा

10 अप्रैल, 1912, साउथैम्प्टन, इंग्लैंड का ‘लग्जरी पैसेंजर टर्मिनल’. दुनिया भर से रईस जो करीब चार सालों से आज के दिन का इंतजार कर रहे थे, आज यहां एक साथ थे। उनकी आंखें विश्व के अब तक के सबसे बड़े और आलीशान जहाज, जिसे अनसिंकेबल (न डूबने योग्य) माना जा रहा था, में यात्रा करने के ख्याल से चमक रही थी।

ग्रीक पौराणिक कथाओं के ‘टाइटन्स देवों’ के आधार पर मिले नाम वाला जहाज ‘आरएमएस टाइटैनिक’ इंजीनियरिंग और डिजाइन का चमत्कार था। ये अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित था, जिसने इसे ऐश्वर्य और आधुनिकता का प्रतीक बना दिया था। इसमें शानदार केबिन, सुरुचिपूर्ण डाइनिंग हॉल, स्विमिंग पूल और यहां तक कि एक स्क्वैश कोर्ट भी था।

वाटर-टाइट कम्पार्टमेंट्स और एडवांस्ड कम्युनिकेशन सिस्टम्स सहित इसकी अत्याधुनिक तकनीक के कारण जहाज को ‘अनसिंकेबल’ माना गया था। घमंड से ‘सन नेवर सेट्स ऑन अवर एम्पायर’ कहने वाले ब्रिटिश लोगों का लग्जरी जहाज… जिसे अपने समय का सबसे सुरक्षित जहाज माना जाता था।

सिर्फ एक आइसबर्ग

अमेरिका के न्यूयॉर्क के लिए टाइटैनिक की यात्रा शुरू हुई। 2,200 से अधिक यात्री और चालक दल सवार थे। लेकिन फिर 14 अप्रैल, 1912 की रात को टाइटैनिक एक आइसबर्ग से टकराया, जिसके परिणामस्वरूप उसके तल में एक घातक मार लगी। जहाज को बचाने के प्रयासों के बावजूद, यह उत्तरी अटलांटिक के बर्फीले पानी में तेजी से डूबने लगा। और 111 वर्ष पहले आज ही के दिन अर्थात 15 अप्रैल को गहरे महासागर में समा गया।

लाइफबोट्स की कमी और अपर्याप्त सुरक्षा उपायों के कारण आपदा में 1,500 से अधिक यात्री और चालक दल के सदस्य मारे गए। टाइटैनिक का डूबना इतिहास में सबसे विनाशकारी समुद्री दुर्घटनाओं में से एक है, जो पेशेवरों और छात्रों के लिए समान रूप से गहरा सबक छोड़ जाती है।

तो इतनी भयंकर बड़ी दुर्घटना कैसे हो गई? किसी ने प्लानिंग नहीं की थी इससे निपटने की?

टाइटैनिक ट्रेजेडी से हमारे लिए लेसन

आइए लेते हैं इस दुखद घटना से हमारे हिस्से के दो बड़े सबक।

1) तैयारी और सुरक्षा उपाय 

‘टाइटैनिक’ जहाज का दुखद अंत पर्याप्त रूप से तैयार होने और मजबूत सुरक्षा उपायों के महत्व को रेखांकित करता है। इसकी उन्नत तकनीक के बावजूद, जहाज में अपने सभी यात्रियों और चालक दल के लिए पर्याप्त लाइफबोट्स नहीं थीं, और इसके सुरक्षा अभ्यास अपर्याप्त थे। कुल 48 लाइफबोट्स को रखने की जगह होने के बावजूद केवल 20 लाइफबोट्स रखी गई थीं। इनमें से भी चार बेकार थीं।

यूनिक लेसन – यह घटना स्टूडेंट्स और प्रोफेशनल्स को ओवरकॉन्फिडेंस से बचने और अपने प्रयासों में तैयारी और सुरक्षा को प्राथमिकता देने की सीख देती है। कॉर्पोरेट जगत में, आकस्मिक योजनाएं, जोखिम प्रबंधन रणनीतियां और सुरक्षा प्रोटोकॉल होने से संभावित जोखिमों को कम किया जा सकता है और आपदाओं को रोका जा सकता है।

2) नैतिक निर्णय लेना 

जहाज पर मौजूद 2200 यात्रियों में से केवल 700 को लाइफ बोट्स पर भेजा जा सका। जहाज के कप्तान और चालक दल को लाइफबोट के लिए कुछ यात्रियों को प्राथमिकता देना और कुछ को डूबते जहाज पर रोकने जैसे कठिन निर्णय लेने पड़े होंगे।

1997 में इस दुर्घटना पर इसी नाम से बनी फिल्म में, जहाज पर काम करने वाले लोगों के चरित्र को दर्शाने वाला एक मार्मिक दृश्य है। कप्तान, अफरा-तफरी को रोकने और माहौल को सामान्य बनाए रखने के उद्देश्य से कुछ (चार या पांच) वायलिन वादकों को संगीत के जरिये लोगो को शांत रखने का काम देता है। जब जहाज डूबने लगता है तो उनमें से एक वायलिन वादक कहता है कि अब हमें भी अपनी जान बचानी चाहिए। लेकिन उनमें से एक फिर से वायलिन बजाना शुरू कर देता है, और बाकी तीन भी उसका साथ देने के लिए लौट आते हैं। उस दृश्य में उन चारों की आंखों में अपनी ड्यूटी छोड़कर भागने का गिल्ट, और इस कारण अपनी ड्यूटी वापिस लौटने की भावना स्पष्ट देखी जा सकती है।

यूनिक लेसन – कहने का अर्थ यह है कि कैरेक्टर अर्थात चरित्र की असली पहचान संकट में ही होती है।

इन दो यूनिक लेसन्स के अलावा टाइटैनिक जहाज के डूबने की दुखद घटना से विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में अडॉप्टेशन, लीडरशिप स्किल्स, आपसी सहयोग, टीम-वर्क इत्यादि के सबक भी प्राप्त किए जा सकते है।