वुमन हेल्थ के दुश्मन फाइब्रॉइड्स:उम्र का बढ़ना, शादी-प्रेग्नेंसी में देरी, गलत लाइफस्टाइल हैं वजह, अनुष्का शंकर को रिमूव करवाना पड़ा यूट्रस
क्या आपका पेट प्रेग्नेंट महिला की तरह बढ़ा हुआ है? पीरियड्स में असहनीय दर्द झेलना पड़ता है? बार-बार यूरिन का प्रेशर बनता है? अगर हां…तो सावधान हो जाएं। भविष्य में यह लक्षण आपसे मां बनने की खुशी भी छीन सकते हैं।
दरअसल यह लक्षण यूट्रस की बीमारी के हो सकते हैं जिसमें मेडिकल भाषा में ‘फाइब्रॉइड्स’ कहा जाता है। इस बीमारी में यूट्रस यानी बच्चेदानी के अंदर या बाहर गांठें बन जाती हैं जिन्हें ट्यूमर कहते हैं। इससे महिला के पीरियड्स प्रभावित हो सकते हैं, वह एनीमिया (खून की कमी) की शिकार हो सकती है और बांझपन तक झेलना पड़ सकता है।
मशहूर सितारवादक अनुष्का शंकर ने फाइब्रॉइड्स होने के कारण अपना यूट्रस ही निकलवा दिया था। उनके यूट्रस में 13 ट्यूमर थे। इस वजह से उनका पेट 6 महीने की प्रेग्नेंट स्त्री की तरह दिखने लगा था।
फाइब्रॉइड्स को Uterine Fibroids, Fibromas, Myomas, Leiomyomas, Uterine Myomas के नाम से भी पुकारा जाता है। ये ट्यूमर कैंसर नहीं होता और न ही कैंसर की तरह फैलता है लेकिन स्त्री के लिए बहुत तकलीफदेह होता है।
अमेरिका के ऑफिस ऑन वुमन हेल्थ के अनुसार दुनियाभर में 80% महिलाओं को 50 साल की उम्र तक फाइब्रॉइड्स होते ही हैं। लेकिन कई महिलाओं में इसके लक्षण नहीं दिखते। उन्हें जिंदगीभर इसका पता भी नहीं चलता।
फाइब्रॉइड्स क्यों होते हैं, इसका कारण अभी तक साफ नहीं हो पाया है, लेकिन इसके पीछे हॉर्मोंस को कसूरवार ठहराया जाता है।
दरअसल, महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन नाम के हाॅर्मोंस होते हैं। पीरियड्स के दौरान ये हाॅर्मोंस यूट्रस लाइनिंग यानी गर्भाशय की दीवारों को रीजनरेट करते हैं और फाइब्रॉइड्स के उभरने का कारण बन जाते हैं।
मेनोपॉज के बाद दूर हो जाती है समस्या
नोएडा के कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर में गायनाकोलॉजिस्ट डॉक्टर मीरा पाठक कहती हैं कि यूट्रस में बनी गांठें ही फाइब्रॉइड्स हैं, जिसका आकार सेब के बीज जैसा छोटा या अंगूर जितना बड़ा हो सकता है।गांठ के साइज और पोजिशन की जांच करके ही फाइब्रॉइड्स का ट्रीटमेंट शुरू होता है। साइज छोटा है और तकलीफ भी नहीं है तो इलाज की जरूरत नहीं पड़ती। अगर गांठ का साइज छोटा है और दिक्कत हो रही है तो इसे दवाओं से कंट्रोल किया जाता है। लेकिन अगर फाइब्रॉइड्स का साइज बड़ा है और बाकी अंगों को दिक्कत पहुंचा रहा है तो सर्जरी करके फाइब्रॉइड्स को रिमूव किया जाता है।
मेनोपॉज के बाद यूट्रस छोटा होने के साथ ही फाइब्रॉइड्स छोटे या खत्म हो जाते हैं।
100 में से 60 फाइब्रॉइड्स साइलेंट ही होते हैं
सर गंगाराम हॉस्पिटल, दिल्ली में गायनाकोलॉजिस्ट डॉ. रुमा सात्विक के अनुसार 100 में से 60 फाइब्रॉइड्स साइलेंट होते हैं। यानी ये कोई समस्या पैदा नहीं करते। फाइब्रॉइड्स की लोकेशन, नंबर और साइज के हिसाब से बीमारी की शुरुआत होती है।
यूट्रस की 3 लेयर होती हैं। अंदर की लेयर एन्डोमीट्रीयम (Endometrium), बीच की परत को मायोमेट्रियम (mayometrium) और बाहरी परत पेरिमियम (Perimetrium) कहलाती है।
अगर गांठ गर्भाशय की अंदर की परत को छू रही है या आधी अंदर धंसी और आधी बाहर है, तब ये दर्द की वजह बनती है। इससे महिला को हैवी ब्लीडिंग होगी। गांठ बीच की परत पर बाहर की तरफ होने पर तकलीफ नहीं देती।
लेकिन अगर बाहर निकले फाइब्रॉइड्स 5-6 cm के हैं तो वे मांस की तरह लटकते हैं और प्रेशर बनाते हैं। इससे पेट में दर्द होता है और ब्लेडर पर भी असर पड़ता है जिससे बार-बार यूरिन का प्रेशर महसूस होता है।
जब इनका साइज 10cm तक हो जाता है तब पेट फूला हुआ दिखता है। अगर किसी महिला में इनका साइज 25cm है तब उसका पेट प्रेग्नेंट महिला की तरह नजर आने लगता है लेकिन आमतौर पर महिलाओं में 7cm तक का ही फाइब्रॉइड्स मिलते हैं।
प्रेग्नेंसी हो सकती है प्रभावित
कई बार फाइब्रॉइड्स इनफर्टिलिटी का कारण बनते हैं। डॉ. मीरा कहती हैं कि अगर किसी महिला को फाइब्रॉइड्स हैं तो जब भी उनकी प्रेग्नेंसी की शुरुआत होती है तब यह गांठें दिक्कत देने लगती हैं। इससे गर्भ नहीं ठहरता और मिसकैरिज हो जाता है।
अगर यह गांठ फैलोपियन ट्यूब में अटकी हैं तब भी वह फर्टाइल एग को यूट्रस में नहीं पहुंचने देगी।
वैसे भी प्रेग्नेंसी में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन का लेवल बढ़ जाता है जिससे फाइब्रॉइड्स का आकार बढ़ने लगता है। इससे भी मिसकैरिज का खतरा बढ़ जाता है और अगर ऐसा नहीं होता तो महिला को प्री मैच्योर लेबर पेन होने लगता है जिससे सिजेरियन डिलीवरी करनी पड़ती है।
वहीं, डॉ. रूमा के अनुसार यूट्रस का साइज 7cm होता है और अगर एक से ज्यादा गांठें हों तो उनका वजन यूट्रस को प्रभावित करता है। जिससे इनफर्टिलिटी की समस्या होती है। इससे यूट्रस में भूण के लिए जगह नहीं बन पाती।
40 की उम्र तक प्रेग्नेंसी न हुई हो या 1 ही बच्चा हो, तब फाइब्रॉइड्स की आशंका बढ़ती है
डॉ. रुमा सात्विक फाइब्रॉइड्स होने का सबसे बड़ा कारण जेनेटिक मानती हैं। इसके अलावा उम्र का भी बहुत अहम रोल होता है। वह कहती हैं कि 100 में से 20 महिलाओं में ही फाइब्रॉइड्स के लक्षण देखने को मिलते हैं। ये उम्र के साथ बढ़ते हैं और मामले भी तभी सामने ज्यादा आते हैं।
20-30 साल की उम्र में 6 में से 1 महिला में इन गांठों का पता चलता है, लेकिन 40 के पार हर 3 में 1 महिला में फाइब्रॉइड्स मिलते ही हैं।
जिन महिलाओं की उम्र 40 या उससे ज्यादा है और उन्हें अब तक प्रेग्नेंसी नहीं हुई या जिन महिलाओं को एक ही बच्चा हुआ है, उनमें भी इनके मिलने की आशंका ज्यादा रहती है। जिन महिलाओं को 30 से पहले 2 या ज्यादा बच्चे हो चुके हों, उनमें फाइब्रॉइड्स कम देखे जाते हैं।
अगर महिला की मां या बहन को फाइब्रॉइड्स की समस्या रही हाे तो ऐसी महिलाओं को फाइब्रॉइड्स होने का रिस्क उम्रभर बना रहता है। इसलिए फाइब्रॉइड्स की समस्या को जेनेटिक भी कहा गया है।
महिला की उम्र और प्रेग्नेंसी को देखकर तय होती है सर्जरी
डॉ. रूमा कहती हैं कि फाइब्रॉइड्स को रिमूव करने के लिए सर्जरी महिला की कंडीशन पर निर्भर करती है। सर्जरी से पहले महिला की उम्र, फाइब्रॉइड्स का साइज, लक्षण और महिला को बच्चा चाहिए या नहीं, सभी चीजों पर गौर किया जाता है। जिन महिलाओं को बच्चा चाहिए उनकी गांठों का साइज और लोकेशन देखकर ‘कंजरवेटिव सर्जरी’ की जाती है। इस सर्जरी में केवल फाइब्रॉइड्स को निकाला जाता है।
अगर महिला की उम्र 40 से ज्यादा है, बच्चा नहीं चाहिए और केवल एक ही फाइब्रॉइड्स है तो उनकी यूटरिन आर्टरी एम्बूलेशन (Uterine Artery Embolization) की जाती है। इसमें खून की नस जो फाइब्रॉइड्स की तरफ जा रही है, उसे ब्लॉक किया जाता है। इस प्रोसिजर में उस नस में इंजेक्शन लगाया जाता है। लेकिन जिनके मल्टीपल फॉइब्रॉइड होते हैं, उन्हें यह इलाज नहीं दिया जा सकता।
अगर महिला की उम्र 45 या 50 के पार है, उनके बच्चे हो चुके हों, दवाएं काम नहीं कर रही हों तब हिस्टेरेक्टॉमी यानी यूट्रस रिमूव किया जाता है। लेकिन यह बहुत कम मामलों में होता है। वैसे भी आजकल फाइब्रॉइड्स का बेहतर और असरदार इलाज मौजूद है। इस वजह से हिस्टेरेक्टॉमी बहुत तेजी से कम हुई है।
खराब लाइफस्टाइल भी जिम्मेदार
मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल, दिल्ली में गायनाकोलॉजिस्ट डॉ. अनुराधा कपूर के अनुसार फाइब्रॉइड्स खराब डाइट, स्ट्रेस, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, स्मोकिंग, ड्रिंकिंग और विटामिन डी की कमी से भी हो सकते हैं।
ये गांठें तब दिक्कत करती हैं जब इनका साइज 4.5cm से ज्यादा हो। लक्षण महसूस करते ही डॉक्टर को तुरंत दिखाना चाहिए।
फाइब्रॉइड्स से हो सकती है खून की कमी
फाइब्रॉइड्स सीधे पीरियड्स पर असर डालते हैं। इस वजह से महिला को पीरियड्स में हैवी ब्लीडिंग होती है। कुछ को 7 दिन से ज्यादा पीरियड्स चलते हैं। इससे उनके खून में रेड ब्लड सेल्स की कमी आ जाती है जिससे महिला एनीमिया की शिकार हो सकती है। खून की कमी उन्हें थकाने लगती है और शरीर कमजोर होता है।
फाइब्रॉइड्स, एंडोमेट्रियम और सिस्ट में फर्क
महिलाओं के रिप्रोडक्शन सिस्टम से जुड़ी कई बीमारियां होती हैं लेकिन अक्सर लोग फाइब्रॉइड्स, एंडोमेट्रियम और सिस्ट को लेकर कंफ्यूज हो जाते हैं।
फाइब्रॉइड्स और एंडोमेट्रियम का कनेक्शन यूट्रस से है लेकिन सिस्ट ओवरी के अंदर या ऊपर होता है। तीनों ही स्थिति में पीरियड्स दर्दनाक होकर इनफर्टिलिटी की वजह बन सकते हैं लेकिन फिर भी ये तीनों अलग हैं।
एंडोमेट्रियम में यूट्रस के अंदर जो एंडोमेट्रियम लाइनिंग होती है, उसी तरह की लाइनिंग यूट्रस के बाहर कहीं भी हो सकती है जो पैच की तरह दिखते हैं। ये ऐसे टिश्यू हैं जो ओवरी, ब्लैडर, फैलोपियन ट्यूब, आंतों के ऊपर कहीं भी हो सकते हैं। लेकिन फाइब्रॉइड्स केवल यूट्रस में होते हैं।
हर बार पीरियड्स होने पर शरीर के उस भाग पर जहां पैच बने होते हैं, वहां खून जमा होता रहता है जिससे यह सिस्ट बन जाता है।
पीरियड्स साइकिल को नॉर्मल रखना जरूरी
डायटीशियन कामिनी सिन्हा कहती हैं कि यूट्रस पर फैट की लेयर जमने से ही फाइब्रॉइड्स होते हैं। इससे यूट्रस का लचीलापन कम हो जाता है। जिन लड़कियों को यह प्रॉब्लम हो तो भविष्य में उन्हें पीसीओडी और पीसीओएस होने के चांस रहते हैं।
फाइब्रॉइड्स दुबली और भारी बदन वाली दोनों तरह की लड़कियों को हो सकते हैं। इसमें पीरियड्स साइकिल को नॉर्मल रखना बेहद जरूरी है। नॉर्मल पीरियड्स के लिए दूध में हल्दी डालकर पीना चाहिए या अश्वगंधा लेना चाहिए।
जिनको फाइब्रॉइड्स की दिक्कत है, उन्हें अपना लाइफस्टाइल बदलना बेहद जरूरी है क्योंकि इससे कई बार फाइब्रॉइड्स ठीक हो जाते हैं।
प्राचीन यूनान में पकड़ में आई थी यह बीमारी
प्राचीन यूनान में पहली बार स्त्रियों में फाइब्रॉइड्स पहचाने गए। इसे तब पथरी समझा जाता था। दूसरी सदी में इसे Scleromas कहा गया यानी वह बीमारी जो टिश्यूज की एब्नॉर्मल ग्रोथ की वजह से होती है।
वहीं, 14वीं से 16वीं सदी में यूरोप में यह भी समझा जाता था कि जिन महिलाओं की बच्चेदानी में गांठें हैं, उनके शरीर पर भूत-प्रेत का कब्जा होता है। ‘फाइब्रॉइड्स’ शब्द का पहली बार इस्तेमाल 1860 में किया गया।