कैसे 5 बिलियन डॉलर होगा भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट:बड़े हथियारों में नहीं, पुर्जों और गोलियों में ट्रेड सीक्रेट…84 देश हमारे ग्राहक
भारत दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार और डिफेंस उपकरणों का आयात करने वालों में से एक है। 2017 से 2021 के बीच के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में हुए डिफेंस इम्पोर्ट्स में भारत की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा 11% थी।लेकिन भारत की एक तस्वीर और भी है। भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट पिछले 5 साल में 334% बढ़ गया है।जी हां, हम डिफेंस इक्विपमेंट्स का एक्सपोर्ट करते हैं और बहुत तेजी से बढ़ा रहे हैं। 2021-22 में हमारा एक्सपोर्ट करीब 13 हजार करोड़ रुपए का रहा था।अब सरकार का लक्ष्य 2025 तक ये एक्सपोर्ट बढ़ाकर 5 बिलियन डॉलर यानी करीब 42 हजार करोड़ रुपए तक ले जाना है।
जो देश खुद दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार और डिफेंस इक्विपमेंट आयात करता हो, वो दूसरे देशों को कौन से हथियार बेचेगा?जवाब बड़े जंगी जहाजों, लड़ाकू विमानों और तोपों में नहीं हैं। इन सवालों का जवाब उन छोटी-छोटी चीजों में है जिनका जिक्र अखबारों की सुर्खियों में नहीं आता।बंदूकों के पुर्जों से लेकर विमानों के कॉम्पोनेंट्स तक, गोलियों से लेकर तोपों के गोलों तक डिफेंस सेक्टर का ये वो बाजार है जहां अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे बड़े खिलाड़ी मुनाफा नहीं देखते।भारत डिफेंस सेक्टर के इसी बाजार में खुद को बड़ा खिलाड़ी बनाना चाहता है।जानिए, कैसे भारत छोटी चीजों के बाजार के रास्ते ग्लोबल डिफेंस ट्रेड में बड़ी जगह बना सकता है…
एक्सपोर्ट की वैल्यू ही नहीं, ये भी देखो कितने देशों को एक्सपोर्ट हो रहा
दुनिया का सबसे बड़ा डिफेंस एक्सपोर्टर अभी अमेरिका है। 2017 से 2021 के बीच के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका ने कुल 103 देशों को निर्यात किया है।जबकि दूसरे सबसे बड़े एक्सपोर्टर रूस ने 45 देशों को निर्यात किया।इनके मुकाबले देखा जाए तो भारत अभी 84 देशों और क्षेत्रों को डिफेंस इक्विपमेंट एक्सपोर्ट करता है।ज्यादा से ज्यादा देशों को डिफेंस इक्विपमेंट निर्यात करने का मतलब है बिजनेस का दायरा बढ़ाना।भारत से डिफेंस इक्विपमेंट्स खरीदने वालों में अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस जैसे बड़े देश हैं तो मॉरिशस, केन्या, मोजाम्बिक और सेशेल्स जैसे छोटे देश भी हैं।
बड़े हथियार नहीं, कॉम्पोनेंट्स पर फोकस…यानी लागत कम, मुनाफा ज्यादा
भारत अभी करीब 14 या 15 तरह के अलग-अलग डिफेंस उत्पादों का निर्यात करता है।इनमें से दो तरह के हेलिकॉप्टर और चार तरह बोट्स और छोटे जहाज छोड़कर बाकी सभी चीजें कॉम्पोनेंट्स बेस्ड हैं।
यानी ये उत्पाद किसी बड़े डिफेंस सिस्टम में इस्तेमाल होने वाले छोटे कॉम्पोनेंट्स हैं। उदाहरण के लिए हम पूरा लड़ाकू विमान के बजाय उसमें इस्तेमाल होने वाले टारगेटिंग सिस्टम का उत्पादन करें। इनके लिए दो तरह के ग्राहक भी हैं। एक तो वो देश हैं जो इस तरह के डिफेंस सिस्टम्स बनाते हैं। वो इन पुर्जों को खुद बनाने के बजाय भारत से खरीदना ज्यादा फायदेमंद समझते हैं। दूसरे ग्राहक वो देश जो इन डिफेंस सिस्टम्स का इस्तेमाल करते हैं और इनकी सर्विसिंग या मेंटेनेंस के लिए उन्हें कॉम्पोनेंट्स की जरूरत पड़ती है।इन कंपोनेंट्स को बनाने की लागत पूरे डिफेंस सिस्टम को बनाने से बहुत कम है। जबकि इसमें मुनाफा ज्यादा है।
हमारे उत्पाद वो जो डिफेंस सिस्टम जो ग्राहकों की निर्भरता बढ़ाते हैं
बंदूक एक बार खरीदी जाती है, लेकिन गोलियां खरीदने की जरूरत बार-बार पड़ती है। भारत की डिफेंस एक्सपोर्ट स्ट्रैटजी भी अभी कुछ इसी सिद्धांत पर चल रही है।भारत ने एयरो कॉम्पोनेंट्स यानी जहाजों के पुर्जों से लेकर बंदूकों के पुर्जों, बैटरी और ऐसे सब-सिस्टम्स के प्रोडक्शन पर ज्यादा फोकस रखा है, जिनकी जरूरत बार-बार पड़ सकती है।भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम्स और इंजीनियरिंग सर्विस का इस्तेमाल 9 बड़े देश करते हैं।डिफेंस सिस्टम्स या हथियार बेचने वाले देश अक्सर इनकी सर्विसिंग का कॉन्ट्रैक्ट भी करते हैं। मगर इस सर्विसिंग के लिए जरूरी कॉम्पोनेंट्स वे खुद बनाने के बजाय भारत जैसे देशों से खरीदने में ज्यादा फायदा देखते हैं।
डिफेंस सेक्टर में बढ़त के लिए प्राइवेट सेक्टर को अब ज्यादा छूट
डिफेंस सेक्टर में एक्सपोर्ट बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका प्राइवेट सेक्टर की है। भारत सरकार ने निजी कंपनियों के लिए कई सुविधाएं भी बढ़ाई हैं।टाटा और महिंद्रा जैसे बड़े ग्रुप्स तो डिफेंस मैन्युफैक्चरर्स की लिस्ट में पहले ही हैं। अब इस लिस्ट में शामिल होने की प्रक्रिया को सरकार ने आसान किया है।
साथ ही बंदूकों के कॉम्पोनेंट्स, गोलियां और इसी तरह की कई चीजों का सिविल यूज के लिए एक्सपोर्ट करने की भी अनुमति दी गई है। हालांकि ये विदेश मंत्रालय से कंसल्टेशन के बाद ही किया जा सकता है।यही नहीं, सरकार ने DRDO और डिफेंस पब्लिक सेक्टर कंपनियों को ग्लोबल टेंडर्स की प्रक्रिया में भी शामिल होने की इजाजत दी है।
ध्रुव और चेतक जैसे हेलिकॉप्टर हों या मरीन पेट्रोलिंग वेसल्स…छोटे देशों में बड़ा बाजार
HAL के बनाए देश के पहले स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस की चर्चा बहुत ज्यादा होती है। पिछले साल सरकार ने ये भी कहा था कि तेजस खरीदने में ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने भी रुचि दिखाई है।
लेकिन ऐसी डील्स का आकार इतना बड़ा होता है और इस सेगमेंट में कॉम्पिटिशन इतना ज्यादा है कि मार्केट का आकार बहुत छोटा हो जाता है।इसकी तुलना में HAL के ही बनाए दो हेलिकॉप्टर ध्रुव और चेतक एक्सपोर्ट के लिए बेहतर उत्पाद साबित हुए हैं।ध्रुव 3 देशों में और चेतक 4 देशों में एक्सपोर्ट किया गया है। ये कोई बड़े देश नहीं, बल्कि मॉरिशस, मोजाम्बिक, मालदीव्स, सेशेल्स और नामीबिया जैसे छोटे देश हैं।इसके अलावा समुद्री इलाके में निगरानी, अवैध बोट्स को रोकने और छोटे स्ट्राइक शिप्स के मामले में भी भारत में बनाए गए वेसल्स छोटे देशों को पसंद आते हैं।