संघर्षों भरा रहा हिंदुत्व राजनीति के नायक का सफर, ये किस्से हैं बाबूजी के
अलीगढ़ की अतरौली तहसील के गांव मढ़ौली गांव में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे कल्याण सिंह प्रदेश की राजनीति के शिखर पर पहुंचे। बचपन से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाते थे। उच्च शिक्षा हासिल कर अतरौली के एक इंटर कॉलेज में अध्यापक बने। 1967 में पहली बार अतरौली से विधायक बने और 1980 तक लगातार जीते।
राममंदिर आंदोलन के सबसे बड़े चेहरे और दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे स्व.कल्याण सिंह की जयंती आज है। हिंदुत्व की राजनीति के नायक का खिताब पाने वाले राजनीति के इस दिग्गज पुरोधा के राजनीतिक सफर पर गौर करें तो संघ के स्वयं सेवक से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक का सफर बेहद संघर्ष भरा रहा है। उन्होंने पद पर बने रहने के लिए कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। इसी का परिणाम रहा कि अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलवाने से इंकार कर दिया।
अब विशाल वट वृक्ष बन चुकी इस पार्टी को कल्याण सिंह व उनके सहयोगियों ने ही शुरुआती दिनों में सींचा था। जब देश में भाजपा का उभार हुआ तो 1991 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो वे मुख्यमंत्री बने। कल्याण सिंह के साथ आपातकाल के दौरान जेल जा चुके राजेंद्र वार्ष्णेय चीफ कहते हैं कि बाबूजी ने प्रदेश में जनसंघ के बाद भाजपा को खड़ा करने में दिनरात एक किया। आज उसी का परिणाम है कि भाजपा यहां खड़ी है।जब बिके बाबू जी के पोस्टर