इन पाकिस्तानी लड़कियों ने बताया भारत के बारे में क्या सोचता है उनका देश

चंडीगढ़।सुरैया इस्लाम और आलिया हरीर सोशल वर्कर हैं, जो पाकिस्तान से हैं। गुरुवार को वे दोनों चंडीगढ़ में थी और भास्कर से बातचीत में उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच दोस्ती और दुश्मनी पर बात की। दोनों का मानना है कि दोस्ती करना दुश्मनी करने से ज्यादा आसान है। जानिए और क्या कहा सुरैया और आलिया ने…
– ‘भारत में पाकिस्तान को दुश्मन समझा जाता है, पाकिस्तान में भारत को।
– स्कूल की किताबों से लेकर फिल्मी दुनिया तक दोनों देशों को ऐसे ही दिखाया जाता रहा है, जबकि हम सब एक ही तो हैं।
– एक ही तरह की बोलचाल, कपड़े पहनने का तरीका, भाषा और यहां तक कि गालियां तक एक जैसी हैं तो फिर दुश्मनी किस बात पर है।
– इस दुश्मनी की सोच को तोड़ने के लिए हमने शुरू किया था ‘आगाज-ए-दोस्ती’।
– इसका मकसद दोनों देशों के स्कूली बच्चों की एक दूसरे से बातचीत करवाना है ताकि वह समझ सकें कि भारत और पाकिस्तान के लोग एक जैसे ही हैं।
– दोनों देशों के लोगों के दिल इतने छोटे नहीं कि वे एक-दूसरे को समझ न सकें।
– सुरैया इस्लाम और आलिया हरीर के यह विचार उनके प्रयास आगाज-ए-दोस्ती के बारे में हैं।
– इसके तहत उन्होंने पाकिस्तान से लाहौर, इस्लामाबाद और कराची के स्कूली बच्चों को मुंबई और दिल्ली के बच्चों से मिलाया।
– इन दोनों लड़कियों के इस प्रयास को बुधवार को दिल्ली में डिजिटल एम्पावरमेंट फाउंडेशन ने कम्युनिकेशन एडवोकेसी एंड डेवलपमेंट कैटेगरी में अवॉर्ड देकर सम्मानित किया।
ऐसे बना ‘आगाज-ए-दोस्ती’
सुरैया और आलिया दोनों ‘आगाज-ए-दोस्ती’ नाम के प्रोजेक्ट चलाती हैं, जिसका मकसद दोनों देशों के स्कूली बच्चों की एक-दूसरे से बातचीत करवाना है।
– आलिया ने कहा कि ‘आगाज-ए-दोस्ती’ का विचार उन्हें 2011 में आया था।
– उस दौरान वे अमेरिका में स्टूडेंट्स एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत गई थीं, जहां भारतीय स्टूडेंट्स भी थे।
– उसी साल पाकिस्तान की टीम भारत से वर्ल्ड कप में हार गई थी।
– भारतीय स्टूडेंट्स हमें यह पूछकर अक्सर चिढ़ाते कि तुम्हें पता है कि इस बार भारत ने पाकिस्तान को कितने रनों से हराया।
– खैर, मुझे पहले तो लगा कि भारत के स्टूडेंट्स सच में दुश्मन हैं।
– एक दिन उसी प्रोग्राम में मेरी तबीयत बिगड़ गई, जिसके बाद भारतीय स्टूडेंट्स ने ही मेरी मदद की, मेरा ख्याल रखा। यहीं से मेरे विचारों में बदलाव आया।
– मैंने सोचा कि दोनों देशों के स्टूडेंट्स अगर एक-दूसरे से बात करें तो शायद उनके मन में इतनी नफरत न हो, बस ऐसे ही हमनें आगाज-ए-दोस्ती कॉन्सेप्ट पर काम शुरू किया।
– इन दोस्तों में से एक सुरैया भी थी। हमनें सोशल साइट्स के जरिए दिल्ली के यूथ से संपर्क किया, जिन्होंने हमारे इस प्रोजेक्ट में मदद की।
इसलिए गद्दार कहलाते हैं
– हमारे इस प्रोजेक्ट को कागजों से हक़ीक़त में लाना काफी मुश्किल था।
– पहले स्कूलों में परमिशन लेने में ही कई महीनें लगे। स्कूल की प्रिंसिपल से लेकर एजुकेशन डिपार्टमेंट तक की परमिशन ली जानी थी।
– बड़ी मुश्किल से यह मिली तो हमें स्टूडेंट्स द्वारा पूछे जाने वाले सवालों की लिस्ट भी पहले जारी करने को कहा गया।
– खैर, दिल्ली में हमारे दोस्तों ने भी मुंबई और दिल्ली में स्कूलों से संपर्क करने में मदद की।
– हमारे इस प्रयास को हमारे देश में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता।
– यहां तक कि कई लोग हमें गद्दार तक कहते हैं, हालत तब और खस्ताहाल होती है जब सरहद पर तनाव होता है, हमारे अकाउंट से लेकर कॉल डिटेल तक की जानकारी हमसे ली जाती है।
– लेकिन फिर भी हम चाहते हैं कि युवा पीढ़ी ऐसे विचारों से एक-दूसरे को नफरत की निगाहों से न देखें, हम कोशिश कर रहे हैं और करते रहेंगे।