आर्मी को मिलेगी नेक्स्ट जेनरेशन राइफल: मारेगी या जख्मी करेगी? बहस जारी

नई दिल्ली. एक राइफल आतंकी या दुश्मन को मारने के काम आए या फिर उसे सिर्फ घायल करे? न्यू-जेनरेशन राफइल को लेकर जारी यह बहस अभी भी खत्म नहीं हो पाई। आर्मी के टॉप जनरल्स इसके बेसिक्स पर डिबेट कर रहे हैं लेकिन बॉर्डर पर लड़ने वाले जवानों के पास कैसा हथियार रहेगा, इस पर अगले हफ्ते चर्चा होगी। क्या है ये प्रोजेक्ट, जल्द होगा फैसला…
 – राफइल प्रोजेक्ट के लिए 4850 करोड़ रुपया दिया गया था। मकसद था कि इंटरचेंजेबल बैरेल वाली नई राइफल्स का इस्तेमाल कन्वेंशनल वॉर या काउंटर ऑपरंशस के वक्त हो सके। लेकिन इस प्रोजेक्ट को पिछले साल खत्म कर दिया गया।
– अब आर्मी के कमांडर्स 25 से 30 अप्रैल तक कॉन्फ्रेंस करेंगे, जहां आगे का प्लान तय होगा।
– एक सूत्र ने बताया, ”कॉन्फ्रेंस में अहम चर्चा यह होगी कि आर्मी को 5.56mm राइफल दिया जाए, जो कि दुश्मनों को जख्मी कर दे या फिर 7.62mm राइफल जो कि दुश्मनों को मार डाले।”
– ”नए टेक्नीकल पैरामीटर्स लागू होने के पहले राइफल के कैलिबर, रेंज और इसके वजन का मामला सुलझाना होगा।”
क्यों हो रही है बहस?
– आर्मी के सूत्रों के मुताबिक, 5.56mm राफइल जंग के लिए बेहतर हैं जो कि दुश्मन को तुरंत जख्मी कर देते हैं।
– वहीं 7.62mm एक किलिंग राइफल है। इसकी गोली लगने के बाद सामने वाले शख्स के बचने की उम्मीद न के बराबर रहती है।
– खासकर आतंकियों के खात्मे में इसका इस्तेमाल होता है। लेकिन इससे भी अहम है कि गोली मारी कहां जा रही है।
– सूत्रों का कहना है, ”वैसे सभी जवान 7.62mm राइफल को ज्यादा तवज्जो देते हैं, जोकि ज्यादा देर तक फायर कर सकती है। इसके बाद इंसास (इंडियन ऑर्म्स स्मॉल सिस्टम) 5.56mm का नंबर आता है। इन राइफल्स का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में काउंटर-टेरेरिज्म के लिए ज्यादा होता है।”