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चीन के राष्ट्रपति ने भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए मुरमू को भेजा गुप्त पत्र

प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा: एक नई शुरुआत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को एक महत्वपूर्ण यात्रा पर चीन और जापान जा रहे हैं। यह यात्रा विशेष रूप से इसलिए उल्लेखनीय है क्योंकि पीएम मोदी लगभग सात वर्षों से चीन का दौरा नहीं कर पाए थे। पिछले कुछ समय में, दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव बढ़ गया था, खासकर गालवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच टकराव के बाद। लेकिन हाल के महीनों में, भारत और चीन ने अपने संबंधों को सुधारने के प्रयास तेज कर दिए हैं।

चीन-भारत संबंधों का इतिहास

भारत और चीन के संबंध ऐतिहासिक और जटिल हैं। दोनों देशों की लंबे समय से चली आ रही सामरिक प्रतिस्पर्धा के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध भी रहे हैं। 1962 में युद्ध के बाद से दोनों देशों के बीच कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। इस दौरान, दोनों देशों ने विभिन्न अवसरों पर संवाद का सहारा लिया है। हाल के वर्षों में, चीन ने भारतीय बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जबकि भारत ने भी अपनी कूटनीति को बदलने की कोशिश की है।

मोदी की यात्रा का महत्व

इस यात्रा का एक अहम पहलू यह है कि मोदी एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) शिखर सम्मेलन में भाग लेने जा रहे हैं, जहां वे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मुलाकात करेंगे। यह एक ऐसा मंच है जहां ये तीनों देश महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं, जिससे क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा मिल सके।

हाल ही में, मोदी सरकार ने संबंधों को पटरी पर लाने के लिए कई सकारात्मक कदम उठाए हैं। हाल में, प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच प्रत्यक्ष संवाद हुआ है, जिसमें दोनों नेताओं ने मतभेदों को कम करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई।

अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों का प्रभाव

एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान लागू किए गए टैरिफ ने भारत-चीन को निकट लाने में मदद की। ट्रम्प के व्यापारिक नीतियों का भारत के निर्यात पर सीधा प्रभाव पड़ा। इसने भारत को अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक संबंधों की फिर से समीक्षा करने को मजबूर कर दिया।

जून 2023 में, जब भारत ने अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता पूरी की, तब चीन की ओर मोदी के रिश्तों को बेहतर बनाने के प्रयासों में तेजी आई। भारतीय अधिकारियों का मानना है कि यह महत्वपूर्ण समय है, जब भारत अपनी रणनीति को पुनः निर्धारित कर सकता है।

गालवान संघर्ष के बाद की स्थिति

गालवान संघर्ष के बाद, मोदी ने चीन के साथ तनाव को कम करने की दिशा में कई प्रयास किए। 2020 में इस संघर्ष ने दोनों देशों के बीच संबंधों को अत्यधिक तनावित कर दिया था। इसके बाद बैक चैनल बातचीत जारी रही और दोनों पक्षों ने पीछे हटने वाले सैनिकों से संबंधित विवादों को सुलझाने की कोशिश की।

हालांकि, इसे सफल नहीं माना गया। 2023 में जोहान्सबर्ग में होने वाली ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में मोदी और जिनपिंग की बैठक को रद्द कर दिया गया, इससे यह स्पष्ट होता है कि अभी भी कई मुद्दे ऐसे हैं जिनका समाधान होना बाकी है।

द्वीपक्षीय बैठकों की सफलता

पीएम मोदी के नेतृत्व में, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीनी समकक्ष वांग यी से बीजिंग में मुलाकात की। इस बैठक का उद्देश्य दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाना और समस्याओं का समाधान करना था। चीन ने भारत को उर्वरक और दुर्लभ सामग्री की आपूर्ति का आश्वासन दिया है, जो भारत के कृषि क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, मोदी सरकार ने चीनी पर्यटकों के लिए वीजा आवंटित करने की प्रक्रिया को भी सुगम बनाया है।

भविष्य की राह

चीन यात्रा पीएम मोदी के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो कूटनीति के माध्यम से द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में एक नई शुरुआत कर सकता है। यह यात्रा न केवल भारत और चीन के बीच संवाद को बढ़ावा देगी, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग को भी सुनिश्चित कर सकती है।

आने वाले समय में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या ये प्रयास सकारात्मक परिणाम लाएंगे। भारत और चीन के संबंधों में सुधार केवल आर्थिक विकास के लिए नहीं, बल्कि व्यापक रणनीतिक स्थिरता के लिए भी आवश्यक है।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा न केवल भारत और चीन के लिए, बल्कि समस्त क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण घटना है। समय का सही उपयोग करते हुए, मोदी को चाहिए कि वे अपने उद्देश्यों को स्पष्ट करें और विश्वास का वातावरण बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाएं। भविष्य में क्या परिणाम निकलते हैं, यह तो समय बताएगा, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि संवाद और सहयोग ही दोनों देशों के बीच शांति और स्थिरता का मार्ग प्रशस्त करेगा।

वैश्विक राजनीति में हवा का रुख तेजी से बदल रहा है, और ऐसे में भारत के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह अपनी कूटनीतिक नीति को मजबूती से स्थापित करे। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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