बड़ी कामयाबी: मलेरिया की रोकथाम के लिए आ गई पहली स्वदेशी वैक्सीन

नई दिल्ली । मच्छरजनित बीमारियां भारत में हर साल स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त दबाव बढ़ाती जा रही हैं। विशेषतौर पर मानसून के दिनों में इसका खतरा काफी बढ़ जाता है। डेंगू-मलेरिया, चिकनगुनिया जैसी बीमारियों के कारण बड़ी संख्या में न केवल लोगों को अस्पतालों में भर्ती होने की जरूरत पड़ती है, बल्कि इसके जानलेवा दुष्प्रभाव भी देखे जाते रहे हैं। इस दिशा में भारतीय वैज्ञानिकों को अब बड़ी कामयाबी हाथ लगी है।
भारत ने मलेरिया की रोकथाम के लिए अपना पहला टीका तैयार कर लिया है। जल्द ही टीके के उत्पादन के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) निजी कंपनियों के साथ समझौता करने की तैयारी में है। विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई है कि इससे न सिर्फ अस्पतालों पर पड़ने वाले दवाब को कम किया जा सकेगा बल्कि रोगियों की जान बचाने में भी मदद मिल सकेगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की नवीनतम विश्व मलेरिया रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में दुनियाभर में मलेरिया के अनुमानित 263 मिलियन (26.3 करोड़) मामले सामने आए और 5.97 लाख लोगों की मौत हो गई। टीका आने के बाद मौत के जोखिमों को और कम किया जा सकता है।
भारत ने अपनी व्यापक रणनीति और अथक प्रयासों से मलेरिया की रोकथाम में सफलता पाई है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मलेरिया के अनुमानित मामलों की संख्या 2017 में 64 लाख से घटकर 2023 में 20 लाख रह गई, जो 69% की गिरावट है। इसी प्रकार, इसी अवधि में मलेरिया से होने वाली मौतें 11,100 से घटकर 3,500 हो गई, जो 68% की कमी है। अब स्वदेशी टीके के निर्माण से मलेरिया के खिलाफ लड़ाई को और मजबूती मिलने की उम्मीद है।
आईसीएमआर ने जानकारी दी है कि मलेरिया के टीके की खोज पूरी कर ली गई है। इसे फिलहाल एडफाल्सीवैक्स नाम दिया है, जो मलेरिया परजीवी प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के खिलाफ पूरी तरह असरदार पाया गया है। आईसीएमआर और भुवनेश्वर स्थित क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र (आरएमआरसी) के शोधकतार्ओं ने मिलकर यह स्वदेशी टीका तैयार किया है।
वर्तमान में, मलेरिया के दो टीके (फळर,र/अर01 (मॉस्किरीक्स) और फ21/मैट्रिक्स-ट) उपलब्ध हैं और इनकी कीमत ?250 से ?830 प्रति खुराक के बीच है। इनकी प्रभावकारिता दर 33 प्रतिशत से 67 प्रतिशत के बीच है। विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा टीकों के विपरीत, एडफाल्सीवैक्स दोहरे चरण की सुरक्षा प्रदान करता है और किफायती भी है।
आरएमआरसी के वैज्ञानिक डॉ. सुशील सिंह ने कहा कि नया टीका मानव संक्रमण को रोक सकता है। एडफाल्सीवैक्स व्यापक सुरक्षा प्रदान कर सकती है। इसमें ढा२230 और ढा२48/45 प्रोटीन का एक नया मिश्रण शामिल है जो संक्रमण को रोकने वाले मजबूत एंटीबॉडी बनाता है।
एडफाल्सीवैक्स को मौजूदा टीकों से अलग बनाने वाली बात इसकी फार्मास्युटिकल स्टेबिलिटी है। यह फॉमूर्ला कमरे के तापमान पर नौ महीने से ज्यादा समय तक प्रभावी रहता है, जिससे महंगी कोल्ड चेन लॉजिस्टिक्स की जरूरत खत्म हो जाती है, जो दूरदराज और संसाधन-सीमित क्षेत्रों में टीका वितरण में एक बड़ी बाधा बनी हुई है। आरएमआरसी की निदेशक डॉ. संघमित्रा पति ने कहा, वैक्सीन की प्रभावकारिता एक दशक से ज्यादा समय तक सुरक्षा प्रदान कर सकती है।