दरगाह का खास प्रोटोकॉल…ये ख्वाजा ए चिश्त की आरामगाह, चलो अदब से

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में उर्स के अलावा साल भर तक अकीदतमंद का सैलाब उमड़ता है। यहां सर्वपंथ समभाव की झलक देखने को मिलती है। गरीब नवाज ने अपनी शिक्षाओं में परस्पर प्रेम, अदब, भाईचारा और सौहार्द को ही तवज्जो दी। यही वजह है, कि उनके सूफीयाना फलसफे का संदेश देश-दुनिया को राह दिखा रहा है।

गरीब नवाज की दरगाह में कई बादशाहों, सम्राटों ने मस्जिदें, दरवाजे, दालान, महफिलखाना और अन्य इमारतें बनवाई। यह सभी इमारतें अपनी भव्यता, सजावट और कारीगरी के लिए मशहूर हैं। अमूमन सभी इमारतों पर खास तकरीरें, संदेश और कुरान की आयतें लिखी हैं। लेकिन निजाम गेट के बाद बना शाहजहांनी गेट इनमें सबसे अलग है। गेट के ऊपर फारसी भाषा में लिखी पंक्तियां सबको नायाब संदेश देती हैं।

सर के बल धीरे-धीरे…

शाहजहांनी गेट पर लिखी पंक्तियों के बारे में खादिम इलियास महाराज ने बताया कि यह वास्तव में दरगाह में आने वाले जायरीन के लिए विशेष हिदायत (प्रोटोकॉल) है। इसमें लिखा है, ‘सर के बल चलो, धीरे-धीरे चलो, क्योंकि ये ख्वाजा ए चिश्त की आरामगाह है।Ó इसका आशय है कि गरीब नवाज की दरगाह में आने पर जायरीन को किस तरह शांतिपूर्ण तरीके से इबादत और जियारत करनी है।

जब झुक गए मजबूत पठान..

इलियास महाराज ने शाहजहांनी गेट पर लिखी पंक्तियों पर अमल होने का जिक्र भी किया। उन्होंने बताया कि बरसों पूर्व अफगानिस्तान और आसपास के इलाकों के कुछ पठान दरगाह की जियारत के लिए अजमेर पहुंचे। मजबूत कद-काठी के पठान सीना तानकर निजाम गेट की सीढिय़ां चढ़े। ज्यों ही उनकी नजर शाहजहांनी गेट पर लिखी आयतों पर पड़ी, उनके हाव-भाव यकायक बदल गए। आयतें पढऩे के बाद चाल-ढाल में झुकाव और चेहरे पर विनम्रता बढ़ गई।

शांत माहौल, चारों ओर चुप्पी

इलियास महाराज के अनुसार बीते 30-40 साल में उर्स से जुड़े रस्मो-रिवाज में बदलाव भी हुआ है। पहले उर्स की छठी की रस्म के दौरान माहौल बिल्कुल शांत होता था। रजब माह की पांचवीं तारीख से ही लोग गरीब नवाज की दरगाह में इबादत करना शुरू कर देते थे। छठी के दिन माहौल बिल्कुल शांत होता था। लोग गरीब नवाज की इबादत में डूबे रहते थे। वक्त के साथ परम्पराओं में काफी नयापन भी आया है। यह बदलाव वक्त के अनुसार खुद को ढालने की सीख भी देता है।