सफला एकादशी कब है 14 या 15 दिसंबर, नोट कर लें सही डेट और मुहूर्त

सनातन धर्म में सफला एकादशी व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन भगवान अच्युत की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। धार्मिक मान्यताओं अनुसार 1 हजार अश्वमेघ यज्ञ मिलकर भी इतना लाभ नहीं दे सकते जितना सफला एकादशी व्रत रखने से मिल जाता है। कहते हैं इस व्रत को रखने से जीवन के सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। चलिए आपको बताते हैं सफला एकादशी व्रत कब रखा जाएगा और इसका महत्व क्या है।
सफलता एकादशी 2025 तिथि व मुहूर्त
सफला एकादशी – 15 दिसंबर 2025, सोमवार
सफला एकादशी व्रत पारण समय – 07:07 अट से 09:11 अट
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 11:57 ढट
एकादशी तिथि प्रारम्भ – 14 दिसंबर 2025 को 06:49 ढट बजे
एकादशी तिथि समाप्त – 15 दिसंबर 2025 को 09:19 ढट बजे
सफला एकादशी पूजा विधि
सफला एकादशी के दिन भगवान अच्युत की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
व्रत वाले दिन प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें और भगवान को धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि चढ़ाएं।
नारियल, सुपारी, आंवला अनार और लौंग आदि से भगवान का विधिवत पूजन करें।
रात्रि में श्री हरि के नाम के भजन करें।
व्रत के अगले दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति को भोजन कराकर उसे दान-दक्षिणा देने के बाद अपना व्रत खोल लें।
सफला एकादशी का महत्व
जैसा कि सफला एकादशी के नाम से ही प्रतीत होता है कि ये भक्तों के सभी कार्यों को सफल बनाने वाली एकादशी है। मान्यता है कि हजारों साल तपस्या करने के बाद जिस पुण्य की प्राप्ति होती है वह पुण्य सफला एकादशी व्रत करने मात्र से ही मिल जाता है। ये व्रत रखने से भाग्य खुल जाते हैं और जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन मंदिर और तुलसी के नीचे दीपदान करने का बेहद फलदायी माना गया है।
सफला एकादशी की पौराणिक कथा
सफला एकादशी की कथा अनुसार प्राचीन काल में चंपावती नगर में राजा महिष्मत राज्य करते थे। जिनके 4 पुत्र थे, उनमें ल्युक नाम का लड़का बड़ा दुष्ट और पापी था। वह अपने पिता के धन को गलत कार्यों में नष्ट करता था। एक दिन राजा ने उसे देश निकाला दे दिया लेकिन फिर भी उसकी लूटपाट करने की आदत नहीं छूटी। एक समय ऐसा आया जब उसे 3 दिन तक भोजन नहीं मिला। इस दौरान वह भटकता हुआ एक साधु की कुटिया मेंर पहुंच गया। सौभाग्य से उस दिन ह्यसफला एकादशीह्ण का व्रत था। महात्मा ने उसे भोजन दिया। महात्मा के इस व्यवहार से उसकी बुद्धि में परिवर्तन हो गया। वह साधु के चरणों में गिर पड़ा और उसे अपने कर्मों पर पछतावा होने लगा। साधु ने उसे अपना शिष्य बना लिया और धीरे-धीरे उसका चरित्र निर्मल हो गया। वह महात्मा की आज्ञा से नियमित रूप से एकादशी का व्रत रखने लगा। जब उसके अंदर सुधार हो गया तो महात्मा अपने असली रूप में प्रकट हुए। उसने देखा कि महात्मा के वेश में स्वयं उसके पिता सामने खड़े थे। इसके बाद ल्युक ने राज-काज संभाला और आजीवन सफला एकादशी का व्रत रखने लगा।




