अयोध्या में राम मंदिर के पास गिलहरी की मूर्ति क्यों हुई स्थापित? जानें रामायण में क्या था योगदान

अयोध्या में भव्य राम मंदिर के पास ही अंगद टीले पर हाल ही में गिलहरी की एक विशाल मूर्ति को स्थापित किया गया। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर ट्रस्ट के द्वारा इस मूर्ति की स्थापना की गई। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर ट्रस्ट ने रामायण में गिलहरी की भूमिका को मान्यता देते हुए यह कदम उठाया। आपको बता दें कि गिलहरी की मूर्ति ऐसी जगह पर लगाई गई है, जहां से ऐसा प्रतीत होता है कि गिलहरी मंदिर को निहार रही है। आइए ऐसे में जान लेते हैं कि आखिर गिलहरी ने रामायण में क्या भूमिका निभाई थी और उसका योगदान क्यों विशेष था।
रामायण में गिलहरी की भूमिका
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, माता सीता तक पहुंचने के लिए भगवान वानर सेना के द्वारा जब राम सेतु का निर्माण किया जा रहा था तब एक गिलहरी भी वहां मौजूद थी। वानर जहां बड़े-बड़े पत्थर सेतु के निर्माण में लगा रहे थे वहीं एक छोटी सी गिलहरी भी कंकड़ और रेत समुद्र में गिरा रही थी। गिलहरी यह कार्य पूरे मनोयोग से कर रही थी और सेतु निर्माण में योगदान दे रही थी। उसको ऐसा करते देख वानरों ने उसका मजाक उड़ाया और उससे कहा कि तुम बहुत छोटी हो और पत्थरों के नीचे दब जाओगी इसलिए यहां से चली जाओ।
यह बात जब श्रीराम को पता चली तो उन्होंने हस्तक्षेप किया और वानरों से कहा कि गिलहरी के द्वारा सेतु तक ले जाए गए छोटे कंकड़ और रेत पुल को मजबूती दे रहे हैं, और सेतु के बीच के सुराखों को भर रहे हैं। यानि भगवान श्रीराम ने गिलहरी के योगदान को भी पूरा श्रेय दिया जिसके बाद वानरों ने अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी। माना जाता है कि इस दौरान श्रीराम ने गिलहरी को अपने हाथ पर पकड़कर दूसरे हाथ की तीन उंगलियों से प्रेम पूर्वक गिलहरी की पीठ को सहलाया था और तब से ही गिलहरी की पीठ पर तीन रेखाएं उभर आई। ये तीन रेखाएं भगवान राम के प्रेम, स्नेह को दशार्ती हैं। भगवान श्रीराम ने गिलहरी के कार्य को सराहकर यह संदेश दिया था कि हर व्यक्ति या जीवन चाहे वो छोटा हो या बड़ा उसका प्रयास महत्वपूर्ण होता है। समर्पण और भक्ति से किया गया कार्य कभी व्यर्थ नहीं होता।