शिक्षा

परीक्षाओं की शुचिता बनाए रखने का प्रयास जारी… एसएससी ने नॉर्मलाइजेशन पर जारी किया नया स्पष्टीकरण

कर्मचारी चयन आयोग (ररउ) ने परीक्षाओं में अपनाई जाने वाली नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया को लेकर नया स्पष्टीकरण जारी किया है। आयोग का कहना है कि अलग-अलग शिफ्टों में होने वाली परीक्षाओं में कठिनाई का स्तर एक समान नहीं होता। कोई शिफ्ट अपेक्षाकृत आसान हो सकती है तो कोई कठिन।
ऐसे में यदि सीधे अंकों की तुलना की जाए तो उम्मीदवारों के साथ न्याय नहीं होगा। इसी असमानता को दूर करने के लिए नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया अपनाई जाती है।
समझाया नॉर्मलाइजेशन का मतलब
आयोग ने बताया कि नॉर्मलाइजेशन का मतलब है उम्मीदवारों के अंकों को इस तरह समायोजित करना कि सभी शिफ्टों के अभ्यर्थियों के परिणाम एक ही पैमाने पर तुलनीय हो सकें। यानी किसी उम्मीदवार के प्रदर्शन का मूल्यांकन सिर्फ उसकी शिफ्ट से नहीं, बल्कि पूरे परीक्षा समूह से किया जाएगा।
पहले की प्रक्रिया, जिसका उल्लेख 7 फरवरी 2019 के नोटिस में किया गया था, में अंकों को एडजस्ट करने के लिए कई पहलुओं पर ध्यान दिया जाता था। इसमें प्रत्येक शिफ्ट के टॉप स्कोर, औसत अंक और अंकों में भिन्नता को शामिल किया जाता था। इन मानकों के आधार पर हर उम्मीदवार के लिए नया, समायोजित स्कोर तैयार किया जाता था।
नई प्रक्रिया में भी यही सिद्धांत अपनाया गया है, परंतु आयोग ने इसे और स्पष्ट रूप से समझाया है। आयोग का कहना है कि इस पद्धति से उन उम्मीदवारों को नुकसान नहीं होगा जिन्होंने कठिन शिफ्ट में परीक्षा दी, और न ही आसान शिफ्ट में बैठे उम्मीदवारों को अनुचित लाभ मिलेगा।
एसएससी का मानना है कि यह बदलाव निष्पक्षता और पारदर्शिता को और मजबूत करेगा। देशभर से लाखों उम्मीदवार हर साल एसएससी की परीक्षाओं में शामिल होते हैं, ऐसे में इस नई पद्धति से अभ्यर्थियों का विश्वास और बढ़ेगा।

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