SCO Summit: Will India’s Message to the US Indicate Surrender to China or a Strategic Maneuver? Expert Insights.

क्या भारत चीन की छतरी के नीचे आएगा?
भारत की वैश्विक राजनीति में बढ़ते प्रभाव और कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी भागीदारी ने उसे एक महत्वपूर्ण स्थिति में ला खड़ा किया है। चीन के तियानजिन शहर में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में कई देशों के प्रमुख नेताओं की मौजूदगी इस बात का स्पष्ट संकेत देती है कि दक्षिण एशिया की राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव आ रहा है। इस सम्मेलन में रूस, पाकिस्तान, कजाखस्तान, किर्गिजस्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ईरान, बेलारूस और तुर्की जैसे देशों के नेता उपस्थित रहेंगे। यह शिखर सम्मेलन पिछले 10 वर्षों का सबसे बड़ा SCO सम्मेलन है, जिसमें विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का उद्देश्य इस सम्मेलन के माध्यम से यह प्रदर्शित करना है कि अमेरिका अब एकमात्र सुपरपावर नहीं है। अमेरिका के खिलाफ एक नया खेमाबन चुका है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की उपस्थिति इस बात का संकेत देती है कि ये देश अपनी वैश्विक रणनीतियों को पुनः सक्रिय करने की योजना बना रहे हैं।
भारत और अमेरिका के संबंध
भारत और अमेरिका के बीच का संबंध वर्तमान में तनावपूर्ण हो गया है, खासकर जब अमेरिका ने भारत पर व्यापारिक टैरिफ बढ़ा दिए हैं। इस प्रकार की स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। साथ ही, इस स्थिति में भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपने संबंधों को संतुलित रखे, ताकि किसी एक देश पर निर्भरता न बने।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को चीन की छतरी के नीचे आने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि, भारत ने पहले ही QUAD, I2U2 जैसे गठबंधनों में अपनी भागीदारी दिखा दी है। ये सभी रणनीतिक गठबंधन भारत को वैश्विक मंचों पर महत्वपूर्ण स्थान दिलाने में सहायक हैं। विशेषज्ञ रोबिन्दर सचदेव के अनुसार, भारत ने SCO के मंच पर अपनी भागीदारी के जरिए यह संदेश दिया है कि वह किसी एक सुपरपावर के प्रभाव में नहीं है।
भारत की रणनीतिक स्वायत्तता
भारत की विदेश नीति की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि वह किसी एक धुरी का अनुसरण करने की बजाय स्वायत्तता बनाए रखता है। SCO में भारत की भागीदारी का मतलब है कि वह चीन के प्रभाव वाले देशों के साथ संवाद स्थापित कर रहा है। इस दौरान, भारत अपनी स्वतंत्र नीति पर जोर दे रहा है। मोदी का SCO में भाग लेना इस बात का संकेत है कि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखना चाहता है।
इस मंच के माध्यम से भारत को कई अवसर प्राप्त होंगे। पहली बात, यह अवसर चीन के प्रभाव वाले देशों के साथ संबंध स्थापित करने का है। दूसरी बात, यह भारत के लिए ग्लोबल साउथ में एक मजबूत छवि बनाने में सहायक होगा, और साथ ही SCO जैसे मंच में निर्णायक भूमिका निभाने का अवसर भी प्रदान करेगा।
भारत के सामने चुनौतियां
हालांकि, भारत को कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ेगा। SCO जैसे मंच में शामिल होते हुए, भारत को चीन और अमेरिका दोनों के प्रभाव संतुलित रखना होगा। इसका मतलब है कि भारत को अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए, दोनों शक्तियों के साथ अच्छे संबंध बनाना होगा।
चीन का बढ़ता हुआ प्रभाव भारत के लिए चिंता का विषय है।हालांकि, कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह भारत के लिए चिंता का विषय नहीं होना चाहिए। भारत की विदेश नीति में यह एक रणनीतिक टैक्टिकल मूव भी हो सकता है। इसका तात्कालिक प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक लक्ष्य में यह भारत की स्वतंत्र नीति को मजबूत करेगा।
निष्कर्ष
अंत में, यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बुद्धिमत्ता से काम कर रहा है। SCO की बैठक में भारत की भागीदारी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वह न केवल अपने आर्थिक हितों का ध्यान रखेगा, बल्कि वैश्विक राजनीतिक खेल में अपने लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बनाने की कोशिश करेगा। भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और संतुलन बनाए रखने की नीति उसे इस प्रतिस्पर्धात्मक वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाएगी।
भारत की यह स्थिति उसे न सिर्फ चीन की छतरी के नीचे आने से रोकेगी, बल्कि उसे एक स्वतंत्र और सामरिक शक्ति के रूप में भी स्थापित करेगी।