ट्रंप के सलाहकार: चीन-भारत संबंधों में तकरार, मोदी-जिनपिंग मीटिंग पर नई दिल्ली की चिंताएं

डोनाल्ड ट्रम्प: भारत और चीन के बीच संबंधों पर पीटर नवारो का विवादास्पद बयान
हाल के समय में, भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में तनाव बढ़ गया है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों का यह रिश्ता अब अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। दोनों देशों के बीच बयानबाजी हर दिन तेज होती जा रही है। इसी बीच, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के व्यापार सलाहकार, पीटर नवारो ने भारत के बारे में कुछ विवादास्पद टिप्पणियाँ की हैं।
नवारो ने भारत का उल्लेख करते हुए कहा कि वह चीन के साथ अपने संबंधों को गर्म कर रहा है, जो कि भारत के लिए चिंताजनक है। उन्होंने यह आरोप लगाया कि भारत एक लोकतांत्रिक देश होते हुए भी तानाशाही देशों जैसे चीन और रूस के साथ दोस्ती बढ़ा रहा है। उनका यह बयान न केवल भारत की विदेश नीति पर सवाल उठाता है, बल्कि दोनों देशों के बीच की दोस्ती को भी प्रभावित कर सकता है।
भारत-चीन संबंध
भारत और चीन के बीच दशकों से चल रहा संघर्ष हाल ही में और भी गहरा गया है, खासकर लद्दाख क्षेत्र में। नवारो ने एक समाचार चैनल के इंटरव्यू में कहा, “भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपने संबंधों को तानाशाही देशों के साथ मजबूत न करे।” इस प्रकार, उनका कहना है कि भारत को अपने दीर्घकालिक हितों पर ध्यान देना चाहिए।
भारत को टैरिफ छूट
जब नवारो से पूछा गया कि क्या भारत को अमेरिकी टैरिफ में कोई छूट मिलेगी, तो उन्होंने कहा कि भारत को 25 प्रतिशत की छूट तब मिल सकती है जब वह रूस से तेल खरीदना बंद कर दे। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को अपनी स्वतंत्रता का ख्याल रखना होगा और समझना होगा कि अमेरिका की अपेक्षाएँ क्या हैं। यह टिप्पणी भारत की स्वतंत्र विदेश नीति पर सवाल उठाने वाली है।
वे कहते हैं कि “मोदी एक महान नेता हैं, लेकिन भारत को यह समझना चाहिए कि अमेरिका की तरफ से दी जाने वाली सहायता की सीमाएँ हैं।” यह स्पष्ट है कि नवारो का उद्देश्य भारत के निर्णयों को प्रभावित करना है, जो इस चुनौतीपूर्ण समय में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।
भारत की स्थिति
भारत का रूस के साथ व्यापार का निर्णय उसकी रणनीतिक आवश्यकताओं पर आधारित है। अमेरिकी नीतियों के चलते जब भारत को विकल्प नहीं मिलते, तब वह अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए रूस की ओर देखता है। अमेरिका ने ईरान का बाजार प्रतिबंधित कर रखा है, जिससे भारत को विकल्प खोजने में बाधा बनती है। ऐसे में, अगर भारत रूस से तेल खरीदने में कमी लाता है, तो वैश्विक तेल बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है।
अमेरिका की двойहरी नीति
पीटर नवारो की आलोचनाओं का एक बड़ा पहलू यह है कि अमेरिका स्वयं भी कई तानाशाही देशों के साथ व्यापार कर रहा है। decades से। अमेरिका ने पाकिस्तान को समर्थन देकर कई बार अपने राजनैतिक लक्ष्यों को प्राप्त किया है। इसके अलावा, अमेरिका द्वारा तानाशाही देशों के साथ किया गया व्यापार उनके नैतिक दावों की सीमाओं को चुनौती देता है।
अमेरिका की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए यूरोप भी रूस पर निर्भर है, और यहां तक कि अमेरिका के बहुत से सामान चीन के कारखानों में उत्पादित होते हैं। इसलिए, नवारो का यह कहना कि भारत को लोकतांत्रिक देशों के साथ रहना चाहिए, कुछ हद तक विहित है और संदिग्ध भी।
रूस और अमेरिका के संबंध
हाल ही में, रूस और अमेरिका के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और जो बाइडन ने एक-दूसरे से मुलाकात की और आपसी संबंधों को सुधारने की कोशिश की। यह दिखाता है कि भले ही दोनों देशों के बीच तकरार हो, बाजार की आवश्यकताएँ और व्यापारिक संबंध उन्हें जोड़ते रहते हैं।
निष्कर्ष
पीटर नवारो के बयान से यह स्पष्ट होता है कि वर्तमान वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में भारत की स्थिति चुनौतियों से भरी हुई है। अमेरिका की अपेक्षाएँ और भारत की रणनीतिक आवश्यकताएँ आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्यों को प्रभावित कर रही हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत अपनी विदेश नीति को कैसे संचालित करता है और किस दिशा में जाता है।
भारत को चाहिए कि वह अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलित दृष्टिकोण अपनाए, ताकि वह वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत कर सके।