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BJP requests explanation from MLA Nauksham Chaudhary; Madan Rathore emphasizes tradition of retaining elected representatives.

डीग जिले के कामां से बीजेपी विधायक नौक्षम चौधरी ने हाल ही में एक विवादास्पद बयान दिया है, जिसमें उन्होंने कांग्रेस के प्रधान को हटाकर बीजेपी का प्रधान लगाने की बात की। यह बयान बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ के संज्ञान में आया, जिन्होंने विधायक से इस बयान पर स्पष्टीकरण मांगा है। राठौड़ ने कहा कि पार्टी का आचरण तथा परंपरा इससे भिन्न है कि चुने हुए जनप्रतिनिधि को इस तरह से चुनौती दी जाए।

राठौड़ ने कहा, “विधायक ने जो भी बयान दिए हैं, उस पर हम उनसे जानकारी मांग रहे हैं। हमने उन्हें आमंत्रित किया है कि वे आकर अपना जवाब दें।” उनका कहना था कि पार्टी विधायक को यह समझाएगी कि किस प्रकार से सार्वजनिक रूप से बयान देना चाहिए। यदि किसी प्रकार की कमी है, तो उसे भी ठीक किया जाएगा।

कामां विधायक नौक्षम चौधरी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने बीजेपी के एक मंत्री पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि नगर पंचायत में अभी भी कांग्रेस का प्रधान नियुक्त है, और उन्हें समझना चाहिए कि बीजेपी समर्थित किसी व्यक्ति को प्रधान क्यों नहीं बनाया गया। इस वक्त उन्होंने अपने बड़े भाई और मंत्री को संबोधित करते हुए कहा, “मैं आपसे निवेदन करती हूं कि अगर आप इसे सही समझते हैं, तो चुनाव करवा लीजिए।”

चौधरी ने स्पष्ट रूप से कहा कि कोई प्रधान सिर्फ ऐसे नहीं हटता। उन्होंने मंत्री को यह भी याद दिलाया कि संविधान के अनुसार, प्रधान अपने चुनाव के माध्यम से चुना जाता है। “अगर आपके खिलाफ कोई कार्रवाई होनी है, तो वह तभी हो सकती है जब आप चाहें,” उन्होंने आगे कहा। उन्होंने यह भी कहा कि मंत्री को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बीजेपी का कोई कार्यकर्ता उनके समाज से प्रधान बनाया जाए, ताकि बाद में यह कहा जा सके कि कांग्रेस के बनाए प्रधान को हटाकर बीजेपी का प्रधान बनाया गया है।

इस बीच, बीजेपी विधायक ने मंत्री जायंट बेढम पर भी निशाना साधा, जिसने कांग्रेस के प्रधान को नहीं हटाने पर सवाल उठाया। चौधरी ने उन्हें चुनौती दी कि वे भी अपने समाज के बीजेपी समर्थित कार्यकर्ताओं को मुख्यधारा में लाने का प्रयास करें। “आप कह रहे हैं कि आप सरकार हैं, तो आप पहल क्यों नहीं कर रहे?” उन्होंने पूछा।

इस विवाद ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है, क्योंकि यह स्पष्ट है कि प्रदेश में पार्टी के भीतर की असहमति उभर रही है। क्या यह केवल एक बयान है, या राजनीतिक दबाव का संकेत है, यह तो भविष्य ही बताएगा।

संक्षेप में, यह समस्त घटनाक्रम यह दर्शाता है कि राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और चुनावी रणनीति कभी-कभी पार्टी के भीतर की रंजिशों को जन्म देती है। भविष्य में क्या होता है, इसे देखना दिलचस्प होगा। क्या बीजेपी विधायक अपने बयान पर कायम रहेंगे, या पार्टी कार्ययोजना के तहत किसी समझौते पर पहुँच पाएंगे?

राजनीति में बयानबाजी का यह क्रम देखने में आम हो गया है, और हर एक बयान को बारीकी से परखा जा रहा है। क्या यह सिर्फ एक राजनीतिक बातचीत है, या फिर इसे व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाएगा, यह चुनाव के नतीजों पर निर्भर करेगा।

इस तरह के विवादों के निपटारे के लिए राजनीतिक संवाद और समझौता आवश्यक है। पार्टी के भीतर यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी नेता एकजुट होकर कार्य करें। यदि ऐसी समस्याएँ आगे बढ़ती हैं, तो इससे न केवल पार्टी की छवि पर असर पड़ सकता है, बल्कि आम जनता के बीच भी एक नकारात्मक संदेश फैल सकता है।

निष्कर्षतः, राजनीतिक बयानबाजी को समझने के लिए हमें केवल एक नजर में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसके पीछे की गहरी बातें और निहितार्थों पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह स्पष्ट है कि जैसे-जैसे चुनावों की तारीखें नज़दीक आती हैं, इस प्रकार के बयान और अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ज्ञान और सच्चाई के आधार पर ही राजनीतिक संवाद को आगे बढ़ाना चाहिए, ताकि निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्पष्टता बनी रहे।

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