मथुरा

तीन दिवसीय त्योहार के दूसरे दिन संत सेमिनार में भगवान और भक्त में एकता की बात कही गई।

संन्यासी ने कहा कि जगन्नाथ प्रसाद भक्तमाली एक पार्षद थे, जो भगवान के पास भेजे गए थे।

संत सेमिनार का आयोजन पंडित भक्तमाली के प्रियाम मिलान महोत्सव के दूसरे दिन किया गया। इस अवसर पर संतों ने कहा कि भगवान अपनी शक्ति और प्रकृति को महसूस करने के लिए अपने भक्त के दिल में निवास करते हैं। भक्त उन्हें अपने दिल में अलग करते हैं।

महांत फुलडोल बिहारी दास महाराज ने कहा कि भक्तमाली जी और गोविंद, दूसरे दिन संत छात्रवृत्ति सम्मेलन में 41वें प्रिया-प्रियाम मिलान महोत्सव में उपस्थित थे। यह आयोजन जनकी भवन में किया गया था। भक्तमाली जी और गोविंद एक-दूसरे के पर्याय थे। भक्त की याद हमेशा ईश्वर की याद होती है।

सेमिनार में, संन्यासी ने भक्तमाली जी को भवांजली की पेशकश की। पंडित जगन्नाथ प्रसाद भक्तमाली जी को भावनाओं के साथ याद किया गया।

त्योहार में, आचार्य कुटी के भानुदेव आचार्य ने कहा कि भक्तमाली जी की भक्ति हमेशा बहती थी। उनकी प्रत्येक सांस में प्रभु का एक भजन होता था। वह एक सर्वोच्च भगवदिया संत थे। विद्याद्वन आचार्य डॉ. अचूत लाल भट्ट ने अपनी भावना व्यक्त की और कहा कि पं. जगन्नाथ प्रसाद भक्तमाली जी संत समाज में अत्यंत श्रद्धेय थे। करपात्रि जी महाराज, हरि बाबा, उड़िया बाबा, मां आनंदमयी और स्वामी अखंडनंद जी महाराज जैसे महान व्यक्तित्वों को भी भक्तमाली जी की कथा सुनकर खुशी मिलती थी।

कृष्णा नंद सरस्वती जी ने कहा कि भक्तमाली भगवान द्वारा भेजे गए एक पार्षद थे, जो भक्ति की धारा को प्रवाहित करने के लिए ब्रजधाम में आए थे। डॉ. राम क्रिपल भक्तमाली चित्राकुति ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति को अपना जीवन सार्थक बनाना है, तो उसे भक्ति प्राप्त करनी होगी। इसके लिए, आचार्य और गुरुओं के प्रति श्रद्धा जागृत करनी होगी, क्योंकि ये महापुरुष हमें प्रभु से मिलवाने में सक्षम हैं। भक्तमाली जी के संपर्क में जो भी आया, वह कल्याण पा गया और वह भगवद की पूजा में लीन हो गया।

भक्तमाली जी का जीवन भक्ति और सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण है। उनका प्रत्येक कार्य और विचार भक्तिपूर्ण था। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से यह दर्शाया कि किस प्रकार एक साधारण व्यक्ति भी भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति द्वारा महानता प्राप्त कर सकता है। भक्तमाली जी के साधना का आलम यह था कि वह हमेशा भगवान के ध्यान में लीन रहते थे।

उनकी भक्ति की एक विशेषता यह थी कि उन्होंने अपने आसपास के लोगों में भी भक्ति का बीज बोने का कार्य किया। जो भी उनके संपर्क में आया, उसने उनकी भक्ति से प्रेरित होकर भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा को और भी बढ़ा लिया।

भक्तमाली जी की शिक्षाएँ आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने सिखाया कि भक्ति केवल एक व्यक्तिगत अनुभव नहीं है, बल्कि यह समाज और समुदाय का भी उत्थान करती है। जब हम अपने दिल से भगवान को याद करते हैं, तो हमारी आंतरिक ऊर्जा बढ़ती है और हम दूसरों को भी प्रेरित कर सकते हैं।

इस प्रकार, भक्तमाली जी ने हमें यह समझाया कि भक्ति केवल पूजा-पाठ नहीं है, बल्कि यह हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। भक्ति के माध्यम से हम अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं।

संतों का यह भी कहना है कि भक्ति में मन और हृदय की एकाग्रता आवश्यक है। जब हम अपनी भक्ति को पूरी तन्मयता से करते हैं, तभी हम वास्तव में भगवान की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

भक्ति का यह मार्ग अनेक कठिनाईयों से भरा होता है, लेकिन जो भी इसमें दृढ़ रहता है, उसे अंततः सफलता अवश्य मिलती है। भक्तमाली जी ने अपने जीवन में अनेक बाधाओं का सामना किया, लेकिन उनकी भक्ति ने उन्हें कभी हारने नहीं दिया।

आज के समय में जब लोग अधपंडित हो गए हैं और भक्ति को केवल बाहरी दिखावे तक सीमित कर दिया है, भक्तमाली जी का जीवन हमें सिखाता है कि भक्ति की सच्ची परिभाषा क्या होती है। भगवान के प्रति सच्ची भक्ति हमें आत्मा की शांति और संतोष प्रदान करती है।

इस प्रकार, संत सेमिनार के दौरान की गई चर्चाएँ भक्तमाली जी की भक्ति और उनके जीवन के मार्ग को उजागर करने का एक प्रयास थीं। संतों ने उनके कार्यों के माध्यम से यह दर्शाया कि भक्ति का प्रकाश किस प्रकार हमारे जीवन को प्रकाशित कर सकता है।

संतों के विचारों के माध्यम से हमें यह भी समझ में आया कि भक्ति केवल एक रास्ता नहीं है, बल्कि यह एक यात्रा है, जिसमें हमें अपने भीतर की कुप्रवृत्तियों को दूर करना होता है। भक्तमाली जी की भक्ति ने उन्हें असीम ऊँचाइयों तक पहुँचाया और उनके व्यक्तित्व को अद्वितीय बना दिया।

इस प्रकार, भक्तमाली जी का योगदान न केवल संत समाज में, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। उनकी भक्ति के प्रभाव से यह स्पष्ट होता है कि सच्चे हृदय से की गई भक्ति ही हमें अपने जीवन में सच्चा सुख और शांति प्रदान कर सकती है।

इस सेमिनार में सम्मिलित हर व्यक्ति ने भक्तमाली जी की भक्ति के अनुभव को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लिया और यह तय किया कि वे भी भगवान को अपने हृदय में बसा कर जीवन को सही दिशा में ले जाने का प्रयास करेंगे। इस प्रकार, यह आयोजन केवल एक सेमिनार नहीं बल्कि भक्ति की शक्ति को समझने और अनुभव करने का एक अद्भुत अवसर था।

भक्ति का यह उत्सव हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा, और भक्तमाली जी की शिक्षाओं को आगे बढ़ाने का प्रयास हमें सदैव करना चाहिए। उनका जीवन और भक्ति हमें याद दिलाती है कि सच्चा जीवन वही है, जो समर्पण, प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चलता है।

हालांकि समय बदलता है, लेकिन सच्ची भक्ति कभी पुरानी नहीं होती। वह सदा नई बनी रहती है और हमें प्रेरित करती है। भक्तमाली जी का जीवन इस बात का गवाह है कि भक्ति की शक्ति अद्वितीय है और यह हमें भगवान के प्रति हमारी भक्ति को और भी मजबूत बनाने में मदद करती है।

भक्ति की यह यात्रा अनंत है। जब तक हम जीवित हैं, हमें इस यात्रा पर चलते रहना चाहिए। संतों की संगत में रहकर और उनकी शिक्षाओं को अपनाकर हम अपनी भक्ति को और भी गहराई में ले जा सकते हैं। संत सेमिनार ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है और हमें यह महसूस कराया है कि सच्ची भक्ति से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

इसी के साथ, भक्तमाली जी के इस महोत्सव का समापन हुआ, लेकिन उनका संदेश और उनकी भक्ति हमारे बीच सदैव जीवित रहेगी। हम सभी को चाहिए कि हम इस प्रेरणा को अपने जीवन में अपनाएँ और अपने हृदय में भगवान की भक्ति को सदा गहराई से धारण रखें।

Related Articles

Back to top button