JPC विवाद: क्या कांग्रेस भी पीछे हटेगी? INDIA गठबंधन में JPC पर मतभेद, विपक्षी दलों में विविधता

कांग्रेस में जेपीसी विवाद: INDIA ब्लॉक में बढ़ते मतभेद
नई दिल्ली: हाल के दिनों में संसद में पेश किए गए तीन महत्वपूर्ण विधेयकों को लेकर विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक में दरार देखने को मिल रही है। इन बिलों में एक प्रावधान है कि यदि कोई केंद्रीय या राज्य मंत्री 30 दिनों तक जेल में रहता है, तो उसे अपने पद से हटा दिया जाएगा। इन विधेयकों की जांच के लिए सरकार ने एक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) गठित करने का निर्णय लिया है, लेकिन इस पर विपक्ष का बंटवारा स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
आम आदमी पार्टी (AAP) ने स्पष्ट कर दिया है कि वह जेपीसी में शामिल नहीं होगी। इसी प्रकार, तृणमूल कांग्रेस ने भी इस प्रक्रिया से बाहर रहने का निर्णय लिया है। वहीं, समाजवादी पार्टी और शिवसेना (UBT) भी इसी दिशा में कदम बढ़ाने के संकेत दे रही हैं। इससे कांग्रेस की स्थिति दुविधा में आ गई है। पहले पार्टी ने संकेत दिया था कि वह इस प्रक्रिया में शामिल होकर असहमति जताएगी, लेकिन अब वह दबाव की स्थिति में है।
विवाद का कारण
इन तीन विधेयकों में से एक बिल प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भी हटाने का प्रावधान करता है। इसके लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है, और वर्तमान में भाजपा के पास पर्याप्त संख्याबल नहीं है। यही कारण है कि विपक्षी दल मानते हैं कि यह विधेयक “कड़ा और संघीय ढांचे के खिलाफ” है और इसका संसद से पास होना कठिन होगा। कई पार्टियां इसका विरोध करते हुए इसे “समय की बर्बादी” करार दे रही हैं।
विपक्षी एकता पर सवाल
विपक्षी खेमे के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सभी पार्टियां इन विधेयकों के खिलाफ हैं, लेकिन कुछ पार्टियां इसे जेपीसी में शामिल होकर और कुछ बाहर रहकर अपने विरोध को व्यक्त करना चाहती हैं। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि मोदी सरकार असंवैधानिक विधेयक ला रही है, जिसका उद्देश्य विपक्षी नेताओं को जेल में डालना और उनकी सरकारों को गिराना है।
इस प्रकार, विपक्ष के अंदर एकता की कमी और आपसी मतभेद स्थिति को और जटिल बना रहे हैं। जहां कई दल जेपीसी के जरिए अपने विरोध को व्यक्त करने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं अन्य दल स्पष्ट रूप से इस प्रक्रिया को लेकर असंतुष्ट हैं।
कांग्रेस की दुविधा
कांग्रेस के लिए यह समय कठिनाई भरा है। एक ओर, उसे अपने सहयोगियों के साथ समन्वय करना है, जबकि दूसरी ओर उसे इस बात का ध्यान रखना है कि उसकी अपनी राजनीतिक जमीन कमजोर न पड़े। यदि कांग्रेस जेपीसी से पीछे हटती है, तो इससे उसकी छवि को धक्का लग सकता है, जबकि यदि वे इसमें शामिल होती हैं, तो उन्हें अपने सहयोगियों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।
विरोध का स्वरूप
विपक्षी दलों के भीतर विशिष्ट विचारधाराएं और धार्मिकता के आधार पर मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। विभिन्न दलों के नेता इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या उन्हें इस बिल का विरोध एकजुट होकर करना चाहिए या फिर अलग-अलग रहकर अपनी शब्दावली को व्यक्त करना चाहिए।
आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और शिवसेना ने पहले से ही यह स्पष्ट कर दिया है कि वे इस बिल का विरोध करेंगे, लेकिन उनके इस विरोध का स्वरूप अलग-अलग है। यही चीज कांग्रेस को सबसे अधिक चिंता में डाल रही है कि यदि अमेरिकी चुनावों की तरह ही यहाँ भी राजनीतिक भविष्य पर चुनावों का प्रभाव पड़ा, तो उन्हें एकजुटता बनाए रखने में कठिनाई होगी।
निष्कर्ष
इस प्रकार, जेपीसी को लेकर INDIA ब्लॉक में बढ़ते मतभेद और कांग्रेस की दुविधा एक महत्वपूर्ण राजनीतिक स्थिति का निर्माण कर रहे हैं। यह स्पष्ट है कि विपक्ष के भीतर की ये दरारें न केवल वर्तमान राजनीति पर प्रभाव डालेंगी, बल्कि भविष्य के चुनावी परिदृश्य को भी प्रभावित कर सकती हैं। इस समय विपक्ष को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, ताकि वे एकजुट रूप में सरकार के साथ प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सकें।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि ऐसी स्थिति में विपक्ष को आदेशात्मक और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, ताकि वे वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का सामना कर सकें। हालांकि, यह देखना होगा कि आखिरकार विपक्ष इस चुनौती का सामना कैसे करता है और क्या वे अपनी एकजुटता को बनाए रख पाते हैं।