अखिलेश ने बीजेपी पर हमला बोला, पूजा पाल और डिप्टी सीएम के पत्र का जिक्र किया।

पूजा पाल और सपा के बीच जारी राजनीतिक संघर्ष
पूजा पाल लगातार समाजवादी पार्टी (सपा) पर तीखे आरोप लगा रही हैं। जबकि सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने पलटवार करते हुए कहा कि पूजा पाल के बयानों की पृष्ठभूमि में अन्य लोग हैं। उन्होंने विशेष रूप से एक डिप्टी सीएम और ‘बंसल’ नाम के व्यक्ति का नाम लिया, जो बालिका को चिट्ठियां लिखने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। अखिलेश के अनुसार, भाजपा सरकार निरंतर पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) समाज का उत्पीड़न कर रही है।
हाल ही में, विधानसभा में सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा करने के बाद पूजा पाल का निष्कासन एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है। इस मुद्दे ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को गरमा दिया है और अब यह ‘पीडीए’ के मुद्दे पर केंद्रित हो गया है। पूजा पाल सपा पर खुलकर सवाल उठा रही हैं, जबकि सपा भी भाजपा को पीडीए विरोधी करार देने में लगी हुई है।
सोमवार को लखनऊ में प्रजापति समाज के एक सम्मेलन के बाद, अखिलेश यादव ने इस संबंध में मीडिया से बातचीत की। उन्होंने कहा कि पीडीए समाज का निरंतर उत्पीड़न हो रहा है और अब सभी को मिलकर भाजपा का सामना करने का समय आ गया है। पूजा पाल की चिट्ठियों के मामले में उन्होंने आरोप लगाया कि कोई और उन्हें यह सब लिखवा रहा है, जिससे उनकी मंशा पर सवाल उठता है।
गायत्री प्रजापति के मुद्दे पर भी अखिलेश ने भाजपा पर तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि जब भाजपा को गायत्री प्रजापति के परिवार के वोट की जरूरत थी, तब उनसे सपा के खिलाफ वोट देने के लिए कहा गया और इसके बदले कई मामलों को वापस लेने का आश्वासन दिया गया। लेकिन बाद में उन्हें धोखा मिला। अखिलेश ने यह भी आरोप लगाया कि आजम खान, गायत्री प्रजापति और रमाकांत यादव जैसे नेताओं के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज किए गए हैं।
अखिलेश यादव ने सपा के निष्कासन के मुद्दे पर भाजपा सरकार पर कई अन्य गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार स्कूलों को बंद कर रही है, जबकि शराब की दुकानों की संख्या बढ़ा रही है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि भाजपा चाहती है कि लोग शिक्षा न लें बल्कि केवल शराब का सेवन करें। उन्होंने कानपुर के अधिवक्ता अखिलेश दुबे का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके खिलाफ कई मामले होने के बावजूद उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
एक प्रश्न का उत्तर देते हुए, अखिलेश ने भाजपा पर व्यंग्य करते हुए कहा कि वे एस्ट्रोनॉमी पर नहीं, बल्कि एस्ट्रोलॉजी पर विश्वास करते हैं। उन्होंने ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की उपलब्धियों पर गर्व महसूस करते हुए कहा कि वे उनसे मिलकर उनके अनुभव जानने का प्रयास करेंगे।
अखिलेश ने प्रयागराज में हुए विकास कार्यों पर चर्चा करते हुए कहा कि पिछले 9 वर्षों में सरकार ने 30 हजार करोड़ रुपये खर्च कर दिए, लेकिन कोई असली विकास नहीं हुआ; केवल लूट ही हुई। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि कुंभ का सारा सामान अब हटा दिया गया है, इसलिए अब इस मामले की जांच नहीं हो पाएगी।
अखिलेश यादव का यह कहना कि वे देश के विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, राजनीति के इस पलते हुए दौर में एक महत्वपूर्ण संदेश है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बदलाव लाने के लिए पीडीए समाज के एकजुट होने की आवश्यकता है।
इस प्रकार, उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूजा पाल और सपा के बीच जारी इस संघर्ष ने एक नई दिशा दी है। लोकतंत्र में आवाज उठाना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है और पूजा पाल की सक्रियता इस दिशा में एक कदम है।
भाजपा तथा सपा के बीच इस राजनीतिक जंग में, पीडीए समाज की स्थिति, उसकी एकता और भविष्य के संघर्ष को लेकर विचारशीलता आवश्यक है। अब देखना यह है कि क्या पूजा पाल और उनके समर्थक सपा द्वारा उठाए गए कदमों के खिलाफ अपनी आवाज उठाने में सफल होंगे या यह संघर्ष राजनीतिक नाटक बनकर रह जाएगा।
राजनीति में विकास और सामाजिक न्याय की बातों को लेकर हो रही चर्चा, उत्तर प्रदेश में समाज के सबसे कमजोर वर्गों के हितों के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है। सभी पार्टियों को चाहिए कि वे इस दिशा में गंभीरता से काम करें, ताकि लोकतंत्र को मजबूत किया जा सके।
भविष्य की राजनीति किस दिशा में मुड़ती है, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन अब तक की घटनाएं यह दर्शाती हैं कि उत्तर प्रदेश में सपा और भाजपा की राजनीति के महाकुंभ में एक नया मोड़ आ चुका है। पूरी उम्मीद है कि यह संघर्ष केवल तात्कालिक नहीं होगा, बल्कि समाज के सही हकों और न्याय के लिए एक लंबी लड़ाई का आरंभ करेगा।
इन सारे घटनाक्रमों के बीच यह भी आवश्यक है कि लोग अपने वोट के माध्यम से सच्चाई का सामना करें और अपने हकों की रक्षा करें। यही लोकतंत्र की असली शक्ति है, और हम सभी को इसे आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
इस प्रकार, उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस दौर में जो भी हो रहा है, वह समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। अब यह जिम्मेदारी सबकी है कि वे समझदारी से अपने फैसले लें और अपने हकों के लिए उठें।