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अमित शाह ने सुदर्शन रेड्डी पर नक्सलिज्म विषय पर विपक्षी उपाध्यक्ष के उम्मीदवार के हमले को फिर से संबोधित किया।

अमित शाह: विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार पर नक्सलवाद के मुद्दे को लेकर हमला

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी को कड़ी आलोचना का सामना कराया। उन्होंने आरोप लगाया कि सुदर्शन रेड्डी के न्यायाधीश के रूप में किए गए निर्णयों ने नक्सलवाद को देश में लंबे समय तक विस्तारित किया है। इस संदर्भ में, शाह ने विशेष रूप से विक्टिमॉज सालवा जुडम को संदर्भित किया।

सुदर्शन रेड्डी पर आरोप

अमित शाह ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सुदर्शन रेड्डी ने सालवा जुडम को खारिज किया, जिससे आदिवासी समुदाय के अधिकारों को नुकसान पहुंचा और इस प्रकार नक्सलवाद को दो दशकों से अधिक समय तक बढ़ावा मिला। वह यह तर्क रख रहे थे कि रेड्डी का यह निर्णय विनाशकारी साबित हुआ।

सालवा जुडम एक स्थानीय मिलिशिया थी, जिसका गठन नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई के लिए किया गया था। शाह का कहना है कि रेड्डी द्वारा इस मिलिशिया को विदाई देने से नक्सलवाद पर नियंत्रण पाने के प्रयास को कमजोर किया गया।

अमित शाह ने कहा, “उनके फैसले ने सामाजिक संघर्ष को बढ़ावा दिया, और यह हमारे समाज के लिए एक गंभीर समस्या बन गया।” उनके अनुसार, यह न केवल राजनीतिक बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी है कि ऐसे निर्णयों का प्रभाव समझा जाए।

सुदर्शन रेड्डी का जवाब

सुदर्शन रेड्डी ने अमित शाह के आरोपों का जवाब देते हुए अपनी स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कहा, “हर नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करना एक संवैधानिक दायित्व है। मैं किसी मंत्री के साथ व्यक्तिगत रूप से बहस नहीं करना चाहता।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि उनका निर्णय केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि न्यायालय का था।

रेड्डी ने कहा कि उनके निर्णय को 40 पृष्ठों में विस्तार से प्रस्तुत किया गया था। उन्होंने अमित शाह से अनुरोध किया कि वह पहले इस निर्णय को पढ़ें, फिर इस पर टिप्पणी करें। ऐसा करने से शायद वे अपने विचारों पर पुनर्विचार कर सकते थे।

सालवा जुडम: एक विस्तृत दृष्टिकोण

सालवा जुडम, जिसका अर्थ गोंडी भाषा में “शांति मार्च” है, वास्तव में एक मिलिशिया और सशस्त्र संगठन था। इसे भारतीय सुरक्षा बलों के सहयोग से नक्सलियों के खिलाफ लड़ने के लिए स्थापित किया गया था। यह न केवल युवा आदिवासियों को संगठन में मिलाने का प्रयास था, बल्कि एक राज्यीय नीति का हिस्सा भी था।

इस अभियान का कार्यक्षेत्र छत्तीसगढ़ था, जहां नक्सलियों के हाथों में बढ़ते रक्तपात को देखते हुए इसे लागू किया गया था। हालाँकि, इस अभियान की पृष्ठभूमि में कई विवाद भी थे।

ऊपर दिए गए विवादों के कारण ही, सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की गई थी। न्यायालय ने इसे समाप्त करने और सभी हथियारों को वापस लेने का आदेश दिया।

नक्सलवाद की पृष्ठभूमि

नक्सलवाद एक सामाजिक-आर्थिक आंदोलन है जो विशेष रूप से भारतीय आदिवासी समुदायों के बीच व्यापक है। यह आंदोलन उन समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए स्थापित हुआ है, जो लंबे समय से सामाजिक और आर्थिक शोषण का सामना कर रहे हैं।

नक्सलियों का दावा है कि वे आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन सुरक्षा बलों और सरकारी अधिकारियों का कहना है कि यह आंदोलन हिंसा और आतंक का कारण बन गया है। नक्सलवाद के खिलाफ कई योजनाएं और अभियानों की आवश्यकता है, ताकि समाज में शांति और संतुलन स्थापित किया जा सके।

इससे आगे

अमित शाह और सुदर्शन रेड्डी के बीच यह तकरार सिर्फ व्यक्तिगत नहीं है। यह भारतीय राजनीति के बड़े मुद्दों का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें कानून, न्याय, और समाज की संरचना पर विचार किया जा रहा है।

केंद्रीय गृह मंत्री के इस बयान ने विपक्ष की स्थिति को चुनौती दी है और यह दर्शाता है कि आने वाले समय में राजनीतिक संघर्ष और भी बढ़ सकता है। वहीं, विपक्ष के आरोपों का यह पहलू एक गहराई में जाने की आवश्यकता को भी बताता है कि हमें समाज की जड़ों को समझने की जरूरत है, जो नक्सलवाद और अन्य सामाजिक आंदोलनों का कारण बनते हैं।

निष्कर्ष

इस मुद्दे पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है कि कैसे सुदर्शन रेड्डी के निर्णयों का प्रभाव पड़ा और क्यों नक्सलवाद से निपटने के संघर्ष में भिन्न मत हैं। इस राजनीतिक टकराव ने हमें न सिर्फ साक्षात्कार दिया है बल्कि हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या हमारे समाज में गहरी जड़ें नक्सलवाद की समस्याओं की स्पष्टता के साथ जुड़े हुए हैं या नहीं।

भारत में लोकतंत्र और न्याय का आधार उन मुद्दों में है, जो समाज की जड़ों से जुड़े हुए हैं। आज का वक्त इस बात का साक्षी है कि हमें समस्याओं का सही समाधान खोजने की जरूरत है, न कि केवल राजनीतिक बहसों में उलझने की।

सामने आने वाली चुनौतियां हमें और अधिक सोचने के लिए मजबूर करती हैं, ताकि हम एक सुरक्षित और समान समाज की दिशा में आगे बढ़ सकें।

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