ट्रंप की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी पर बोल्टन की सलाह: भारत के साथ तनाव और व्यापार टैरिफ पर चिंता

डोनाल्ड ट्रम्प: पूर्व एनएसए जॉन बोल्टन का विश्लेषण
आमने-सामने दो लोकतंत्र
भारत और अमेरिका, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, पिछले दो दशकों से बेहतर संबंधों के चलते एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं। दोनों देशों की साझेदारी मजबूत है, लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने इसे जटिल बना दिया है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियों ने निश्चित रूप से इस संबंध को प्रभावित किया है। उनके द्वारा घोषित 50 प्रतिशत टैरिफ से यह स्पष्ट हो गया है कि उनके प्रशासन की नीतियां किसी भी सामान्य राजनीतिक सोच के अनुरूप नहीं हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ये नीतियां केवल उन्हीं के कार्यकाल से जुड़ी होंगी और जैसे ही उनका कार्यकाल समाप्त होगा, इनका प्रभाव भी समाप्त हो जाएगा।
जॉन बोल्टन की आलोचना
इस संदर्भ में, पूर्व नेशनल सिक्योरिटी एडवाइज़र जॉन बोल्टन ने ट्रम्प की नीतियों की निंदा की है। उनका कहना है कि ट्रम्प प्रशासन की भारतीय नीति अत्यधिक भ्रामक है। जहां एक तरफ अमेरिका ने रूस से तेल खरीदने पर प्रतिबंध लगा रखा है, वहीं दूसरी ओर चीन को ऐसे ही खुला छोड़ दिया गया है। बोल्टन ने जोर देकर कहा कि वर्तमान में अमेरिका और भारत के बीच संबंध निम्नतम स्तर पर हैं। उनका मानना है कि ट्रम्प की नीतियों का प्रभाव राष्ट्रपति पद के लिए उनकी योग्यताओं के मामले में गंभीर सवाल उत्पन्न करता है।
व्यापारिक टैरिफ का असर
बोल्टन के अनुसार, सबसे बड़ी चिंता तब उजागर हुई जब दोनों देशों के प्रतिनिधि व्यापारिक सौदे पर चर्चा कर रहे थे। अचानक ट्रम्प का 25 प्रतिशत टैरिफ की घोषणा करना, संबंधों में खटास का संकेत है। यह स्पष्ट है कि ट्रम्प की नीतियों ने अमेरिका-भारत संबंधों में निरंतर तनाव उत्पन्न किया है। ट्रम्प का निर्णय सभी को चौंकाने वाला था और इसके लिए कोई ठोस खाका नहीं था। उनकी नीति का यह असंगत रूप स्पष्ट रूप से दिखाता है कि वह समय के अनुसार अपने विचारों को नहीं बदलते।
अविश्वास का माहौल
इसके चलते भारत सहित कई देशों में अमेरिका के प्रति अविश्वास का भाव पैदा हुआ है। पिछले दो दशकों में भारतीय जनसंख्या के साथ अमेरिका के अच्छे संबंध अब तेजी से बिगड़ते नजर आ रहे हैं। बोल्टन ने कहा है कि ट्रम्प की नीतियों के कारण भारत जैसे देशों के साथ दशकों की मेहनत से बनाए गए रिश्ते को नुकसान पहुंचा है। सुधार की प्रक्रिया में समय लगेगा, और इस स्थिति में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि ट्रम्प की सोच सामान्य राजनीतिक विचारधाराओं से अलग है।
नीतियों की विरासत
बोल्टन ने आगे कहा कि ट्रम्प की नीतियों में कोई ठोस दर्शन नहीं है। उनके उत्तराधिकारियों के लिए ट्रम्प की कोई विरासत नहीं होगी, क्योंकि उनकी सोच आम अमेरिकी मानसिकता से भिन्न है। जब उनका कार्यकाल समाप्त होगा, तो ट्रम्प के फैसलों का प्रभाव भी समाप्त हो जाएगा। भविष्य की नीतियों के संबंध में, बोल्टन का सुझाव है कि दोनों देशों के बीच अधिक संवाद होना चाहिए, ताकि संबंधों को बेहतर बनाया जा सके।
सही समय पर संवाद
ट्रम्प और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच पहले अच्छे संबंध थे, लेकिन टैरिफ मुद्दे के चलते यह स्थिति जटिल हो गई है। बोल्टन ने कहा है कि पीएम मोदी को उचित समय पर ट्रम्प से सीधी बातचीत करनी चाहिए, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान। उन्हें वैश्विक मंच पर इस मुद्दे को उठाना चाहिए ताकि स्थिति साफ हो सके।
ट्रम्प का प्रभाव
जब भी बोल्टन या कोई और ट्रम्प के बारे में बात करते हैं, एक बात स्पष्ट है कि ट्रम्प राष्ट्रपति रहे हैं और वे दो बार प्रमुख चुनाव जीतकर वहां पहुंचे हैं। उनकी नीतियों का एक बड़ा अनुसरण है, और जब वह निर्णय लेते हैं, तो उसका प्रभाव दूरगामी होता है। ट्रम्प की नीतियों ने वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच तनाव पैदा किया है। इस प्रकार, अगर स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो यह दोनों देशों के लिए दीर्घकालिक समस्याएँ खड़ी कर सकती हैं।
संशोधित संबंध
भारत के साथ अमेरिका के संबंधों में गिरावट आई है, जबकि भारत-चीन के बीच एक नई गर्मजोशी देखी जा रही है। भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हाल की यात्राएं, साथ ही पीएम मोदी और पुतिन के संभावित संपर्क, एक संकेत हो सकते हैं कि भारत अब अपनी संप्रभुता को लेकर गंभीर है। भारत किसी अन्य देश के निर्देश पर अपने व्यापारिक निर्णय नहीं लेगा।
इन सभी घटनाक्रमों से स्पष्ट है कि अमेरिका-भारत संबंधों को संभालने के लिए एक नए दृष्टिकोण और नीति की आवश्यकता है। वर्तमान प्राथमिकताओं और भविष्य की नीतियों के बारे में बातचीत और संवाद के माध्यम से संबंधों को बेहतर बनाने का मार्ग प्रशस्त करने की आवश्यकता है। इसे संभव बनाने के लिए पॉलिसी मेकरों और नेताओं को कुशलता और सामंजस्य से काम करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
ट्रम्प की नीतियों के दूरगामी प्रभाव ने न केवल भारत और अमेरिका के संबंधों में कठिनाइयाँ पैदा की हैं, बल्कि ये अन्य देशों के साथ अमेरिका के संबंधों पर भी चर्चा कर रहे हैं। अब यह देखने वाली बात होगी कि क्या अगला प्रशासन इन चुनौतियों का सामना कर सकेगा और दुनिया के दक्षिण एशियाई हिस्से में भारत के साथ संबंधों को सुधारने की दिशा में कदम उठा सकेगा।