राजनीतिक

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत और चीन के संबंधों की बढ़ती आवश्यकता।

भारत-चीन संबंध: अंतरराष्ट्रीय राजनीति का नया दौर

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हाल के दिनों में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। कुछ महीनों पहले तक यह असंभव सा प्रतीत होता था कि एक प्रमुख पश्चिमी नेता किसी अन्य देश के प्रति इस प्रकार की नीतियों का अनुसरण करेगा। अलग-अलग घटनाक्रमों ने एक नए दौर की शुरूआत की है, जिसके परिणामस्वरूप भारत-चीन संबंधों में भी महत्वपूर्ण बदलाव हो रहे हैं।

ट्रंप का प्रभाव

अनेक जानकारों का मानना है कि वर्तमान वैश्विक अव्यवस्था के लिए ट्रंप की नीतियां जिम्मेदार रही हैं। उनकी मनमानी और अनिश्चित नीतियों ने कई देशों खासकर भारत के लिए दिशाहीनता पैदा कर दी। भारतीयों ने यह सोचकर ट्रंप का स्वागत किया था कि वह साम्यवादी चीन के खिलाफ एक मजबूत दीवार के रूप में कार्य करेंगे। लेकिन वास्तविकता यह थी कि उनकी प्राथमिकताएं कहीं और थीं।

भारत-पाकिस्तान संबंधों पर प्रभाव

भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की बातों ने भारतीयों को झकझोर दिया था। पिछले तीन दशकों में संबंधों में जो विश्वास बना था, वह अचानक से डगमगा गया। इस दौरान के घटनाक्रमों ने दिखाया कि भारत अब रूस के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने की कोशिश करेगा और चीन के साथ तनाव कम करने का प्रयास करेगा।

चीन के विदेश मंत्री की यात्रा

हाल ही में चीन के विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा ने भी इस दिशा में एक नई हवा पैदा की। उन्होंने यहां राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात की और भारत-चीन सीमा मुद्दे पर चर्चा की। इस बातचीत का उद्देश्य संबंधों को सामान्य बनाना और तनाव को कम करना था।

प्रधानमंत्री मोदी की द्विपक्षीय बैठकें

प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस विषय पर ट्वीट किया कि भारत और चीन के बीच सकारात्मक और स्थिर संबंध वैश्विक शांति में योगदान देंगे। पिछले वर्ष की कजान में हुई बैठक के बाद से द्विपक्षीय संबंधों में सुधार देखने को मिला है। वांग यी ने भी कहा कि दोनों देश अपनी बातचीत के माध्यम से शांति और सौहार्द बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।

नए तंत्रों की स्थापना

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए तीन नए तंत्र स्थापित किए गए हैं। पहला, सीमा परिसीमन के मुद्दों पर विशेषज्ञ दल का गठन, दूसरा, सीमा प्रबंधन के लिए कार्य समूह, और तीसरा, पूर्वी और मध्य क्षेत्र में सामान्य स्तर का तंत्र। दोनों पक्ष ने सीमा व्यापार को बढ़ाने के लिए विशेष व्यापारिक बिंदुओं पर सहमति भी जताई।

जल संसाधनों पर सहमति

चीन ने भारत की कुछ महत्वपूर्ण चिंताओं पर सहमति भी बनाई है, जिनमें दुर्लभ मृदा, उर्वरक और जल विज्ञान संबंधी जानकारी साझा करने की बात शामिल है।

शंघाई सहयोग संगठन में भागीदारी

प्रधानमंत्री मोदी की आगामी यात्रा शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के लिए होगी। यह यात्रा चीन-भारत संबंधों को बेहतर बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। एससीओ एक सुरक्षा संगठन है जो मध्य एशिया की सुरक्षा पर केंद्रित है। पिछले कुछ समय से भारत ने इस संगठन में थोड़ी रुचि दिखाई थी, लेकिन अब यह यात्रा महत्वपूर्ण हो जाती है।

ट्रंप के बयान और नए अवसर

ट्रंप के खिलाफ भारत का रुख और चीन के साथ संबंधों में सुधार की कोशिशें यह संकेत देती हैं कि भारत की रणनीति में बदलाव आ रहा है। यह केवल एक औपचारिक यात्रा नहीं है, बल्कि इसके पीछे गंभीर राजनीतिक मंशा भी निहित है।

भविष्य की दिशा

भविष्य में भारत-चीन संबंधों का उन दोनों देशों की विदेश नीति में महत्व बढ़ने वाला है। समझदारी से प्रबंधित किए गए इस संबंध का क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।

निष्कर्ष

भारत और चीन दोनों को समझदारी से काम करते हुए, दीर्घकालिक संबंधों में निवेश करना चाहिए। दोनों देशों के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाए रखना न केवल उनके लिए, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भी आवश्यक है। यही कारण है कि दोनों को अपनी नीतियों में संतुलन बनाना होगा और एक दूसरे के साथ सहयोग बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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