सोशल मीडिया के इस्तेमाल से बेटे ज्यादा नेगेटिव होते हैं या बेटियां, जान लें किसकी सेहत को…

एक अध्ययन में पाया गया है कि सोशल मीडिया का नकारात्मक असर बेटियों पर बेटों की तुलना में अधिक देखने को मिल रहा है. यह शोध राष्ट्रीय बाल संरक्षण इकाई के अंतर्गत हुआ, जिसमें लगभग 18 लाख 57 हजार बच्चों को शामिल किया गया. इस अध्ययन के अनुसार बेटियों में अविश्वास, आशंका और नकारात्मक व्यवहार की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है.
बेटियों में नकारात्मक व्यवहार और मानसिक स्वास्थ्य
अध्ययन में यह बात सामने आई कि लगभग 45 फीसदी बेटियों के व्यवहार में नकारात्मक बदलाव हुआ है. सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताने से लड़कियों में आत्मविश्वास की कमी, चिंता और तनाव की समस्याएं ज्यादा पाई गई हैं. इसके विपरीत लड़कों की तुलना में बेटियां भावनात्मक रूप से अधिक अनजान लोगों से जुड़ जाती हैं, जिससे उनकी मानसिक स्थिति प्रभावित होती है.
पढ़ाई और सामाजिक संपर्क पर प्रभाव
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि बेटियां सोशल मीडिया पर कई घंटे बिताती हैं, जिससे उनकी पढ़ाई और अन्य जरूरी गतिविधियों पर असर पड़ता है. वे भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाती हैं और सामाजिक संपर्क सीमित हो जाता है. जबकि लड़के सोशल मीडिया का इस्तेमाल कम करते हैं, इसलिए उन पर इसका नकारात्मक प्रभाव कम देखने को मिलता है.
चिंता, तनाव और अविश्वास की बढ़ती भावना
सोशल मीडिया पर लड़कियां ज्यादा समय बिताती हैं और वहां की चीजों को ज्यादा गंभीरता से लेती हैं. इससे उनमें चिंता, तनाव और अविश्वास की भावना बढ़ती है. लड़कियां अपनी समस्याओं को शेयर करती हैं लेकिन सही सलाह या समाधान नहीं पा पातीं, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य और खराब होता है.
सोच और व्यवहार पर सोशल मीडिया का प्रभाव
अध्ययन के अनुसार, सोशल मीडिया बेटियों की सोच और व्यवहार को प्रभावित करता है. वे जल्दी निराश हो जाती हैं और दूसरों से तुलना करने लगती हैं. इससे उनकी आत्म-सम्मान कम होता है और वे सामाजिक रूप से अलग-थलग पड़ सकती हैं. इसके अलावा, सोशल मीडिया पर गलत जानकारी और फेक न्यूज का असर भी उनकी सोच पर पड़ता है. इस समस्या से निपटने के लिए जरूरी है कि माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों खासकर लड़कियों के सोशल मीडिया उपयोग पर नजर रखनी चाहिए. उन्हें समझाना चाहिए कि सोशल मीडिया का सीमित और सही उपयोग कैसे किया जाए. इसके अलावा, बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना और उन्हें सकारात्मक गतिविधियों में शामिल करना भी जरूरी है.
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