नाबालिग से दुष्कर्म और हत्या के दोषी को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदला

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म और उसकी हत्या के मामले में दोषी पाए गए एक व्यक्ति की मौत की सजा को बिना किसी छूट के उम्रकैद में बदल दिया है। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि निचली अदालत और उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सिर्फ अपराध की निर्दयता पर टिप्पणी की और दोषी को मौत की सजा सुना दी। 16 जुलाई को दिए अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों ने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए किसी अन्य परिस्थिति पर विचार नहीं किया और मामले को दुर्लभतम से दुर्लभ माना। लेकिन हमारे विचार से इसे बरकरार नहीं रखा जा सकता।
पीठ ने प्रोबेशन अधिकारी, जेल प्रशासन और दोषी की मानसिक रिपोर्ट की समीक्षा का हवाला देते हुए कहा कि इनसे पता चलता है कि दोषी के परिवार की हालत बेहद खराब है और वे दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। साथ ही दोषी व्यक्ति 12 साल की उम्र से मजदूरी कर रहा है और कभी भी स्कूल नहीं गया। पीठ ने कहा कि इन बातों को ध्यान में रखते हुए और दर्लभतम से दुर्लभ कैटेगरी की सीमा को देखते हुए हमें लगता है कि दोषी को बिना छूट के उम्रकैद की सजा देना ज्यादा ठीक है न कि मौत की सजा देना।
दोषी व्यक्ति ने जनवरी 2020 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। अभियोजन पक्ष ने बताया कि जुलाई 2018 में मिठाई के बहाने से बुलाकर दोषी ने नाबालिग से अपनी झोपड़ी में दुष्कर्म किया और फिर सबूत मिटाने के मकसद से पीड़ित की हत्या कर दी। दोषी की झोपड़ी से पीड़िता के शव की बरामदगी, अंतिम बार देखे जाने के सिद्धांत और डीएनए जांच के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया गया।