आतंक के मामलों में देरी से प्रभावित होती है व्यवस्था: अजीत डोवाल
नई दिल्ली।
यह पहली बार था जब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर सहित शीर्षस्थ कोर्ट के न्यायाधीशों को देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के मुद्दे पर ब्रीफ किया गया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल ने लगभग एक घंटे तक की अपनी ब्रीफ्रिंग के दौरान न्यायिक व्यवस्था में तेजी लाने को कहा।
उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा बिना किसी तरफदारी का मुद्दा होना चाहिए। न्यायाधीशों को यह ब्रीफिंग भोपाल के बाहरी इलाके में स्थित नेशनल जुडिशियल अकादमी के परिसर में बंद कमरे में दी गई। डोवाल ने यह भी रेखांकित किया कि आतंकवाद और जासूसी से सबंधित मामलों में न्यायिक देरी से व्यवस्था प्रभावित होती है।
राष्ट्रीय सुरक्षा के मास्टर प्लान से जुड़ी सूचनाएं की साझा
एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए भारत के मास्टर प्लान से सबंधित सूचनाओं को भी न्यायाधीशों से साझा किया। उन्होंने देश के सामने मौजूद खतरों को भी गिनाया। एनएसए ने प्रौद्योगिकी की महत्ता बताते हुए इस बात पर जोर दिया कि किस तरह से आतंकवाद से लडऩे में प्रौद्योगिकी की मदद ली जा सकती है। न्यायाधीशों को आतंकवाद से लडऩे में रिसर्च एंड डेवलपमेन्ट से जुड़ी प्रतिरोधक क्षमता के बारे में भी जानकारी दी गई।
न्यायिक व्यवस्था से सहयोग की मांग
सूत्रों के अनुसार एनएसए ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा बिना किसी तरफदारी वाला मुद्दा होना चाहिए तथा इसे बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के आधार पर निपटाना चाहिए। न्यायिक व्यवस्था से और अधिक सहयोग की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के सभी स्तभों को देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा में मजबूती देने की दिशा में काम करने की जरूरत है।
जजों को ब्रीफ किए जाने का शुरू हुआ विरोध
उधर, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशान्त भूषण ने जजों को ब्रीफिंग दिए जाने का विरोध करते हुए कहा कि उनका मानना है कि मानवाधिकार संगठनों के प्रतिनिधियों की गैर मौजूदगी में जजों को केवल एनएसए द्वारा ब्रीफ किया जाना अनुचित है। उन्होंने कहा कि इस पर भी विचार किया जाना चाहिए कि सुरक्षा एजेंसियों की कार्रवाइयों का किस तरह से मानवाधिकारों पर असर पड़ता है।