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भैंस चराने वाला बन गया कास्टिंग डायरेक्टर

आगरा. ये कहानी है सुनील शाक्य की। उनकी हिम्मत की। उनके जज्बे की। उनकी जिजीविषा की। धुर गांव के हैं सुनील शाक्य। आगरा में सिकंदरा के पास अरसेना गांव के हैं। गाँव के खेतों में खेल कर बड़े हुए। भैंसों को भी जंगल में चराया। खेत की फसल काटी। ऐसे गाँव से बाहर निकलना भी मुश्किल था। माँ-पापा ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे। कोई बताने वाला नहीं था कि लाइफ में करना क्या है। अपनी दम पर जमीन तैयार की। आज सुनील शाक्य मुंबई में हैं और कास्टिंग डायरेक्टर हैं। सुनील शाक्य के पिता रामखिलाड़ी और माँ गुड्डी देवी को अपने बेटे की उपलब्धियों पर नाज है।
थिएटर के लिए दिल्ली छोड़ आगरा को चुना
प्रारंभिक पढ़ाई गांव के स्कूल में की। जब 12 वीं पास की तो भविष्य को लेकर चिन्ता हुई। बीएससी के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी से फॉर्म डाला और प्रवेश सूची में नाम भी आ गया। मास मीडिया के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया से फॉर्म भरा। वहाँ भी चयन हो गया। इधर आगरा विश्वविद्यालय के ललित कला संस्थान से थिएटर आर्ट से बीएफए के लिए फॉर्म डाला और चयन हो गया। सुनील शाक्य के मन में कलाकार बसा हुआ था। निर्देशक बनने की धुन थी। इसलिए ललित कला संस्थान को चुना। वहां से आर्ट ऑफ़ हिस्ट्री, भारतीय क्षेत्रीय ड्रामा, कंटेम्परेरी थिएटर के बारे में सीखा। आगरा यूनिवर्सिटी के यूथ फेस्टिवल में कई बार मोनो एक्ट में प्रथम आए। अभिनय की बारीकियां सीखीं आगरा के थिएटर ग्रुप के साथ। नटरांजलि थिएटर आर्ट ग्रुप में अलका सिंह के साथ थिएटर किया। उनके साथ ऑल इंडिया ड्रामा कॉम्पटीशन में हिस्सेदारी निभाई।
मुंबई में धक्के खाए
एक फ़िल्म मिली ‘वाह ताज’, जिसमें श्रेयश तलपड़े मुख्य भूमिका में हैं। पहली बार बतौर एक्टर काम किया। बनना तो निर्देशक था। इसलिए निर्देशन की तरफ ध्यान ज्यादा दिया। पहुंच गए मुम्बई। यहाँ काफी परेशानी हुई। वाह ताज की टीम से सम्बन्ध तो अच्छे बन गए लेकिन फ़िल्म के प्रोड्यूसर डायरेक्टर तब तक आपकी सहायता नहीं कर सकते, जब तक फ़िल्म रिलीज नहीं हो जाती। बहुत कठिन समय था। दौड़ भाग की। जगह बनाई।
ऐसे मिला मौका
नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के राकेश मुद्गल ने क्रिएटिव डायरेक्टर उपेन शुक्ला से मिलवाया। वे एक डिज़्नी का शो कर रहे थे। उन्होंने बोला कि कास्टिंग डायरेक्टर बनोगे। सीधा बोल दिया- हां। तक उनके साथ मिलकर शो कास्ट किया। उपेन शुक्ला ने बहुत मदद की। तीन महीने में हमने कास्टिंग ख़त्म की। 31 जनवरी 2015 को शो ऑन एयर हुआ।
इश्क का रंग सफेद के लिए धानी का चयन
फिर उसी प्रोडक्शन का उतरन शो बंद होने वाला था। कलर्स चैनल एक नया शो आने आने वाला था, जिसका नाम था इश्क का रंग सफ़ेद। उसकी कास्टिंग करने का अवसर मिला। उसमें धानी के किरदार को कास्ट करना बहुत कठिन रहा। 1000 से अधिक लड़कियों का टेस्ट किया। कोई परिणाम नहीं आया। एक दिन भोपाल से एक दोस्त मुम्बई आए। उन्हें शो के बारे में जानकारी दी। वे बोले कि मेरी भतीजी है, एक बार देख ले। ऑडीशन की रिकार्डिंग मांगी। जिसकी तलाश थी, वो लड़की मिल गई। उसका नाम था ईशा सिंह। उस शो से काफी प्रसिद्धि मिली। सुनील शाक्य का कहना है कि अब तक के सफ़र में मेरे माँ, पापा और मेरी पत्नी सीमा ने बहुत साथ दिया।
इनमें की कास्ट डायरेक्टिंग
डिजनी चैनल पर जिन्दगी खट्टी-मीठी, कलर्स पर इश्क का रंग सफेद, जीटीवी पर सरोजिनी, एंडटीवी पर भाग्य लक्ष्मी, यूटीवी बिन्दास पर डिस्ट्रिक्शन, स्टार प्लस पर सिलसिला प्य़ार का, डीडी नेशनल पर मशाल, बिग बॉस का ग्रांड फिनाले। लाइफ ओके और जीटीवी चैनल पर एक-एक शो आने वाला है। चाइनीज फिल्म की। विज्ञापन फिल्में कार देखो डॉट कॉम, सोनी ब्रेविया क्रिकेट कप 2015, हिमालया नीम फेसवॉश, डाबर वाटिका शैम्पू, स्टार प्लस प्रोमो का भी कास्ट डायरेक्ट किया है।

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