अंतरराष्ट्रीय

रूस ने ब्रिटिश काउंसिल को घोषित किया अवांछनीय संगठन


मॉस्को। यूक्रेन की मदद कर रहे ब्रिटेन पर रूस ने बड़ा आरोप लगाया है। रूस ने ब्रिटिश काउंसिल को अवांछनीय संगठन घोषित किया है। रूस का आरोप है कि वह ब्रिटेन की खुफिया सेवा एम आई 6 को बचाने के लिए काम करता है। साथ ही इसके जरिये देशों की संप्रभुता को कमजोर किया जाता है।
रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने कहा कि हमें जानकारी मिली है कि ब्रिटिश खुफिया सेवाएं स्वतंत्र देशों की संप्रभुता को नष्ट करने के लिए गुप्त अभियानों में ब्रिटिश काउंसिल का उपयोग करती हैं। 2018 से निष्क्रिय ब्रिटिश काउंसिल को रूस ने अवांछनीय संगठन घोषित कर दिया।
जखारोवा ने कहा कि विशेष सैन्य अभियान की शुरूआत के बाद यूक्रेन अभियान का जिक्र करते हुए ब्रिटिश काउंसिल ने यूके सरकार के जरिये शत्रुतापूर्ण रूस विरोधी कदमों के साथ मिलकर काम किया। संगठन ने हमारे देश के नेतृत्व की नीति को बदनाम करने और दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से सीआईएस में रूसी प्रभाव को कम करने के लिए बड़ी मदद की।
उन्होंने कहा कि इसके लिए तमाम अनुदान कार्यक्रमों का व्यापक रूप से उपयोग किया गया। रूसी संघ के नए घटकों की स्थिति, संलग्नता रेखा की स्थिति, साथ ही संभावित रूप से संवेदनशील प्रकृति के अन्य डाटा के बारे में जानकारी एकत्र करने के प्रयास किए गए। हालांकि ब्रिटिश काउंसिल के रूसी कार्यालय को पहले ही बंद कर दिया गया था, फिर भी संगठन ने अन्य देशों में स्थित स्थानों से अपना विद्रोही कार्य जारी रखा तथा हमारे प्रवासियों को अपनी परियोजनाओं में शामिल किया।
उन्होंने कहा कि इसके लिए पूरे ब्रिटिश काउंसिल को अवांछनीय संगठन घोषित करना जरूरी हो गया था। पिछले साल तक रूसी कानून में एक सीमा के कारण ऐसा नहीं हो सकता था, क्योंकि विदेशी देशों की सरकारी एजेंसियों द्वारा स्थापित संगठनों को अवांछनीय का दर्जा नहीं दिया जा सकता था। अब यह कमी दूर कर दी गई है।
जखारोवा ने कहा कि रूस ने मित्र देशों को ब्रिटेन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने और छेड़छाड़ करने के खिलाफ चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश काउंसिल जैसे संगठनों के लिए सही हालात तय करने उन्हें युवाओं के साथ काम करने और हानिरहित सांस्कृतिक और शैक्षिक परियोजनाओं को लागू करने के अवसर प्रदान करने से महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं पर नियंत्रण खोने का खतरा है। ऐसे मामलों में यूके द्वारा अर्जित प्रभावशाली पदों का बाद में अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए उपयोग किया जाता है। इससे उनकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को सीधे खतरा होता है।

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