राजनीतिक

उत्तर प्रदेश में 14 महीने बाद होने वाले चुनाव के लिए सियासी दलों ने कसी कमर

लखनऊ । करीब 14 महीने बाद उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। बिहार के बाद यूपी भाजपा के लिए बड़ा मुकाम है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की टीम तीसरी बार कड़ी चुनौती को ढंग से समझ रही है। 1-1 सीट पर समीकरण बिठाने का काम चल रहा है। हालांकि, इस तरह की तैयारी में न तो समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव पीछे हैं और न मायावती। अखिलेश के करीबी संजय लाठर कहते हैं कि अब कोई मौका चूकने का समय नहीं है।
समाजवादी पार्टी के सचिव सुशील दुबे काफी सक्रिय हैं। एसआईआर मुद्दे पर सतर्कता के साथ विधानसभावार संगठन को मजबूत बनाने का काम चल रहा है। प्रो. अभिषेक मिश्रा भी सपा प्रमुख के करीबियों में गिने जाते हैं। लखनऊ की सरोजनी नगर विधानसभा सीट के साथ-साथ प्रदेश में ब्राह्मण समाज में अलख जगाने में व्यस्त हैं। अभिषेक मिश्रा का कहना है कि यूपी में भाजपा अपना आखिरी कार्यकाल पूरा करेगी। सुशील दुबे को भी यही उम्मीदें हैं। संजय लाठर कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जनता में नाराजगी काफी बढ़ चुकी है। एसआईआर को लेकर समाजवादी पार्टी काफी सक्रिय है। बूथ प्रहरी इसको लेकर संवेदनशील है और जमीनी स्तर पर चेक-बैलेंस में लगे हैं।
दूसरी तरफ बसपा में जो भी हैं बहन जी और पार्टी प्रमुख मायावती हैं। मेवालाल गौतम पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं, लेकिन उनका काम मायावती के संदेश को मीडिया और बहुजन समाज पार्टी की भाई चारा बनाओं समिति समेत तमाम ईकाइयों तक पहुंचाना है। बसपा प्रमुख मायावती अपने खास सतीश चंद्र मिश्रा के साथ 2027 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर संगठन में जान डालने की मंत्रणा कर रही है। सूत्र बताते हैं कि बसपा जमीन पर बड़ी तैयारी कर रही है। आकाश आनंद एक बार फिर यूपी से बड़ी तैयारी के साथ उतरेंगे। बसपा के काडर में मायावती के बाद सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला चेहरा आकाश आनंद ही हैं।
संजय लाठर का कहना है कि हमारे पास बूथ स्तर पर हर जगह प्रहरी हैं। हम विरोध नहीं करेंगे। अपना 90-95 प्रतिशत पर पीडीए प्रहरी काम कर रहे हैं। हर स्तर पर, हर मोर्चे पर लड़ेंगे। हमारे पास साल भर का समय है। समाजवादी पार्टी एसआईआर से लेकर किसी भी मुद्दे पर कोई कोशिश कामयाब नहीं होने देगी।
बसपा ने भी एसआईआर के मुद्दे पर कमर कस ली है। सभी क्षेत्रों में बीएलए की सूची सौंपने की प्रक्रिया अंतिम दौर में है। बूथ स्तर पर मतदाता सूची के निरीक्षण को लेकर कांग्रेस भी गंभीर है। जहां कांग्रेस का संगठन मजबूत स्थिति में है, वहां तेजी से प्रयास चल रहे हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव का नतीजा आने के बाद समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने कमर कस ली है। अखिलेश यादव तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लगातार संपर्क में हैं। मई 2026 में तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है। अखिलेश यादव तमिलनाडु में एमके स्टालिन की पार्टी डीएमके के समर्थन में प्रचार के लिए जा सकते हैं। इसी तरह से वह तृममूल कांग्रेस के साथ भी राजनीतिक रिश्तों को मजबूती देने में लगे हैं।
जिसकी रहेगी मुकम्मल तैयारी, उसी की रहेगी भाजपा के टिकट पर दावेदारी
यूपी में भाजपा को अपना नया अध्यक्ष बनाना है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के उत्तराधिकारी की तरह यह नाम भी अभी तय होना है। पार्टी के पास इस बार एक बड़ी चुनौती अखिलेश यादव के पीडीए के मुद्दे को साधने की है। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन ने उम्मीद से अधिक सफलता पाई थी। प्रयागराज से संघ के प्रचारक रहे भाजपा नेता का कहना है कि 2024 का लोकसभा चुनाव जहन में है और 2027 में विपक्षी दलों की चाल सफल नहीं हो पाएगी।
लखनऊ में 2027 की हलचल अभी से है। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक के दरवाजे पर मिलने वालों की भीड़ बढ़ रही है। टीम योगी भी पूरी सावधानी और सतर्कता से विधानसभावार 1-1 सीट पर नजर रख रही है। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में नीति आयोग की तर्ज पर राज्य परिवर्तन आयोग के पुनर्गठन को मंजूरी दी और पूर्व मुख्यसचिव मनोज कुमार सिंह को इसका सीईओ बनाया है। वह जल्द ही इस आयोग के सुझाव के आधार पर कुछ बड़ी घोषणा करने वाले हैं। इस बार भाजपा के टिकट पर कुछ बड़े बाहुबली नेता उतर सकते हैं। इन नेताओं ने भी अपना होमवर्क तेज कर दिया है। इस बारे में दीन दयाल उपाध्याय मार्ग स्थित भाजपा के केन्द्रीय मुख्यालय के बड़े नेता का कहना है कि शेर के सामने बकरी को उतारना कौन सी बुद्धिमानी है। सूत्र का कहना है कि विपक्षी दल जब बाहुबलियों को टिकट देते हैं तो उनके सामने खड़ा होने वाला उम्मीदवार दूसरे दलों की मजबूरी बन जाता है।

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