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सलीम खान ने असल जिंदगी से गढ़ा मौसी वाला सीन:’शोले’ के डायरेक्टर रमेश सिप्पी बोले- सलीम खान ने दोस्त की शादी का अनुभव लिखा था

हिंदी सिनेमा के दिग्गज लेखक सलीम खान ने 1970 और 1980 के दशक में शोले, जंजीर और सीता और गीता जैसी कई सुपरहिट फिल्में लिखी हैं। आज यानी सोमवार को सलीम खान अपना 90वां जन्मदिन मना रहे हैं। इस खास मौके पर फिल्म शोले के डायरेक्टर रमेश सिप्पी ने दैनिक भास्कर के साथ बातचीत में उनसे जुड़ी कई यादें शेयर कीं।
रमेश सिप्पी ने कहा कि सलीम और जावेद दोनों संग नाता मेरी पहली फिल्म अंदाज की मेकिंग के दौरान शुरू हुआ। मैं फिल्म के आधे रास्ते पर था जब सलीम साहब और जावेद साहब मेरे आॅफिस आए। उनसे मुलाकात हुई और फिर मैंने उन्हें स्टोरी डिपार्टमेंट में रखा। हमने उन्हें मासिक 750 रुपए का वेतन देना शुरू किया यानी दोनों को मिलाकर 1500 रुपए का पैकेज था।
रमेश सिप्पी ने आगे बताया कि बाद में जब हम तीनों की जर्नी कामयाब रही और हमने साथ में आगे और भी काम किया तो वह रकम 10 लाख रुपए तक भी गई। साल 1971 में अप्रैल में फिल्म अंदाज की सफलता के तुरंत बाद, जुलाई में फिल्म सीता और गीता पर काम शुरू हो गया, जिससे उनकी यह साझेदारी तेजी से आगे बढ़ी।
रमेश सिप्पी ने बताया कि सलीम-जावेद बतौर टीम की साझेदारी में दोनों का योगदान विशिष्ट था। वे दोनों ही बहुत अच्छे थे। डिस्कशन और स्क्रीनप्ले पर सलीम साहब काफी ज्यादा ध्यान देते थे और उनका योगदान प्रमुख था। हां, कुछ चीजों के लिए डायलॉग्स भी, लेकिन डायलॉग्स पर ज्यादा पकड़ जावेद साहब की थी। सलीम खान की मुख्य यूएसपी हमेशा स्क्रीनप्ले को लेकर रही।
सिप्पी ने आगे बताया कि मैंने उन्हें जॉइंट राइटिंग का क्रेडिट दिया था, लेकिन जब डायलॉग पर भी बैठते थे, सुनते थे, तो कोई सजेशन इधर-उधर हुआ तो इन्कॉरपोरेट हो जाता था। आप सोचिए, उस दौर में साथ चलना बड़ा मुश्किल था, लेकिन हम तीनों एक टीम की तरह काम करते थे।
रमेश सिप्पी ने बताया कि हम तीनों के लिए जो वेस्ट की फिल्में थीं, उनका हमारी जर्नी में काफी कॉन्ट्रीब्यूशन था, क्योंकि वो हमारी अपब्रिंगिंग का हिस्सा थीं। बेशक, हिंदी सिनेमा का सर्वश्रेष्ठ काम भी, चाहे वह मुगले-आजम हो, मदर इंडिया हो, या कोई भी बेहतरीन काम हम अच्छे सिनेमा के हमेशा शौकीन रहे। हम तीनों की सोच एक जैसी थी। इसीलिए साथ काम करने में मजा आ रहा था। जब सफलता मिली तो यह हमारे लिए और भी बड़ा प्रोत्साहन बना कि हम और आगे बढ़ें। मैंने और सलीम-जावेद के साथ मिलकर कुल चार-पांच फिल्मों पर काम किया, जिसके बाद यह जोड़ी अलग हुई।
रमेश सिप्पी ने बताया कि सलीम-जावेद के अलग होने के बाद, मैंने जावेद साहब के साथ ‘सागर’ और सलीम साहब संग फिल्म ‘अकेला’ की थी। फिल्म अकेला की कहानी डिस्कशन में टफ कहानी की बात हुई। बैठे, डिस्कशन हुई और जैसे स्क्रिप्ट बनती है, वैसे बनी। उस वक्त अंडरवर्ल्ड काफी एक्टिव था, खासकर बॉम्बे में। जब एक मजबूत अंडरवर्ल्ड होता है, तो उसके सामने खड़े होने के लिए एक मजबूत कॉप की जरूरत महसूस होती है। इसी जरूरत से अमिताभ बच्चन के उस मजबूत किरदार को बल मिला, जिसने फिल्म में जान डाल दी।
सलीम खान के स्वभाव को लेकर रमेश सिप्पी ने बताया कि दिन में जब हम काम करते थे, तो कोई जाम-वाम की बात नहीं होती थी। डिस्कशन के बाद अगर रात को मीटिंग एक्सटेंड होती थी या रात को डिस्कशन के लिए बैठते थे, तो उसके बाद थोड़ी-बहुत बातचीत होती थी। हमने कभी ड्रिंक्स को काम से मिक्स नहीं किया, न जावेद साहब के साथ, न उनके साथ।
सलीम साहब के साथ रचनात्मक संघर्ष  पर बात करते हुए रमेश सिप्पी ने बताया कि डिस्कशन हुआ करते थे, लेकिन कॉन्फ्लिक्ट बहुत कम हुआ। हम ज्यादातर चीजों पर सहमत हो जाते थे। अगर किसी एक का पॉइंट आॅफ व्यू स्ट्रांग हुआ, तो बाकी दो डिस्कशन करते थे और या तो वो मान जाता था या हम मान जाते थे। फाइनल डिसीजन हमेशा इसी बात पर होता था कि यही सही है क्योंकि फिल्म तो मुझे बनानी है। सलीम-जावेद जब तक साथ रहे तो उस दौर में अकेले ही लिखते थे और आजकल की तरह कोई बड़ी राइटिंग टीम नहीं रखते थे।
सलीम खान की लेखन शैली पर बात करते हुए रमेश सिप्पी ने बताया कि उनकी लेखन शैली में वास्तविक जीवन की घटनाओं को शामिल करने की आदत थी, जैसा कि ह्यशोलेह्ण के मौसी वाले सीन में हुआ। वो मौसी का सीन ऐसा था कि सलीम साहब अपने एक दोस्त के रिश्ते के लिए उस लड़की की मां से मिलने गए थे, जो कि उस रिश्ते के खिलाफ थीं। उनको समझाने गए, तो समझाते-समझाते ऐसी भी बातें हुईं कि ‘हां, शराब तो पीते हैं’ और ‘एक तो वो है और वो है’… इस टाइप का सीन हुआ था वहां। यह एक रियल-लाइफ थिंग है।
सलीम खान के निजी जीवन के बारे में बात करते हुए सिप्पी ने बताया कि उन्हें जन्मदिन पर किस तरह का सेलिब्रेशन पसंद था। उन्होंने बताया कि उनका सेलिब्रेशन आमतौर पर बहुत ही क्लोज होता था। मोस्टली जस्ट वन्स इन ए व्हाइल ही कोई बड़ा इवेंट होता था, बट ज्यादातर 8-10 या 12 लोग होते थे, कोई बहुत बड़ा नहीं।
रमेश सिप्पी ने बताया कि शोले की स्क्रिप्ट सलीम-जावेद ने मिलकर 15 दिनों में लिख दी थी। इसके अलावा सीता और गीता भी फटाफट हो गई थी। हालांकि, फिल्म शान में थोड़ा ज्यादा वक्त लगा। शान में तकरीबन दो-तीन महीना लगा होगा क्योंकि वो एपिसोड्स थे, सीक्वेंसेस थे। वन लाइनरह्ण (कहानी का सार) तो क्लियर थी, लेकिन उसमें ट्रक का सीन है, एक्शन थे, तो उस हिसाब से काम करने में थोड़ा टाइम लगा।

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