
नई दिल्ली । पिछले कुछ वर्षों का मेडिकल डेटा उठाकर देखें तो पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर कई प्रकार की बीमारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है। नॉन कम्युनिकेबल डिजीज जैसे कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और श्वसन संबंधी बीमारियों के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र पर दबाव तो बढ़ा ही है साथ ही कई प्रकार की संक्रामक बीमारियां भी विशेषज्ञों की टेंशन बढ़ाती जा रही हैं। विशेषतौर पर भारतीय आबादी में बढ़ते संक्रामक रोगों के खतरे को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञ गंभीर चिंता व्यक्त करते हैं।
इसी से संबंधित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की हालिया रिपोर्ट काफी चिंता बढ़ाने वाली है। इसमें कहा गया है कि भारत में हर नौ में से एक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की संक्रामक बीमारी का शिकार पाया जा रहा है। ये निश्चित ही गंभीर चिंता वाली बात है।
देश में कई प्रकार की संक्रामक बीमारियों जैसे हेपेटाइटिस ए, इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम, हर्पीज, श्वसन बीमारियों का खतरा देखा जा रहा है जिसको लेकर विशेषज्ञों ने सावधान किया है।
भारत में संक्रामक बीमारियों के खतरे को समझने के लिए आईसीएमआर ने 4.5 लाख रोगियों के सैंपल टेस्ट किए जिनमें से 11.1 प्रतिशत में संक्रमण की पुष्टि हुई। ये लोग एक्यूट या किसी तरह की जानलेवा संक्रामक बीमारी का शिकार थे। जिन पांच रोगाणुओं को सबसे ज्यादा रिपोर्ट किया गया उनमें इन्फ्लूएंजा ए, डेंगू, हेपेटाइटिस ए, नोरोवायरस और हर्पीज प्रमुख हैं।
इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण तीव्र श्वसन संक्रमण, डेंगू वायरस के कारण तीव्र और रक्तस्रावी बुखार, हेपेटाइटिस-ए के कारण पीलिया और लिवर से संबंधित समस्याएं, नोरोवायरस के कारण दस्त रोग और हर्पीज सिम्प्लेक्स वायरस (एचएसवी) के कारण इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।




