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कैसे किया जाता है अहोई अष्टमी व्रत? जानिए अहोई माता की पूजा का शुभ मुहूर्त और तारों को अर्घ्द देने का समय

अहोई माता की पूजा का शुभ मुहूर्त
अहोई अष्टमी व्रत भारतीय हिंदू महिलाओं के लिए प्रमुख व्रतों में से एक है। यह कार्तिक महीने की अष्टमी तिथि को पड़ता है। इस दिन माताए अपने बच्चों की जीवनभर रक्षा की कामना करते हुए माता अहोई का पूजन करती हैं। पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 13 अक्टूबर को पड़ रही है।
बहुत सी महिलाएं पहली बार यह व्रत कर रही होंगी। ऐसे में उनके लिए यह तिथि और भी महत्वपूर्ण रहेगी। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की दीघार्यु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। माना जाता है कि अहोई माता की पूजा के प्रभाव से ही संतान सुख और उसके उज्ज्वल भविष्य का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
तारों के दर्शन क बिना अपूर्ण है ये पूजा
यह तो सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में ज्यादातर त्योहारों में चंद्नमा की पूजा की जाती है। वहीं, तारों का भी महत्व कम नहीं होता। अहोई अष्टमी की पूजा में तारों के दर्शन क बिना अपूर्ण मानी जाती है। मान्यता है कि जब आसमान में तारे दिखाई देने लगते हैं, तब उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। फिर महिलाएं अपने व्रत का पारण करती हैं। विधिवत व्रत की पूजा और उसका पारण करने से अहोई माता प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मान्यता है कि निसंतान महिलाओं द्वारा इस व्रत को करने से माता अहोई के आशीर्वाद से उन्हें संतान सुख प्राप्त होता है।
अहोई अष्टमी 2025 पूजा शुभ मुहूर्त
अहोई अष्टमी सोमवार 13 अक्टूबर के दिन पूजा का शुभ समय शाम 5:53 मिनट से प्रारंभ होगा और शाम 7 बजकर 8 मिनट तक बना रहेगा। इस प्रकार अहोई अष्टमी का व्रत रखने वाली माताओं के लिए पूजा की सबसे अच्छी अवधि 1 घंटे 15 मिनट तक रहेगी। वहीं, तारों को अर्घ्य देने का समय शाम 6 बजकर 17 मिनट तक है। इस दिन चंद्रोदय का समय रात 11 बजकर 40 मिनट है।
ऐसे करें अहोई अष्टमी पूजा
अहोई अष्टमी के दिन सुबह ही स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
अब घर में गंगाजल छिड़कें और दीवार पर कुमकुम से अहोई माता की तस्वीर बनाएं।
शाम के समय पूजा के समय अहोई माता के सामने घी का दीपक जलाएं।
पूजा की थाली में फूल, फल और मिठाई रख लें।
इस दौरान आप दान की चीजें और पूजन की सामग्री को भी रख लें।
अब माता से अपने बच्चों की लंबी उम्र और अच्छे अच्छी सेहत का वरदान मांगें।
फिर घर में बने पकवानों का भोग माता को अर्पित करें।
इसके बाद शाम को तारे निकलने के बाद उन्हें अर्घ्य दें।
इसके बाद अपने घर के बुजुर्गों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें और फिर भोग में रखें प्रसाद को खाकर अपना व्रत खोलें।

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