मथुरा के सुरीर में महिलाएं नहीं रखती करवाचौथ व्रत:200 साल पहले सती ने गांव वालों को दिया था श्राप

मथुरा । मथुरा के कस्बा सुरीर में महिलाएं करवाचौथ और अहोई अष्टमी जैसे पर्व नहीं मनाती हैं। इस परंपरा के पीछे लगभग 200 साल पुरानी घटना और सती का श्राप जुड़ा माना जाता है। सुरीर की महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत नहीं रखतीं। नई बहुओं के लिए यह परंपरा अक्सर चौंकाने वाली होती है।
विवाहिता रीता सिंह ने बताया कि शादी के बाद उनका पहला करवाचौथ था, लेकिन ससुराल में यह पर्व न मनाने की परंपरा के कारण उन्हें व्रत रखने की इच्छा छोड़नी पड़ी। सपना नामक महिला ने कहा कि आठ साल पहले विवाह के बाद पहला करवाचौथ न मना पाने की कसक उन्हें आज भी महसूस होती है।
मोहल्ले की सुनहरी देवी और अन्य महिलाओं का कहना है कि वे व्रतों से अधिक अपने परिवार की सलामती और ईश्वर पर भरोसा करती हैं।
रामवती नामक महिला ने बताया कि उनका मानना है कि अब सती माता श्राप नहीं बल्कि आशीर्वाद देती हैं, लेकिन पुरानी परंपरा को तोड़ने की हिम्मत किसी में नहीं है।
200 साल पुरानी श्राप की कहानी
यह श्राप लगभग 200 साल पुराना माना जाता है। बताया जाता है कि नौहझील के रामनगला गांव का एक ब्राह्मण युवक अपनी पत्नी को गौना कराकर सुरीर के रास्ते भैंसा बुग्गी से ले जा रहा था। तभी कुछ ठाकुरों ने विवाद खड़ा कर उसकी हत्या कर दी।
पति की मृत्यु देखकर पत्नी ने वहीं सती होकर मोहल्ले के लोगों को श्राप दिया। कहा जाता है कि इस घटना के बाद कई नवविवाहिताएं असमय विधवा हो गईं और परिवारों में जवान मौतों का सिलसिला शुरू हो गया।
आज भी परंपरा का पालन
इस श्राप से भयभीत होकर लोगों ने तब से करवाचौथ और अहोई अष्टमी न मनाने का संकल्प लिया। सुरीर की महिलाएं पूरा सोलह श्रृंगार भी नहीं करतीं। इसके अतिरिक्त, रामनगला गांव के लोग आज भी सुरीर में खाना-पीना नहीं करते और सती माता की इस मान्यता का पालन करते हैं।