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विश्व चैंपियन सुमित अंतिल का लक्ष्य- भविष्य में 80 मीटर भाला फेंकना, जानें क्या कहा

नई दिल्ली । भारत के स्टार पैरा भाला फेंक एथलीट सुमित अंतिल ने एक बार फिर इतिहास रच दिया है। 27 वर्षीय खिलाड़ी ने विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2025 में लगातार तीसरी बार स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया। इसके साथ ही वे इस चैंपियनशिप के इतिहास में सबसे सफल भारतीय पैरा एथलीट बन गए हैं।
सुमित ने पुरुषों की एफ64 श्रेणी में 71.37 मीटर का थ्रो किया, जो न सिर्फ चैंपियनशिप रिकॉर्ड रहा बल्कि इस जीत ने भारत की झोली में एक और स्वर्ण पदक भी डाल दिया। खास बात यह रही कि उनके इस ऐतिहासिक पल का गवाह ओलंपिक पदक विजेता नीरज चोपड़ा भी बने, जो स्टैंड से उन्हें चीयर कर रहे थे।
सुमित ने स्वर्ण पदक जीतने के बाद कहा, ‘देखिए हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि एक पैरा एथलीट के तौर पर हम कितनी दूरी तक जा सकते हैं क्योंकि मैंने अक्सर सुना है कि एक पैरा एथलीट इतना अच्छा नहीं फेंक सकता। इसलिए हम इस सवाल का जवाब ढूंढ रहे हैं।’
खिताब जीतने के बाद सुमित ने साफ कहा कि उनका अगला लक्ष्य 80 मीटर तक भाला फेंकना है। उन्होंने कहा, ‘जब मैंने खेलना शुरू किया था तो किसी ने नहीं सोचा था कि पैरा एथलीट 70 मीटर तक भाला फेंक सकते हैं। अब हमने वह कर दिखाया है। आगे हमारा लक्ष्य 75 से 80 मीटर तक पहुंचना है।’
सुमित का वर्तमान विश्व रिकॉर्ड 73.29 मीटर का है, जो उन्होंने 2023 एशियाई पैरा खेलों में बनाया था। हालांकि इस बार वह अपने ही रिकॉर्ड से थोड़ा पीछे रह गए। उन्होंने कहा कि कंधे और गर्दन में हल्की परेशानी के चलते वे पूरा दम नहीं लगा पाए, लेकिन चैंपियनशिप रिकॉर्ड बनाना उनके लिए खुशी की बात है।
भारत का शानदार प्रदर्शन, एक ही दिन चार पदक
सुमित के अलावा भारत ने इस दिन और भी उपलब्धियां हासिल कीं। संदीप सरगर ने पुरुषों की एफ44 श्रेणी में 62.82 मीटर का थ्रो कर स्वर्ण जीता। इसी स्पर्धा में भारत के ही एक और खिलाड़ी ने रजत पदक हासिल किया।
योगेश कथुनिया ने पुरुषों की एफ56 चक्का फेंक स्पर्धा में रजत पदक जीता। यह उनका लगातार तीसरा विश्व चैंपियनशिप रजत है। इन नतीजों के बाद भारत की कुल पदक संख्या चार स्वर्ण, चार रजत और एक कांस्य पर पहुंच गई और तालिका में भारत चौथे स्थान पर रहा।
कथुनिया- संघर्ष और जज्बे की मिसाल
28 वर्षीय योगेश कथुनिया की कहानी भी प्रेरणा से भरी हुई है। बचपन में उन्हें गिलियन-बैरे सिंड्रोम नामक दुर्लभ रोग हो गया था, जिसके चलते डॉक्टरों ने कहा था कि वे कभी चल नहीं पाएंगे। लेकिन मां की मेहनत और फिजियोथेरेपी ने उन्हें दोबारा खड़ा किया। आज वे लगातार चार विश्व चैंपियनशिप में पदक जीत चुके हैं और दो पैरालंपिक में भी रजत पदक अपने नाम कर चुके हैं। हालांकि अब भी उनका इंतजार पहले स्वर्ण पदक का है।

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