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धर्मत्रिपुर सुंदरी मंदिर कहां है, कब और किसने बनवाया?

माता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, त्रिपुरा के गोमती जिले के उदयपुर नगर में स्थित 51 प्राचीन शक्ति पीठों में से एक है। स्थानीय लोग इसे त्रिपुरेश्वरी मंदिर या माताबाड़ी के नाम से भी जानते हैं। मान्यता है कि यहीं देवी सती का दाहिना चरण भाग भगवान शिव के तांडव के समय गिरा था।
श्री विद्या परंपरा में मां त्रिपुरा सुंदरी को सर्वोच्च शक्ति और तीनों लोकों की सबसे सुंदर देवी के रूप में पूजा जाता है। देवी को षोडशी या ललिता भी कहा जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नवरात्रि के पहले दिन त्रिपुरा के उदयपुर में पुनर्विकसित ‘माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर’ का उद्घाटन किया।
इस मंदिर का निर्माण महाराजा धन्य माणिक्य ने 1501 ईस्वी में करवाया था। कहा जाता है कि महाराजा को रात में स्वप्न आया जिसमें देवी त्रिपुरेश्वरी ने उन्हें उदयपुर नगर के पास पहाड़ी पर पूजा आरंभ करने के लिए कहा। बार-बार स्वप्न आने के बाद महाराजा ने मां त्रिपुरा सुंदरी की प्रतिमा स्थापित की।
यह ऐतिहासिक मंदिर वैष्णव और शाक्त परंपराओं का अद्भुत संगम है, जो विविधता में एकता का प्रतीक है। यहां भगवान विष्णु की पूजा शालग्राम शिला के रूप में की जाती है। किसी शक्ति पीठ या काली मंदिर में देवी के साथ विष्णु की पूजा का यह दुर्लभ उदाहरण है। यह मंदिर शिव और शक्ति के अद्वितीय संगम का भी प्रतीक है।
मंदिर की विशेषता
यहां देवी शक्ति की पूजा मां त्रिपुरासुंदरी के रूप में और भैरव की पूजा त्रिपुरेश के रूप में होती है। मंदिर का गर्भगृह वगार्कार है और यह विशिष्ट बंगाली एक-रत्न शैली में बना है। यह जिस पहाड़ी पर स्थित है वह कछुए (कूर्म) के आकार की प्रतीत होती है, इसलिए इसे कूर्म पीठ कहा जाता है। देवी के चरणों के नीचे श्री यंत्र पत्थर पर अंकित है, जो पूरे ब्रह्मांड और स्त्री-पुरुष ऊर्जा के दिव्य मिलन का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि इस श्री यंत्र का दर्शन या पूजा करना अनेक पुण्य कर्मों के समान फलदायी होता है।
गर्भगृह में हैं दो प्रतिमाएं
गर्भगृह में देवी की दो काले पत्थर की प्रतिमाएं हैं। बड़ी प्रतिमा (5 फीट ऊंची) मां त्रिपुरा सुंदरी की है और छोटी प्रतिमा (2 फीट ऊंची) मां चंडी की है, जिसे प्रेमपूर्वक छोटो-मा कहा जाता है। कहा जाता है कि छोटी प्रतिमा को त्रिपुरा के राजा युद्ध या शिकार के समय साथ ले जाते थे। लोककथाओं के अनुसार वर्तमान प्रतिमा ब्रह्मच्छरा नामक स्थान के जल में डूबी मिली थी। स्थानीय परंपराओं में देवी को लाल गुड़हल का फूल चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है। यहां का प्रमुख प्रसाद पेड़ा है।
दीपावली पर लगता है भक्तों का तांता
हर साल दीपावली मेले के अवसर पर देशभर से लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। दो दिवसीय दीपावली मेला एक सरकारी आयोजन होता है। यह मेला त्रिपुरा की बहु-सांस्कृतिक छवि को दशार्ता है।
माताबाड़ी मंदिर परिसर का विकास कार्य
मंदिर परिसर को नवीनीकृत और सुंदर बनाने के लिए पीआरएएसएडी योजना के तहत एक बड़ा प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है। इसमें संगमरमर की फर्श, नए रास्ते, नवनिर्मित प्रवेश द्वार और बाड़, उचित जल निकासी, तीन मंजिला परिसर जिसमें पेड़ा स्टॉल, ध्यान कक्ष, अतिथि आवास, कार्यालय कक्ष, पेयजल कियोस्क आदि शामिल हैं।
यह विकास कार्य केवल मंदिर तक सीमित नहीं है, बल्कि उदयपुर को धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में भी कदम है। त्रिपुरा सरकार माता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर को आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र बनाना चाहती है, जिससे होटल, परिवहन, हस्तशिल्प और स्थानीय भोजन व्यवसाय को भी बढ़ावा मिलेगा। वर्तमान में प्रतिवर्ष 12-15 लाख लोग इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने आते हैं, जिनमें पड़ोसी बांग्लादेश के श्रद्धालु भी शामिल हैं।
मंदिर में कछुए की भी होती है पूजा
माता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर में कछुए को पवित्र पशु के रूप में पूजा जाता है। मंदिर की पूरी संरचना ऊपर से देखने पर कछुए जैसी दिखाई देती है, जिससे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय श्रद्धालुओं/पर्यटकों को आकर्षित किया जा सके।

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