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बसपा को सत्ता में लाने का मायावती का मास्टर प्लान:यूपी में चौपाल के जरिए लोगों को जोड़ेंगी

लखनऊ। यूपी की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) एक बार फिर अपनी पुरानी चमक लौटाने को बेताब नजर आ रही है। पार्टी सुप्रीमो मायावती, जो कभी यूपी की सत्ता की कुर्सी पर 4 बार विराजमान हो चुकी हैं, अब 2027 के विधानसभा चुनावों को लेकर जोर-शोर से तैयारी में जुट गई हैं।
9 अक्टूबर को बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर लखनऊ के कांशीराम स्मारक स्थल पर होने वाले ऐतिहासिक कार्यक्रम को मायावती अपनी ताकत दिखाने जा रही हैं। बसपा राजधानी में 3 लाख की भीड़ जुटाकर राजनीतिक दलों को साफ संदेश देने की तैयारी में है कि उसे यूपी की राजनीति से खारिज नहीं किया जा सकता। एनडीए और इंडिया गठबंधन की तरह बसपा भी एक मजबूत विकल्प रहेगी।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, मायावती इस कार्यक्रम के जरिए 2027 के चुनावी रणनीति का औपचारिक आगाज करेंगी। इसीलिए 2007 की तर्ज पर सोशल इंजीनियरिंग की बिसात बिछाने की कवायद तेज हो चुकी है। बसपा ने भाईचारा कमेटी का पुनर्गठन किया है। यह दलितों, पिछड़ों, ब्राह्मणों और मुस्लिमों को एकजुट करने का काम करेगी।
प्रदेश के 90 फीसदी बूथ स्तर पर कमेटियां गठित हो चुकी हैं। अब मायावती अपने भतीजे आकाश आनंद और वफादार नेताओं को मैदान में उतारने को तैयार हैं। पार्टी की रणनीति साफ है- चौपालों के जरिए जनता तक पहुंचना। तीनों मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल की तुलना करना। यह साबित करना कि मायावती का शासन ही सबसे बेहतर था। मायावती भी इस चौपाल कार्यक्रम में शामिल होंगी।
2007 का विधानसभा चुनाव बसपा के लिए स्वर्णिम अध्याय रहा। मायावती ने ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ के नारे के साथ दलित-ब्राह्मण गठजोड़ का कमाल दिखाया था। बसपा ने 206 सीटें जीतीं और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। उस समय ब्राह्मण वोटरों की मदद से पार्टी ने सवर्णों को भी अपनी गोद में लिया। लेकिन, 2012 के बाद बसपा का ग्राफ लगातार गिरता गया। 2017 में 19 सीटें, 2022 में सिर्फ एक सीट और 2024 लोकसभा में 2.06 फीसदी वोट शेयर मिला। अब मायावती उसी फॉमूर्ले को दोहराने को बेताब हैं।
पार्टी के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्रा की सक्रियता इसका जीता-जागता प्रमाण है। मिश्रा, जो बसपा के ब्राह्मण चेहरे हैं, फिर से ब्राह्मणों को जोड़ने की कवायद में जुटे हैं। हाल ही में हुई एक बैठक में उन्होंने कहा था- 2007 में ब्राह्मण भाइयों ने बसपा को समर्थन दिया था। वही एकजुटता फिर लानी होगी।

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