राजनीतिक

आरक्षण पर मराठा-ओबीसी आमने-सामने; भुजबल बोले- सरकार ने खोला भानुमती का पिटारा

मुंबई । महाराष्ट्र की सियासी गलियों में इन दिनों ‘आरक्षण’ पर घमासान मचा हुआ है। मनोज जरांगे का आंदोलन खत्म करने के लिए एक ओर जहां उनकी आठ में से छह मांगे मान ली तो वहीं दूसरी ओर ओबीसी समुदाय इससे नाराज हो गया। ओबीसी समुदाय से आने वाले छगन भुजबल फडणवीस सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं। राकांपा से मंत्री भुजबल ने कहा है कि मनोज जरांगे की मांग को स्वीकार कर सरकार ने भानुमती का पिटारा खोल दिया है।
महाराष्ट्र सरकार द्वारा हैदराबाद गजेटियर के आधार पर मराठाओं को कुणबी जाति प्रमाणपत्र देने का निर्णय लेने पर राज्य मंत्री और ओबीसी नेता छगन भुजबळ ने कड़ी आपत्ति जताई। भुजबल ने आरोप लगाया कि नए सरकारी आदेश (जीआर) में ‘पात्र’ शब्द हटा दिया गया है। इसके चलते अब मराठा समाज के आवेदनों की नई जांच होगी और उन्हें कुणबी प्रमाणपत्र दिए जाएंगे, जिससे ओबीसी आरक्षण पर असर पड़ सकता है।
बता दें कि वे शुरूआत से ही मराठों को कुनबी जाति का प्रमाणपत्र देने का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने पहले चेतावनी दी थी कि यदि मराठों को समायोजित करने के लिए उनके मौजूदा आरक्षण को बाधित करने का कोई प्रयास किया गया तो ओबीसी समुदाय के सदस्य बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करेंगे। आज उन्होंने फिर कहा कि अगर कुछ गलत हो रहा है तो मैं चुप नहीं रह सकता। मैंने मंडल आयोग के मुद्दे पर ही बालासाहेब ठाकरे का साथ छोड़ दिया था। मैं आगे भी लड़ता रहूंगा।
उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि यह कदम मौजूदा ओबीसी आरक्षण के लिए खतरा है। भुजबल ने कहा, ‘सरकार ने भानुमती का पिटारा खोल दिया हैङ्घ अब जाट, पाटीदार और अन्य समुदाय भी आरक्षण की मांग करेंगे। कई और गजेटियर सामने आएंगे। आखिर में मराठा भी नहीं रहेंगे, सब कुणबी बन जाएंगे। क्या इससे ओबीसी कोटा प्रभावित नहीं होगा?’
मराठा आरक्षण आंदोलन के समर्थक मनोज जरांगे ने बीते मंगलवार को मुंबई में पांच दिन से चल रहे अपने अनशन को तब खत्म किया जब सरकार ने उनकी ज्यादातर मांगें मान लीं। राज्य सरकार ने एक सरकारी आदेश जारी किया, जिसमें पात्र मराठा समुदाय के लोगों को कुनबी (ओबीसी) जाति प्रमाणपत्र देने का प्रावधान किया गया है। इस फैसले से मराठा समाज को ओबीसी श्रेणी में आरक्षण का रास्ता मिल सकता है। लेकिन इस कदम का विरोध ओबीसी समुदाय के कुछ नेताओं, खासकर एनसीपी नेता छगन भुजबल ने किया है। उनका कहना है कि यह फैसला ओबीसी समुदाय के अधिकारों को प्रभावित करेगा।
इतना ही नहीं, छगन भुजबल ने बीते बुधवार को राज्य कैबिनेट की बैठक का बहिष्कार किया और बाद में खुलकर नाराजगी जताई। उन्होंने इशारा किया कि वह इस सरकारी आदेश को अदालत में चुनौती देंगे। वहीं, उनके इस रुख पर संजय राउत ने भी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था, ‘छगन भुजबल खुद मानते हैं कि उनके समुदाय के साथ अन्याय हुआ है। ऐसे में वे उसी मुख्यमंत्री के साथ काम कर रहे हैं जिसने यह अन्याय किया। अगर कोई नेता सचमुच अपने समुदाय के प्रति ईमानदार है तो उसे कैबिनेट से इस्तीफा दे देना चाहिए।’
भुजबल खुद ओबीसी (माली समाज) से आते हैं और मराठाओं को ओबीसी में शामिल करने का जोरदार विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर मराठाओं को कुंभी प्रमाणपत्र देकर ओबीसी में शामिल किया गया, तो यह ओबीसी के असली हक पर डाका होगा। वे मानते हैं कि सरकार के इस कदम से भविष्य में जातीय संघर्ष और बढ़ेगा। भुजबल लगातार सरकार को चेतावनी दे रहे हैं कि इस फैसले से ओबीसी समाज में गुस्सा और विरोध तेज होगा।
आंदोलन की अगुवाई कर रहे मनोज जरांगे पाटिल मूलत: बीड जिले के रहने वाले हैं। मटोरी गांव में जन्मे मनोज ने 12वीं तक पढ़ाई की है। आजीविका के लिए बीड से जालना आ गए। यहां एक होटल में काम करते हुए उन्होंने सामाजिक कार्य शुरू किए। इसी दौरान शिवबा नामक संगठन की स्थापना की।
बताया जाता है कि मनोज जरांगे की आर्थिक स्थिति खराब है, लेकिन उन्होंने खुद को मराठा समुदाय के लिए समर्पित कर दिया है। उनके पास चार एकड़ जमीन थी जिसमें से दो एकड़ जमीन उन्होंने मराठा समुदाय के आंदोलन के लिए बेच दी थी।

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