मथुरा: माता-पिता ने 10 दिन बाद खोई बेटी फिर पाई, गोद में ‘सरस्वती’ और आँसू भरी आँखें

मथुरा में चोरी की गई लड़की पुनः अपने माता-पिता को मिली
दस दिन पहले मथुरा के रेलवे स्टेशन से चोरी की गई चार वर्षीय लड़की सरस्वती को उसके माता-पिता नगीना और आनंद के हवाले कर दिया गया। इस घटना के बाद से न केवल लड़की बल्कि उसके परिवार का जीवन भी प्रभावित हुआ था। अंततः आवश्यक कागजी कार्य पूरा करने के बाद, बाल कल्याण समिति ने उसे उसके परिवार को सौंप दिया।
नगीना और आनंद, जो मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के स्होरा तहसील के माजोली गाँव के निवासी हैं, अपनी चार वर्षीय बेटी गौरा और एक माह की बेटी सरस्वती के साथ मथुरा में रह रहे थे। परिवार ने आर्थिक तंगी के कारण रेलवे स्टेशन पर रात बिताई। 22 अगस्त की रात को, सरस्वती को रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक से चुराया गया। रेलवे पुलिस ने बड़ी तत्परता से 24 अगस्त को उसे बरामद कर लिया और बाल कल्याण समिति को सौंप दिया।
वास्तव में, 22 अगस्त को सरस्वती की चोरी का कारण माता-पिता के पास आवश्यक कागजात की कमी थी। जब बाल कल्याण समिति ने आनंद और नगीना से आधार कार्ड की मांग की, तब यह सुनिश्चित किया गया कि पेरेंट्स के दस्तावेज पूरे हों। उस समय बच्चे को बाल कल्याण घर भेज दिया गया। परिवार के लिए ये दिन बेहद कठिन थे, और माता-पिता काफी परेशान थे। सरस्वती का जन्म रेवाड़ी में हुआ था और उनके पास उसके जन्म प्रमाण पत्र थे, जिसके तहत पुलिस ने उसके पुराने पते की जांच की। बाद में पता चला कि आनंद और नगीना ने पांच साल पहले अपने परिवार से भाग जाने का निर्णय लिया था।
पुलिस की जांच में पता चला कि नगीना को कुछ समय पहले ही बरामद किया गया था, और आनन्द के साथ रहने के बाद उन्हें फिर से परिवार से दूर होना पड़ा। इस प्रक्रिया में समिति के अध्यक्ष ने आनंद के भाई से भी संपर्क किया, जिसके चलते आनंद और नगीना को उनकी बेटी सरस्वती सौंपने की प्रक्रिया पूरी की गई। यशोदा, जिसने सरस्वती की देखभाल की, उसकी आँखें भी नम हो गईं जब उसने सरस्वती को नगीना के हवाले किया। जांच के बाद, समिति के अध्यक्ष ने तर्क किया कि इस बच्चे को सुरक्षित आश्रय में रखा गया था, और उसकी माता-पिता को सौंपने का निर्णय सही था।
चाइल्ड प्रोटेक्शन होम में राजेश कुमार ने बताया कि दंपति ने अपने बच्चे को लेने के लिए हर दिन चाइल्ड बेबी हाउस का दौरा किया। वे यहाँ घंटों बैठकर अपने बच्चे के मिलने की आस लगाए रहते थे। उनकी इस लगन और प्यार ने यह साबित कर दिया कि माता-पिता का प्यार कितना गहरा होता है।
अब पांच साल बाद, आनंद और नगीना केवल अपनी बेटी सरस्वती से नहीं मिले, बल्कि वे अपने परिवार के सदस्यों से भी मिलेंगे। आनंद ने कहा कि वह अब मथुरा में नहीं रहेंगे और जबलपुर अपने घर लौटेंगे। उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों से वार्ता की है और वे अपने परिवार के सदस्यों को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हैं।
यह एक सुखद अंत है उस मुश्किल दौर के, जिसमें माता-पिता को अपने बच्चे से बिछड़ना पड़ा था। अब जब उनकी बेटी पुनः उनके पास है, उनके चेहरे की खुशी का कोई मोल नहीं है। समाज में ऐसे मामलों में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है, ताकि प्रत्येक बच्चा सुरक्षित रह सके और परिवार अलग ना हो सकें।
इस घटना ने हमें यह सिखाया है कि जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन अगर हम उम्मीद नहीं खोते और एक-दूसरे का सहारा बनते हैं, तो हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। माता-पिता का प्यार अद्वितीय और अपने बच्चों के प्रति उनकी जिम्मेदारी अमूल्य होती है। समाज का हर व्यक्ति इस सच्चाई को समझे और अपने छोटे-छोटे प्रयासों से बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ाए।
सारांश में, यह घटना न केवल एक परिवार की कहानी है, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाती है कि हर बच्चा खुशियों का हकदार है। जब भी कोई बच्चा खो जाता है, तो उसका परिवार भी खो जाता है। हमें इस बात को यथाशीघ्र समझना चाहिए और अपने समाज में सुरक्षा और सावधानी को प्राथमिकता देनी चाहिए।
मथुरा की इस घटना ने हमारे समक्ष एक सच्चाई रखी है कि माता-पिता का प्यार वास्तव में असीम है और जब बच्चे असुरक्षित होते हैं, तो परिवार को एक बड़ा धक्का लगता है। अब जब सरस्वती पुनः अपने माता-पिता के साथ है, तो यह कहानी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी। हमें ऐसे मामलों में साक्षर और जागरूक रहना चाहिए ताकि हम सभी बच्चों की भलाई सुनिश्चित कर सकें।