डॉ. अलोक भारद्वाज को विश्व उद्यमिता दिवस पर इनोवेटी वर्मी कम्पोस्ट तकनीक के लिए पुरस्कार मिला।

मथुरा न्यूज
मथुरा। जीएलए विश्वविद्यालय के सह-प्रोफेसर डॉ. अलोक भारद्वाज को हाल ही में विश्व उद्यमिता दिवस पर सम्मानित किया गया। उन्होंने जय-गोपाल केंचुए की मदद से वर्मी खाद बनाने के लिए एक अभिनव तकनीक विकसित की है, जो कृषि क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान है। इस कार्यक्रम का आयोजन चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार में हुआ, जिसमें देश भर से 100 से अधिक नवाचार-आधारित स्टार्ट-अप्स ने अपने उत्पादों को प्रदर्शित किया।
डॉ. अलोक का नवाचार कृषि व्यवसाय ऊष्मायन केंद्र द्वारा वित्त पोषित किया गया है, और इसे भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा भी समर्थन प्राप्त है। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी थे। उन्होंने इस अवसर पर पुरस्कार वितरण करने के साथ-साथ डॉ. अलोक की तकनीक की सराहना की।
डॉ. अलोक ने अपने नवाचार इकाई Utkarsh प्रौद्योगिकी के अंतर्गत ‘जय-गोपाल केंचुआ’ की मदद से वर्मी खाद तैयार करने के लिए जो तकनीक विकसित की है, वह विशेष रूप से रोचक है। वर्मी खाद एक जैविक उर्वरक है जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए जाना जाता है। यह तकनीक न केवल किसानों के लिए फायदे मंद है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती है।
इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए, डॉ. अलोक को मुख्यमंत्री द्वारा अनुदान की दूसरी किस्त प्रदान की गई। इसके अलावा, उन्हें कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार से एक शोध परियोजना भी मिली, जिसके तहत ‘जय-गोपाल केंचुआ प्रजाति’ का उपयोग करते हुए वर्मी खाद तैयार करने के लिए उन्हें पांच लाख रुपये का अनुदान दिया गया है।
इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को जैविक खेती को अपनाने के लिए प्रेरित करना और उनके बीच जागरूकता का स्तर बढ़ाना है। डॉ. अलोक का मानना है कि वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों का उच्च उपयोग तेजी से मिट्टी की गुणवत्ता और फसल उत्पादकता को प्रभावित कर रहा है। इसके विपरीत, वर्मी कम्पोस्ट तकनीक किसानों की मदद कर सकती है, जिससे न केवल फसल की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि यह मिट्टी की संरचना को भी बेहतर बनाएगी।
जीएलए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अनूप गुप्ता ने वर्मी कम्पोस्ट आधारित जैविक उर्वरक के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि किसानों को इसके उपयोग के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता के स्तर को बढ़ाना आवश्यक है।
इससे पहले, विभाग के प्रमुख डॉ. शूरवीर सिंह ने कहा कि यह उपलब्धि केवल जैविक खेती को प्रोत्साहित करने में ही मदद नहीं करेगी, बल्कि किसानों के कल्याण के लिए सरकार के प्रयासों को भी गति देगी।
वर्मी खाद का महत्व
वर्मी खाद को तैयार करने के लिए केंचुओं का उपयोग किया जाता है, जो कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत होता है। ये केंचुए ऑर्गेनिक वेस्ट को खाद में परिवर्तित करते हैं, जिससे मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ती है। मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने, उसकी संरचना में सुधार करने और फसल की पैदावार बढ़ाने में वर्मी खाद का कोई मुकाबला नहीं है।
जैविक खेती को अपनाने से न केवल किसानों के लिए आर्थिक फायदे होते हैं, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद साबित होता है। रासायनिक उर्वरकों के लगातार उपयोग से मिट्टी की प्राकृतिक संरचना में खराबी आती है, जिससे फसलों की गुणवत्ता और उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
डॉ. अलोक के शोध परियोजना के तहत, केंचुए की विशेष प्रजातियों का उपयोग किया जाएगा, जिससे वर्मी खाद की गुणवत्ता में और सुधार आएगा। इस परियोजना का उद्देश्य न केवल खाद के उत्पादन को बढ़ावा देना है, बल्कि इस प्रक्रिया के माध्यम से किसानों को सही मार्गदर्शन भी देना है।
किसानों के लिए लाभ
डॉ. अलोक द्वारा विकसित तकनीक से किसानों को कई लाभ होंगे। वर्मी खाद के उपयोग से न केवल फसलों की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि यह मिट्टी की मिट्टी की विश्वसनीयता में भी योगदान देगा। जैविक खेती को अपनाने से किसानों को प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करने में मदद मिलेगी।
सरकार भी इस दिशा में कई योजनाएं लागू कर रही है, जिसमें किसानों को सहायक धनराशि प्रदान करने के लिए विशेष कार्यक्रमों की योजना बनाई जा रही है। इसके जरिए किसानों को जैविक खेती को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
वर्तमान में, जब जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ रही हैं, ऐसे में डॉ. अलोक जैसे वैज्ञानिकों की तकनीकें किसानों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो रही हैं। किसानों को जागरूक करना और उन्हें जैविक कृषि की ओर आकर्षित करना जरूरी है।
निष्कर्ष
डॉ. अलोक भारद्वाज का योगदान कृषि क्षेत्र में सराहनीय है। उनकी तकनीक न केवल किसानों की आमदनी को बढ़ाती है, बल्कि यह पर्यावरण की सुरक्षा में भी योगदान देती है। इस दिशा में सरकार की योजनाएं भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
किसानों को इस दिशा में आगे बढ़ाने और जैविक खेती को अपनाने के लिए सही मार्गदर्शन की जरूरत है। इस दिशा में डॉ. अलोक का कार्य महत्वपूर्ण है और इससे न केवल कृषि का विकास होगा, बल्कि इससे किसानों के जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन आएगा।
समाज के प्रत्येक वर्ग को इस दिशा में अपने हिस्से का योगदान देना होगा, ताकि एक स्वस्थ और समृद्ध कृषि प्रणाली की स्थापना की जा सके। जैविक खेती के माध्यम से न केवल कृषि के क्षेत्र में परिवर्तन आएगा, बल्कि इससे हमारे भोजन की गुणवत्ता में भी सुधार होगा और यह भविष्य के लिए एक स्थायी समाधान प्रदान करने में मदद करेगा।
डॉ. अलोक जैसे वैज्ञानिकों के प्रयासों से हम एक बेहतर और स्वस्थ पर्यावरण की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। जैविक खेती को अपनाने से हमारे समाज में स्वास्थ्य और कल्याण का एक नया आयाम जुड़ सकता है, जो हमारे भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।