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एसडी बर्मन की बेइज्जती: एक धुन पर दो गाने, दूसरा बना सुपरहिट, गुरुदत्त से लिया प्रतिशोध।

धर्मेंद्र की फिल्म ‘बहारें फिर भी आएंगी’ का दिलचस्प संगीतTrivia

भारतीय सिनेमा का महत्व कई दशकों से बढ़ता रहा है। आजादी के बाद, 1950 और 1960 के दशक में भारतीय सिनेमा अपनी सारी ऊंचाइयों पर पहुंच चुका था। इस दौर में गुरु दत्त, एसडी बर्मन और अन्य महान संगीतकारों ने अपनी प्रतिभा से सिनेमा को नया आकार दिया। इस समय की कई फिल्में और गाने आज भी लोगों की ज़बान पर हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन गानों के पीछे कितनी दिलचस्प कहानियाँ हैं?

1960 के दशक में रिश्तों में खटास

1960 के दशक की शुरुआत में, गुरु दत्त और एसडी बर्मन के बीच आपसी मतभेद पैदा हो गए थे। इस दरमियान में गुरु दत्त ने फिल्म ‘बहारें फिर भी आएंगी’ की योजना बनाई और उसके लिए संगीत बनाने के लिए एसडी बर्मन को चुना। लेकिन यहां एक अनहोनी घटित हुई। एसडी बर्मन को दिल का दौरा पड़ा और चिकित्सकों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी।

गुरु दत्त ने जब यह सुना, तो उन्होंने एसडी बर्मन से कहा कि यदि वे काम नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें नया संगीतकार लाने की जरूरत है। यह सुनकर बर्मन बहुत दुखी हुए और कहा कि उनके पास संगीत तैयार है, परंतु गुरु दत्त ने अपना विचार बदलने की बजाय ओपी नैय्यर से संपर्क किया।

संगीत में बदलाव

इस स्थिति ने एसडी बर्मन को निराश किया। उनका संगीत तो तैयार था, लेकिन उनकी जगह किसी और को चुन लिया गया। इसके परिणामस्वरूप, मोहम्मद रफी की आवाज में फिल्म का टाइटल ट्रैक ‘बहारें फिर भी आएंगी’ रिकॉर्ड किया गया। लेकिन गुरु दत्त को एसडी बर्मन की प्रतिभा पर भरोसा नहीं था, जिस कारण उन्होंने ओपी नैय्यर की मदद ली।

एसडी बर्मन की प्रतिक्रिया

गुरु दत्त ने आखिरकार बर्मन के संगीत को हटा दिया और रफी का गाना भी बाहर कर दिया। समय बीतता गया, लेकिन एसडी बर्मन ने वह अपमान भुलाने का निर्णय लिया। उन्होंने ठुकराए संगीत को वापस लाने का निश्चय किया। यह अवसर उन्हें देव आनंद की फिल्म ‘ज्वेल थीफ’ में मिला।

इस फिल्म में एसडी बर्मन ने अपनी धुनों को सुनाया जो अपनी पहले वाली धुन से जन्मी थीं। यह गाना ‘ये दिल न होता बेचारा’ किशोर कुमार की आवाज में गाया गया और यह हिट हो गया।

दोस्ती का टूटना

गुरु दत्त और एसडी बर्मन के बीच की यह टूटन न केवल उनकी दोस्ती के लिए दुखद थी, बल्कि सिनेमा के लिए भी। गुरु दत्त ने जिस गाने को बर्मन के साथ जोड़ा था, उसका सफलता का कारण बर्मन का संगीत था, लेकिन वह खुद उस सफलता को नहीं देख पाए।

आज जब हम ‘ये दिल न होता बेचारा’ सुनते हैं, तो उसमें न केवल रोमांटिक धुन है बल्कि टूटे हुए रिश्ते की टीस भी महसूस होती है। यह गाना केवल एक गीत नहीं, बल्कि एक कहानी है रिश्तों के टूटने और पुनर्निर्माण की।

सारांश

यह कहानी न केवल सिनेमा की है, बल्कि यह रिश्तों की भी है। दोस्ती, विश्वास और अवसरों के बारे में एक सीख है। एसडी बर्मन का वह संगीत आज भी जीवित है, और फिल्म ‘ज्वेल थीफ’ का गाना उनकी यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस घटना ने सिनेमा इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा।

भारतीय सिनेमा की दुनिया में ऐसी कई कहानियाँ हैं जो आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। संगीत केवल धुन नहीं है, यह भावनाओं का एक स्वरूप है और इन महान संगीतकारों की कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि कला में हमेशा एक गहराई होती है।

इस प्रकार, संगीत का संसार न केवल सुनने का बल्कि अनुभव करने का भी है। फिल्म ‘बहारें फिर भी आएंगी’ का गाना और इसके पीछे की कहानी आज भी एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है।

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