कोर्ट ने 7 साल की बच्ची से छेड़छाड़ के आरोप में सरेंद्र को 3 साल की सजा दी।

धनाउली मालपुरा के निवासी सुरेंद्र को एक सात वर्षीय लड़की के छेड़छाड़ मामले में अदालत ने दोषी ठहराया है। विशेष न्यायाधीश पॉक्सो एक्ट दिनेश कुमार चौरसिया की अदालत ने आरोपियों को तीन साल के कारावास और पांच हजार रुपये का जुर्माना सुनाया। विशेष अभियोजन अधिकारी विमलेश आनंद ने अदालत में कई गवाहों और महत्वपूर्ण सबूतों को प्रस्तुत किया।
पीड़िता के पिता ने पुलिस स्टेशन शाहगंज में तहरीर दी। उन्होंने बताया कि 19 जून 2016 को उनकी सात वर्षीय बेटी घर के कमरे में खेल रही थी। उसी दौरान आरोपी सुरेंद्र ने उसे अकेला पाकर छेड़छाड़ की। जब मां लड़की की आवाज़ सुनकर वहां पहुँचीं, तब आरोपी वहां से भाग गया।
इस घटना के बाद, पीड़ित के पिता ने शाहगंज पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया। 21 जून 2016 को पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया और उसे जेल भेज दिया। जांच के दौरान, पीड़ित के बयान और चिकित्सीय रिपोर्ट ने इस घटना की पुष्टि की। इसके बाद पुलिस ने 8 अगस्त 2016 को अदालत में चार्जशीट दाखिल की। लंबी सुनवाई के बाद, अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए उसे सजा सुनाई।
अदालत ने कहा कि बच्चों के साथ होने वाले ऐसे अपराधों को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। यह मामला समाज में बच्चों की सुरक्षा के महत्व को दर्शाता है। अदालत का निर्णय उस प्रभाव को स्पष्ट करता है जो ऐसे मामलों में न्याय के तरीके पर होता है। समाज में बच्चों को रक्षात्मक वातावरण में रखने की आवश्यकता है ताकि उन्हें सुरक्षित रखा जा सके।
यह मामला केवल एक व्यक्ति की दुष्कर्म की कहानी नहीं है बल्कि एक बड़े सामाजिक मुद्दे का प्रतिनिधित्व करता है। बच्चों के खिलाफ हो रहे अपराधों पर कड़ी कार्रवाई करने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं को रोका जा सके। बच्चों का मनोबल और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना हम सभी की जिम्मेदारी है।
विशेष न्यायाधीश ने कहा कि इस निर्णय के माध्यम से वे इस उम्मीद को जगाना चाहते हैं कि समाज ऐसे अपराधियों के खिलाफ खड़ा होगा और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सीधे तौर पर यह मामला बाल यौन शोषण से संबंधित कानूनों की प्रभावशीलता को भी दर्शाता है। यह आवश्यक है कि न्यायपालिका और पुलिस दोनों एक साथ मिलकर इस प्रकार के मामलों में तत्परता से कार्रवाई करें। अभियोजन अधिकारियों द्वारा मजबूती से साक्ष्य प्रस्तुत करना और न्याय की प्रक्रिया को त्वरित करना महत्वपूर्ण है।
इस प्रकार के मामलों में गवाहों की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। गवाहों का समर्थन न केवल पीड़ित के लिए महत्वपूर्ण होता है, बल्कि यह न्यायालय की प्रक्रिया को भी सही दिशा में ले जाता है।
कई बार समाज में ऐसे मामलों को नजरअंदाज किया जाता है, और पीड़ित परिजनों को यह महसूस होता है कि उनकी आवाज़ को सुनने वाला कोई नहीं है। ऐसे में, यदि समाज सशक्त होकर सामने आए और पीड़ितों का समर्थन करे, तो न्याय की प्रक्रिया को और भी मजबूती मिल सकती है।
इस घटनाक्रम के चलते, यह संदेश फैलाना आवश्यक है कि ऐसे मामलों में चुप रहना सही नहीं है। हमें सभी को जागरूक करना चाहिए कि ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट करना सबसे महत्वपूर्ण है।
साथ ही, हमें इस दिशा में उपाय करने की आवश्यकता है कि बच्चों को सुरक्षित माहौल प्रदान किया जा सके। इसके लिए माता-पिता, शिक्षक और समाज के सभी सदस्यों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। बच्चों को उनकी सुरक्षा के महत्व के बारे में जागरूक करना, उनकी समझ को विकसित करना और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करना हमारे सामूहिक प्रयासों का हिस्सा होना चाहिए।
इस प्रकार, यह मामला हमें यह सिखाता है कि बच्चों की सुरक्षा केवल एक कानूनी मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक जिम्मेदारी भी है। हमें सभी स्तरों पर इसके प्रति सजग रहना होगा।
अंत में, उम्मीद की जाती है कि समाज यह समझेगा कि बच्चों की सुरक्षा केवल माता-पिता की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। हमें मिलकर इस दिशा में काम करना होगा ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। यह न्यायालय का निर्णय भी इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
समाज में जागरूकता लाना, शिक्षा प्रदान करना और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना ही हमारे अंतिम लक्ष्य होने चाहिए। यह जिम्मेदारी केवल सरकार या पुलिस की नहीं, बल्कि हम सभी की है। बच्चों को सुरक्षित और खुशहाल जीवन देने के लिए हमें एकजुट होकर प्रयास करना होगा।
इस प्रकार, अदालत के निर्णय के पीछे केवल एक अदालती प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह व्यापक सामाजिक बदलाव का संकेत भी है। बच्चों के प्रति हमारी सोच में बदलाव लाना और उन्हें एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करना ही हमारे संकल्प का आधार होना चाहिए।