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मोहन भागवत का बयान: मुसलमानों को नौकरी देने की आवश्यकता और 3 बच्चों का सुझाव क्यों?

मोहन भागवत का बयान: मुस्लिम जॉब्स, अवैधानिक प्रवास और जनसंख्या संतुलन

आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में एक समारोह में कुछ विचार साझा किए जो मुस्लिम समुदाय सहित विभिन्न विषयों पर प्रभाव डालने के लिए समर्पित थे। उन्होंने रूपांतरण, अवैधिक प्रवास, और जनसंख्या संतुलन जैसे मुद्दों पर गहराई से विचार किया। उनके शब्दों में एक ऐसी सामाजिक धारणा है जो न केवल हिंदू समुदाय के लिए, बल्कि समग्र समाज के लिए महत्वपूर्ण है।

रूपांतरण का मुद्दा

भागवत ने स्पष्ट रूप से कहा कि धर्म परिवर्तन व्यक्तिगत पसंद का मामला होना चाहिए। उन्होंने यह भी ज़ोर दिया कि इसमें किसी प्रकार का लालच या दबाव नहीं होना चाहिए। उनका मानना था कि किसी भी धर्म में जबरन परिवर्तन की सहारणा नहीं होनी चाहिए और इस विषय पर, उन्होंने कुछ मुस्लिम उलेमा का भी उल्लेख किया, जिन्होंने इस्लाम में जबरन रूपांतरण को निषिद्ध करार दिया है।

अवैध प्रवास का सवाल

उनके विचार में, अवैध प्रवास एक गंभीर समस्या है जो रोजगार और सामाजिक तनाव के लिए जिम्मेदार है। भागवत ने कहा कि हाल के वर्षों में सरकार इस मुद्दे पर कार्रवाई कर रही है, लेकिन समाज को भी अपनी भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि अवैध प्रवासियों को नौकरी नहीं दी जानी चाहिए, बल्कि देशवासियों को पहले प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

जनसंख्या संतुलन

मोहन भागवत ने जनसंख्या संतुलन पर भी जोर दिया। उनका मानना था कि भारतीय जनसंख्या में कुछ कारक हैं जो असंतुलन पैदा कर सकते हैं। उन्होंने इस विषय पर तीन मुख्य बिंदुओं की ओर इशारा किया: रूपांतरण, अवैध प्रवास, और जनसंख्या वृद्धि दर। उनका मानना था कि समाज को कम से कम तीन बच्चों का जन्म सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि जनसंख्या में संतुलन बना रहे।

सामाजिक एकता और समानता

भागवत ने अपने बयान में यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति का धर्म उसके लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन यह समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है कि सभी को समान अवसर मिले। उन्होंने जातिवाद को विकास में बाधा करार दिया और ज़ोर दिया कि सभी को एक समानता की भावना के साथ जीने का प्रयास करना चाहिए।

वे कहते हैं, “जाटिज्म केवल हमारे दिमाग का अहंकार है। सभी को एक-दूसरे के घरों का दौरा करना चाहिए और उनसे जुड़ना चाहिए।”

समाज की जिम्मेदारी

भागवत ने इस बात पर ध्यान दिया कि समाज को बाहरी लोगां के बजाय अपने देशवासियों पर भरोसा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें अपने लोगों को रोजगार प्रदान करना चाहिए और किसी भी बाहरी के खिलाफ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।

निष्कर्ष

मोहन भागवत का यह बयान विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर विचार करने के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है। उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संवाद स्थापित करने की आवश्यकता को स्वीकार किया और यह संदेश दिया कि हमारे समाज में सहिष्णुता और समानता का आधार होना चाहिए। इन विचारों का समाज पर प्रभाव पड़ेगा और यह एक सकारात्मक दिशा में अग्रसर होने के लिए प्रेरणा प्रदान करेगा।

इस प्रकार, भागवत का यह बयान हमें यह याद दिलाता है कि समाज में हमारे पास केवल विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताएँ नहीं हैं, बल्कि यह भी महत्वपूर्ण है कि हम अपने देशवासियों के अधिकारों का सम्मान करें और एकता की भावना को बढ़ावा दें।

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