आरएसएस का बड़ा बयान: काशी-मथुरा आंदोलन का समर्थन नहीं करेगा संघ, भागवत की प्रतिक्रिया।

व्याख्यान श्रृंखला के अंतिम दिन मोहन भागवत का बयान
राष्ट्रिया स्वायमसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में आयोजित एक तीन-दिन की व्याख्यान श्रृंखला के अंतिम दिन महत्वपूर्ण वक्तव्य दिए। उनके अनुसार, राम मंदिर आंदोलन आरएसएस द्वारा समर्थित एकमात्र बड़ा आंदोलन है, और संघ किसी भी अन्य अभियान का समर्थन नहीं करेगा, जिसमें काशी और मथुरा के आंदोलन भी शामिल हैं।
राम मंदिर से जुड़ा आंदोलन
भागवत ने स्पष्ट किया कि राम मंदिर के अलावा आरएसएस ने किसी अन्य आंदोलन का समर्थन नहीं किया है। उन्होंने कहा, “यह स्पष्ट है कि संघ स्वयंसेवक इन आंदोलनों में शामिल होने के लिए स्वतंत्र हैं,” लेकिन आरएसएस किसी अन्य आंदोलन का आधिकारिक समर्थन नहीं करेगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राम मंदिर आंदोलन के समर्थन में आरएसएस की भागीदारी एक विशेष और महत्वपूर्ण मुद्दा है।
इस क्रम में उन्होंने यह भी बताया कि संघ ने इस व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन “100 वर्षों की पूरी होने” के उपलक्ष्य में किया था। यह संकेत करता है कि संघ अपने इतिहास और परंपराओं पर गर्व करता है और उन्हें आगे बढ़ाने का कार्य करता है।
भाजपा और आरएसएस के बीच संबंध
भागवत ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बारे में भी अपनी धारणा रखी। उन्होंने कहा कि यह धारणा कि आरएसएस भाजपा के लिए सभी निर्णय करता है, पूरी तरह से गलत है। उनके अनुसार, भाजपा अपनी नीतियों और निर्णयों में स्वतंत्र है। भागवत ने इसका स्पष्ट प्रमाण देते हुए कहा कि “हम तय नहीं करते हैं। अगर हम निर्णय लेते, तो क्या इतना समय लगता? हमने कभी भी किसी भी मामले को तय करने की आवश्यकता नहीं महसूस की।”
भाजपा के नए अध्यक्ष के चयन पर टिप्पणी
भागवत ने भाजपा के नए अध्यक्ष के चयन के विषय में कहा कि इसमें आरएसएस की कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने यह बताने का प्रयास किया कि भाजपा में नेताओं का चयन उनके अपने निर्णय पर आधारित होता है। वर्तमान भाजपा अध्यक्ष जेपी नाड्डा के बारे में बात करते हुए भागवत ने स्पष्ट किया कि भाजपा अपने निर्णय स्वयं लेती है और संघ को इस मामले में कोई अधिकार नहीं है।
आरएसएस की विशेषज्ञता और भाजपा का प्रशासन
भागवत ने कहा कि आरएसएस और भाजपा के बीच पारस्परिक समझ और सम्मान होना जरूरी है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि वह पिछले 50 वर्षों से संघ की शाखाओं का संचालन कर रहे हैं, और यदि कोई उन्हें शाखा संचालित करने का सुझाव दे, तो उन्हें यह क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल है। वही, भाजपा के वरिष्ठ नेता भी कई वर्षों से सरकार चला रहे हैं, इसलिए वे भी अपने मामलों में विशेषज्ञ हैं।
उन्होंने कहा, “हम एक-दूसरे की विशेषज्ञता को जानते हैं। सुझाव दिए जा सकते हैं, लेकिन निर्णय लेना भाजपा का कार्य है।” यह एक महत्वपूर्ण बयान है क्योंकि यह संबोधित करता है कि आरएसएस की भूमिका क्या है और भाजपा कैसे कार्य करती है।
अंत में
भागवत का यह पूरा बयान यह दर्शाता है कि आरएसएस और भाजपा के बीच एक संतुलित संबंध स्थापित करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं को अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्रता होनी चाहिए, ताकि वे अपने कर्तव्यों को ठीक से निभा सकें।
इस व्याख्यान श्रृंखला ने संघ की विचारधारा और भाजपा के साथ उसके संबंधों को स्पष्ट रूप से सामने लाया। भागवत ने स्पष्ट किया कि आरएसएस अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर जोर देता है, जबकि भाजपा अपनी नीतियों और उद्देश्यों में स्वतंत्रता से निर्णय लेती है। यह दर्शाता है कि संघ और भाजपा के बीच एक मजबूत और सहयोगात्मक संबंध हो सकता है, जो आगे चलकर देश की राजनीति को और अधिक सुचारू और प्रभावी बना सकता है।