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Princess sisters welcome Ganesh in traditional Kanjeevaram sarees, showcasing royal elegance at a grand celebration.

गुणवत्ता, आतिथ्य और परंपरा के प्रतीक गुजरात के लक्ष्मी विलास पैलेस में रहने वाली महारानी राधिकाराजे गायकवाड़ हमेशा ही सुर्खियों में रहती हैं। हाल ही में, गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर, उन्होंने अपने महल में भव्यता के साथ भगवान गणेश का स्वागत किया, जहां उनकी राजकुमारी बेटियों ने 25 साल पुरानी साड़ियाँ पहनीं और सबका दिल जीत लिया।

लक्ष्मी विलास पैलेस की छवि विश्वभर में विख्यात है। यह न केवल बड़ौदा के राज家 की आवास है, बल्कि इसे दुनियाभर में सबसे बड़ा घर भी माना जाता है। महारानी राधिकाराजे और उनके पति राजा समरजीत सिंह गायकवाड़ के साथ, उनका परिवार यहां परंपरा और रॉयल्टी का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। उनकी रॉयल लाइफस्टाइल को देखने का हर किसी को मन करता है, विशेषकर जब वह समारोहों में अपनी देसी पोशाकों में नजर आती हैं।

गणेश चतुर्थी पर हुई पूजा में महारानी राधिकाराजे ने अपनी राजकुमारियों के साथ मिलकर एक अद्भुत भव्यता के साथ बप्पा का स्वागत किया। इस अवसर पर ढोल-नगाड़ों की गूंज और उत्सव का माहौल चारों ओर था। लेकिन सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र उनकी बेटियों का देसी अंदाज था। मां की तरह, राधिका ने अपने रॉयल लुक में सभी का दिल जीत लिया।

गायकवाड़ परिवार की खासियत यह है कि वे हमेशा अपने अतीत और परंपराओं को संजोए रखते हैं। महारानी ने इस खास मौके पर श्रवण कुमार द्वारा डिज़ाइन की गई एक खूबसूरत बनारसी साड़ी पहनी, जिसका रंग हल्का गुलाबी था और जिसका पल्लू क्लासी तरीके से ओढ़ा गया था। इस पर सुनहरे बॉर्डर के साथ पैच वर्क ने इसे और भी खूबसूरत बना दिया।

उनकी साड़ी के साथ, महारानी ने परंपरागत गहनों का चयन किया। उन्होंने एक सजीला पर्ल नेकलेस पहना, जिसमें मीनाकारी झुमके और एक अनोखा कंगन भी था, जो कम से कम 100 साल पुराना बताया जा रहा है। ये कंगन महज एक आभूषण नहीं हैं, बल्कि इतिहास और विरासत की कहानी सुनाने का माध्यम हैं, जो पारिवारिक धरोहर को दर्शाते हैं।

राजकुमारियों ने भी मां का अनुसरण किया। राजकुमारी पद्मजा और नारायणी ने मां की 25 साल पुरानी कांजीवरम साड़ियाँ पहनीं। नारायणी ने ऑरेंज और पिंक शेड की साड़ी पहनी हुई थी, जबकि पद्मजा ने गुलाबी बॉर्डर के साथ पीली साड़ी चुनी थी। उनके सरलता और सुन्दरता ने हर किसी का ध्यान खींचा।

गणेश चतुर्थी का यह समारोह केवल एक धार्मिक अवसर नहीं था, बल्कि यह एक संस्कृति, परंपरा, और परिवार की एकता का प्रतीक था। महारानी और उनके परिवार ने इस उत्सव को पूरी भव्यता के साथ मनाया, जिसमें देसी चकाचौंध ने चार चांद लगा दिए।

हालांकि, इस महल में रहने वाले समस्त लोग ध्यान आकर्षित करने में सक्षम हैं, लेकिन राजमाता शुभांगिनी राजे ने भी अपनी सादगी और रॉयल अंदाज से सबका ध्यान खींचा। वह सामान्य येलो-बीज रंग की साड़ी में नजर आईं, लेकिन उनकी उपस्थिति में एक अनोखी गरिमा थी।

इतना ही नहीं, राजकुमारियों ने भी सोने के गहनों के साथ अपना लुक पूरा किया। सोने के हार और झुमके उनके लुक को और भी निखारते हैं। इस तरह, गायकवाड़ राज परिवार का यह गणेश चतुर्थी समारोह विभिन्न रंगों और रॉयल वाइब्स से भरपूर था।

इस पूरे उत्सव ने यह साबित किया कि राजसी परिवारों में भी देसी आभा का व्यापक महत्व है। उनका सांस्कृतिक धरोहर के प्रति समर्पण और पारिवारिक परंपराओं को जीवित रखने की कोशिश हर किसी को प्रेरित करती है। इस समारोह ने बड़ौदा के राज परिवार की एकता, गरिमा, और सांस्कृतिक मूल्य को एक बार फिर से उजागर किया।

गणेश चतुर्थी के इस पावन अवसर पर गायकवाड़ परिवार का अनोखा अंदाज और उनकी जीवंतता ने यह संदेश दिया कि भले ही समय बदलता है, लेकिन पारंपरिक मूल्य और परिवारिक संबंध हमेशा महत्वपूर्ण रहते हैं।

यही नहीं, इस प्रकार का आयोजन नए पीढ़ी को भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है, जो उनके अंदर अपने पूर्वजों की परंपराएँ और मान्यताओं को जीवित रखने की प्रेरणा भरता है। गणेश चतुर्थी का यह समारोह बड़ौदा राजघराने के लिए यह एक यादगार दिन था, जिसे परिवार के सभी सदस्यों ने मिलकर एक नए सिरे से मनाया।

यह केवल एक उत्सव नहीं था, बल्कि यह एक प्यार, सम्मान और एकता का प्रतीक था, जो इस परिवार की धरोहर और परंपरा को बनाए रखने में मदद करता है। इस तरह के आयोजन न केवल सांस्कृतिक एकता को प्रकट करते हैं, बल्कि समाज में भी सादगी और सुन्दरता को प्रसारित करते हैं।

गायकवाड़ राज परिवार का यह अंदाज न केवल उनके समृद्ध इतिहास का प्रतीक है, बल्कि यह उनके आधुनिक दृष्टिकोण और परंपराओं के प्रति निष्ठा को भी दर्शाता है। ऐसे आयोजनों के द्वारा, वे सदियों से चली आ रही परंपराओं को न केवल जीवित रखते हैं, बल्कि उन्हें नये रूप में प्रस्तुत भी करते हैं। प्रमुख पारिवारिक समारोहों में उनकी सक्रिय भागीदारी सभी को प्रेरित करती है कि वे भी अपनी संस्कृति और धरोहर को संजोए रखें।

इस पूरे उत्सव में, पारिवारिक प्रेम, परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों का जो संगम देखने को मिला, उसने इस विशेष दिन को और भी यादगार बना दिया। गायकवाड़ परिवार ने गणेश चतुर्थी को मनाने का जो तरीका अपनाया, वह निश्चित रूप से प्रशंसा का विषय है। यह सब मिलाकर उनके भीतर की भारतीयता और सांस्कृतिक गरिमा को दर्शाता है, जो हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है।

इस तरह, लक्ष्मी विलास पैलेस में मातृत्व और भव्यता का एक अनोखा मिलाजुला रूप लेकर यह गणेश चतुर्थी का आयोजन एक बार फिर दर्शाता है कि पारंपरिक सांस्कृतिक उत्सवों में आज की भावनाओं और उस परंपरा का अद्भुत सम्मिलन कैसे हो सकता है। महारानी राधिकाराजे गायकवाड़ और उनका परिवार इस प्रेरणादायक उदाहरण के द्वारा समस्त जनमानस को यह संदेश देते हैं कि अपने सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखकर ही हम एक मजबूत और एकजुट समाज की स्थापना कर सकते हैं।

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