राजनीतिक

Bihar’s Bhola Paswan Shastri: First Dalit Chief Minister, Three-Time CM from Purnea

प्रस्तावना

बिहार का विधानसभा चुनावों का इतिहास अद्भुत और दिलचस्प रहा है। इस राज्य ने सत्ताधारी सरकारों के बनने और गिरने के मामले में अप्रत्याशित घटनाक्रमों का सामना किया है। खासकर 1967 से 1969 के बीच, जब 28 महीने के अंदर लगातार सात मुख्यमंत्री बदल गए थे। इस अवधि में औसतन हर मुख्यमंत्री का कार्यकाल मात्र चार महीने का रहा। ऐसे में कुछ महत्वपूर्ण नाम सामने आते हैं, जिनमें बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

भोला पासवान शास्त्री का परिचय

भोला पासवान शास्त्री बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री थे। उन्होंने मुख्य मंत्री बनने के बाद अपने समय में कई नीतियाँ बनाई और परिवर्तन लाने का प्रयास किया। वे दो बार जून 1968 और जून 1969 में मुख्यमंत्री बने। हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद उनका कुल कार्यकाल एक साल से भी कम रहा।

राज्य की राजनीतिक उथल-पुथल

बिहार की राजनीति का यह दौर बड़ा ही जटिल और अस्थिर था। एक तरफ नए नेताओं का उदय हो रहा था, तो दूसरी ओर पुराने राजनीतिक दल अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे थे। इस दौरान कई नेताओं ने अपने-अपने प्रभाव का निर्माण किया, लेकिन उनकी स्थायी भूमिका नहीं बन पाई।

बीते समय में केवल चार दिनों के मुख्यमंत्री बनकर जाने वाले नेता भी रहे हैं, जबकि कुछ का कार्यकाल महज 50 दिनों का रहा। इस अस्थिरता के बीच, शास्त्री जैसे नेताओं ने अपनी राजनीतिक पहचानों के लिए संघर्ष किया।

मुख्यमंत्री बनने की यात्रा

भोला पासवान के मुख्यमंत्री बनने की यात्रा भी दिलचस्प है। उनका पहला कार्यकाल जून 1968 में शुरू हुआ था। उन्होंने कहा था कि वे बिहार के विकास के लिए काम करेंगे और समाज के सभी वर्गों को समान अवसर देने की दिशा में कदम उठाएंगे। लेकिन, जैसे ही उनका कार्यकाल आगे बढ़ा, राजनीतिक दबाव ने उन्हें असहज स्थिति में डाल दिया।

उनका दूसरा कार्यकाल भी June 1969 में कुछ समय बाद हुआ, लेकिन फिर भी उन्होंने उस समय की चुनौतियों का सामना करते हुए बिहार के विकास के लिए कुछ योजनाएँ बनाई। उनका राजनीतिक जीवन कई उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था।

भविष्य की चुनौतियाँ

भले ही शास्त्री का कार्यकाल एक साल से भी कम रहा, लेकिन उनके कार्यों का प्रभाव बिहार की राजनीति पर स्थायी रहा। उनके बाद भी कई दलित नेताओं ने राजनीति में अपनी पहचान बनाने की कोशिश की। बिहार की राजनीति में दलित समुदाय की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ और कार्यक्रम लागू किए गए।

निष्कर्ष

भोला पासवान शास्त्री बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री के रूप में इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनका जीवन और उनका कार्यकाल इस बात का प्रमाण है कि राजनीतिक चुनौती कभी भी संबंधित हो सकती है, लेकिन सेवा और विकास की दिशा में जो प्रयास किए गए, वे हमेशा याद रहेंगे। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर संघर्ष हो, तो सफलता अवश्य मिलेगी, भले ही वह कितनी भी छोटी क्यों न हो।

इस प्रकार, भोला पासवान शास्त्री ने अपने कार्यकाल में जो संकल्प लिया था, वह आज भी बिहार की राजनीति में प्रासंगिक है। इस प्रकार की राजनैतिक उथल-पुथल के बीच, उन्होंने स्थायी बदलाव की ओर कदम बढ़ाए, जो किसी भी नेता की सच्ची पहचान होती है। उनके द्वारा की गई प्रयासों को याद करना आवश्यक है, क्योंकि ये उनके नेतृत्व को और अधिक सशक्त बनाते हैं।

भविष्य में, बिहार की राजनीति में इस तरह के नेताओं की जरूरत हमेशा बनी रहेगी, जो समाज के हर वर्ग की आवाज़ बन सकें और विकास की दिशा में नई सोच और नई पहल के साथ आगे बढ़ सकें।

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