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50% टैरिफ: पीएम मोदी डोनाल्ड ट्रम्प के दबाव में मजबूती से खड़े, मंत्र ‘आत्म-निर्भर’ भारत बनता है।

भारत-रूस टैरिफ विवाद: एक गहन दृष्टिकोण

भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत का भारी टैरिफ लगाने के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के खिलाफ अपने आर्थिक दबाव को स्पष्ट किया है। इसके बावजूद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देते हुए एक मजबूत रुख अपनाया है। इन टैरिफ का प्रभाव 27 अगस्त से लागू हुआ है, जिसमें से पहले से ही 25 प्रतिशत टैरिफ लागू था। इसके अतिरिक्त, 25 प्रतिशत का टैरिफ रूस से तेल आयात पर लगाए गए सजा के रूप में लागू किया गया है। भारत ने इस अनुचित प्रतिबंध की निंदा की है, इसे ‘अनुचित, अव्यवसायिक और अन्यायपूर्ण’ करार दिया है। विशेषज्ञों की राय है कि 2024-25 में अमेरिका को भारत का निर्यात 86.5 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है, जो कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल दो प्रतिशत है। यह टैरिफ विशेषकर कपड़ा, जेम-ज्वेलरी, चमड़े और समुद्री भोजन जैसे श्रम-आधारित क्षेत्रों पर एक गहरा प्रभाव डालेगा।

हालांकि, मोदी की सरकार इसे एक अवसर में बदलने की रणनीति पर काम कर रही है। स्वदेशी उत्पादों और आत्मनिर्भरता को लंबे समय तक समाधान के रूप में देखा जा रहा है। मोदी ने एक समारोह के दौरान उल्लेख किया कि कठिन समय में राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि वैश्विक आर्थिक स्वार्थ में वृद्धि हो रही है और हर कोई अपने एजेंडे में व्यस्त है। कृषि क्षेत्र और किसानों की रक्षा के लिए किसी भी कीमत पर खड़े रहने की बात भी उन्होंने की। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान 18 प्रतिशत है।

ऊर्जा खरीद में भारत की स्थिति

भारत का ऊर्जा खरीद बाजार महत्वपूर्ण है, जो 1.4 बिलियन भारतीयों की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करता है। 2024-25 में भारत का रूस से तेल आयात 8.8 मिलियन मीट्रिक टन रहने की संभावना है, जो कुल आयात का 36 प्रतिशत है। अगर अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के कारण भारत का निर्यात 40-55 प्रतिशत तक गिरता है, तो इससे भारतीय जीडीपी में गिरावट आ सकती है। हालांकि, सरकार का मानना है कि मजबूत मैक्रो फंडामेंटल और 7-8 प्रतिशत विकास दर के साथ, भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में आगे बढ़ता रहेगा।

मोदी की अनुत्तरदायी स्थिति

इस बीच, एक जर्मन समाचार पत्र ने रिपोर्ट किया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल के हफ्तों में मोदी को चार बार फोन किया है, लेकिन प्रधानमंत्री ने कॉल का उत्तर नहीं दिया। इस रिपोर्ट से मोदी की नाराजगी और सतर्कता स्पष्ट होती है। राष्ट्रपति ट्रम्प भारत को ‘एक मृत अर्थव्यवस्था’ कह चुके हैं, जिससे मोदी को अपमानित महसूस हुआ। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रम्प की शिकायतें, धमकियाँ और दबाव योजनाएँ अब मोदी के सामने विफल हो रही हैं। हालाँकि, अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की दिल्ली यात्रा भी रद्द हो गई है।

विशेषज्ञ मार्क फ्रेज़ियर ने कहा कि अमेरिका का इंडो-पैसिफिक गठबंधन ढह रहा है, जिसमें भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। हाल के दिनों में, भारत चीन के साथ संबंध सुधारने का प्रयास कर रहा है। पीएम मोदी तियानजिन में आयोजित होने वाले SCO समिट में भाग लेने जा रहे हैं, जहाँ उनका मिलान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जैसे वैश्विक नेताओं से होगा। इससे भारत के जस के मामलों में अमेरिका की उपस्थिति की जांच करने की क्षमता भी सीमित हो सकती है।

स्वदेशी उत्पादों का समर्थन

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मोदी के स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के विचार का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता सभी समस्याओं का समाधान हो सकती है और अंतराष्ट्रीय व्यापार को स्वैच्छिक दबाव में नहीं आना चाहिए। भागवत के अनुसार, लोगों को स्वदेशी उत्पाद खरीदने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। उनका बयान ट्रम्प के टैरिफ की स्थिति के तुरंत बाद आया है, जो मोदी और आरएसएस की एकजुटता को प्रदर्शित करता है।

स्वदेशी को प्रमोट करने का आरएसएस का दृष्टिकोण अब अमेरिकी दबाव के खिलाफ एक कवच बन रहा है। भारत अमेरिका के साथ संवाद के दरवाजे खुले रखे हुए है, लेकिन संबंधों में विविधता लाने पर जोर भी दे रहा है। हाल में यूके के साथ सफल व्यापार सौदे के बाद, पीएम मोदी की टीम यूरोपीय संघ के साथ एक समझौते पर काम कर रही है। भारत ने 100 देशों में इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्यात शुरू किया है, जो इसके वैश्विक प्रतिस्पर्धा का संकेत देता है। इसके साथ ही, सरकार निर्यातकों के लिए ब्याज सब्सिडी और ऋण गारंटी जैसे राहत पैकेज पर विचार कर रही है।

अमेरिकी नीति की पराधीनता

विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका का यह कदम उसकी नीति की एक आत्म-स्वभाव को दर्शाता है, क्योंकि भारत चीन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सहयोगी है। हालाँकि, ट्रम्प प्रशासन भारत पर रूसी तेल के खिलाफ दबाव डालने का प्रयास कर रहा है। विदेश मंत्री ने यह स्पष्ट किया कि चीन रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार है, और यूरोपीय संघ रूस से LNG खरीदता है, बावजूद इसके उन्हें सजा नहीं दी जा रही। उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका ने खुद भारत से अनुरोध किया था कि वह रूसी तेल का खरीद जारी रखे ताकि वैश्विक ऊर्जा बाजार स्थिरता में बनी रहे।

यह विवाद अमेरिकी-भारतीय संबंधों को नुकसान पहुँचा रहा है। द्विपक्षीय व्यापार 131.8 बिलियन डॉलर का था, लेकिन 50 प्रतिशत का टैरिफ इस रिश्ते के लिए खतरा बन गई है। भारत ने रूसी तेल आयात को समाप्त करने से इनकार कर दिया है, क्योंकि इससे ईंधन की कीमतें 9-12 बिलियन डॉलर बढ़ सकती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत रूस से तेल का आयात रोकता है, तो वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें $200 प्रति बैरल तक पहुँच सकती हैं।

निष्कर्ष

भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में चल रहा यह टैरिफ विवाद जटिलता में और वृद्धि कर रहा है। जैसे-जैसे भारत अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का प्रयास कर रहा है, वह अपने स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए एक ठोस रणनीति पर काम कर रहा है। इस समय, पीएम मोदी की सरकार, वैश्विक दृष्टिकोन के तहत संचार और व्यावसायिक संबंधों में विविधता लाने के लिए अपनी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास कर रही है, ताकि भारत को वैश्विक मंच पर एक शक्तिशाली खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया जा सके। इसे ध्यान में रखते हुए, देखना यह होगा कि भारत कैसे इस चुनौती का सामना करता है और अमेरिका के साथ अपने व्यावसायिक सम्बन्धों को संतुलित करता है।

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